और सवि मर गई !

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पार्वती जोशी, नैनीताल (nainilive.com)
‘बहारो फूल बरसाओ, मेरा महबूब आया है‘ लाउड स्पीकर में बजता हुआ ये गाना जैसे ही मीनू के कानों में पड़ा, वह समझ गई कि निरंजनदा की बारात दुल्हन लेकर नैनीताल से वापस आ गई है। वह घर में इधर-उधर भाग कर अपनी चप्पलें ढूढ़ने लगी। इस भीड़-भाड़ में न जाने उसकी चप्पलें कहाँ गुम हो गई हैं।
दरअसल आज उनके घर में भी बारात की चहल-पहल है। उसकी बुआ की बेटी सविता की बारात, जिसका विवाह मीनू की बड़ी दी के भाँजे के साथ हुआ है, उनके घर में रुकी है। उसका विवाह एक बेमेल विवाह है क्योंकि छोटी-सी उम्र की सविता का पति दुहाजू है। उनकी पहली पत्नी मर चुकी है। ईजा और बड़ी दी लोग रसोई में व्यस्त हैं। बारात का खाना बन रहा है। आलू-टमाटर व कद्दू की सब्जी, खीरे का रायता और खीर बन चुकी है। गरम- गरम पूरियाँ तली जा रही हैं। बारातियों को खिलाने की तैयारी चल रही है। इस काम में बड़ी दी के बच्चे निपुण हैं।
तभी सविता ने उसे परेशान देखकर अपने चप्पल उतारकर उसे देकर कहा, ‘‘जा इन्हें पहनकर बारात देख आ। चुपके से जाना, कोई तुझे नहीं देखेगा।‘‘ मीनू उसकी शादी की ही चप्पलें पहनकर निरंजन दा की दुल्हन देखने पड़ोस में चली गई। उनका घर तीन-चार घरों के बाद आता था। बाजार की तरफ से सबके घरों के नीचे दुकान की दरें थी। वह बाजार की ओर से ही चली गई। तब तक उसकी पसंद का ‘वक्त‘ फिल्म का गाना लाउडस्पीकर पर चल रहा था। ‘हम जब सिमट के आपकी बाहों में आ गये’ वह तन्मय होकर गुनगुनाती हुई शादी के घर की ओर बढ़ रही थी कि उसके पीछे-पीछे आ रहे सतीश दा ने उसे पीछे से आवाज मारी, तो वह ठिठक कर रुक गई। फिर उन्हें इन्जीनियरिंग में निकलने की बधाई देते हुए उलाहना के स्वर में मिठाई नहीं खिलाने की शिकायत की। सतीशदा बहुत मजाकिया स्वभाव के थे। बोले अपनी बहन को ऐसी-वैसी मिठाई थोड़़ी खिलाऊँगा। रुकजा अभी मिठाई खिलाता हूँ, कहकर पड़ोस के शर्माजी की दुकान से एक पुड़िया टाॅफी लेकर आये और बोले, ‘‘ले विलायती मिठाई खा।‘‘ उन दिनों टाॅफियों को ही विलायती मिठाई बोलते थे। मीनू खुश हो गई और दोनों ही दुल्हन को देखने पड़ोस में पहुँच गये। तब तक द्वाराचार चल रहा था। दुल्हन को देखकर सतीशदा और मीनू दोनों स्तब्ध रह गये। मीनू सोचने लगी, ‘‘ये क्या हो गया निरंजनदा के साथ? कहाँ इतने सौम्य, सुदर्शन, पढ़ाई में हमेशा अव्वल, विदेश से पी.एच.डी करके लौटे निरंजनदा, पड़ोस के लिए एक मिसाल थे। और कहाँ छोटे कद की विराट शरीर वाली उनकी दुल्हन जिसकी गरदन और ठुड्डी मिलकर उसे और भी विकृत रूप दे रहा था। ऐसा लग रहा था, जैसे ‘रेशम में टाट का पैबन्द‘। उनकी बहन तारा ने तो कहा था कि वे लड़की देखने नैनीताल गये थे, तो फिर क्या वे बिना दुल्हन देखे, केवल ससुराल की हवेली देखकर ही वापस लौट आये?’’ मीनू ने सोचा जो भी हो उनके साथ बहुत बुरा हुआ। वह दरवाजे के पास खड़ी होकर द्वाराचार की रस्म देखने लगी। तभी उसने देखा कि दूल्हा-दुल्हन के घर के अन्दर प्रवेश करने से पहले निरंजन दा की दोनों बहनें हाथ में दही का पात्र लेकर दरवाजे के दोनों ओर खड़ी होकर अपना नेग मांगने लगीं। निरंजन दा के जेब से वाॅलेट निकालने से पहले ही नई बहू ने नोटों से भरा हुआ अपना सुनहरे रंग का बटुआ ही उनके हाथ में रखकर कहा कि आपस में बांट लो। तब मीनू ने गौर से दुल्हन को देखा, जो पूरी तरह गहनों से लदी हुई थी। उसने सोचा अच्छा तो ये बात है? तभी निरंजनदा के साथ-साथ सभी घर वाले भी इतने खुश नजर आ रहे हैं। उसे ये सब अच्छा नहीं लगा और वह बिना पूरी रस्में देखे, वहाँ से वापस लौट गई।
आजकल हाईस्कूल की बोर्ड परीक्षाएँ समाप्त होने के बाद उसकी लम्बी छुट्टियाँ चल रही थी। उसकी एक सहेली रीता के चाचा म्युनिसिपल लाइब्रेरी में लाइब्रेरियन थे। वे दोनों रोज लाइब्रेरी जाती और किताबें लेकर पढ़ती। उन दोनों ने बहुत सी किताबें पढ़ डाली। आजकल मीनू धर्मवीर भारती के उपन्यास गुनाहों के देवता पढ़ रही थी। उपन्यास के हीरो चन्दर से इतनी प्रभावित थी कि अपने पड़ोस के सभी सुदर्शन युवकों में वह चन्दर की छवि देखती। वह उपन्यास उसने ऐसे पढ़ा, जैसे लोग ‘रामायण‘ और ‘गीता’ का पाठ करते हंै। लेकिन आज अपने एक चन्दर की ऐसी गत देखकर वह अत्यन्न दुःखी मन से अपने विचारों में खोई हुई घर को लौट रही थी कि घर के सामने का बड़ा नाला उसे दिखाई नहीं दिया। एक तो उसने ये ध्यान नहीं दिया कि सविता की वे चप्पलें प्लास्टिक की फिसलने वाली चप्पलें थी। उसका पैर फिसला और वह धड़ाम से नाले में गिर गई। नाले का किनारा उसके माथे में लगा, माथा फटकर खून बहने लगा। उसके पूरे कपड़े खून से सन गये। वह जोर से चिल्लाई। उसके चिल्लाने की आवाज सुनकर सब पड़ोसी बाहर निकल गये। किसी ने पूरियाँ तलती हुई मीनू की ईजा को भी खबर कर दी। तब तक सामने की दुकान पर बैठे हुए उसके ताऊजी के बेटे हरीशदा उसी दुकान से मलहम का डिब्बा लेकर आ गये। मीनू की ईजा इसे खून से लथपथ देखकर जोर से रो पड़ी। ‘‘अब तो इसका माथा फट गया इससे शादी कौन करेगा।’’ यह सुनकर सतीशदा को हॅसी आ गई। बोले, ‘‘पहले इसे बचा तो लो फिर शादी की सोचना।’’ किसी तरह नाले से बाहर निकाल कर उसे घर के अंदर ले जाया गया। फिर उसकी मरहम पट्टी हुई। कपड़े बदलकर वह बिस्तर में घुस गई। सब पड़ोसी उसे देखने आये। और उसकी ईजा की मजाक उड़ाने लगे कि अभी तो मीनू बच्ची है, इसकी ईजा को इसके विवाह की पड़ी है। जब सब चले गये और कमरे में एकान्त हुआ तो दुल्हन के वेश में सकुचाती हुई सविता उसके पास आई और आँखों में आंसू भरकर बोली, ‘‘मेरी इन चप्पलों की वजह से ही आज तेरा ये हाल हुआ है ना, पता नहीं इन चप्पलों को पहनकर मेरा क्या हाल होगा?’’ मीनू ने उसे समझाया, ‘‘अरे! ऐसा कुछ नहीं होता, मैं ही ध्यान से नहीं चल रही थी, इसलिए ये हादसा हुआ।‘‘ फिर भी सवि की वे बातें रह रहकर मीनू के दिमाग में हलचल मचाने लगी। आज भी उसके माथे के उस घाव में टीस उठती है, तो उसे सविता की, सतीशदा की और निरंजनदा की याद आ जाती है।
सतीश दा एक सफल इन्जीनियर बने। सरकारी विभाग के एक ऊँचे पद पर कार्यरत थे कि कैन्सर जैसे जानलेवा बीमारी की गिरफ्त में आ कर असामयिक मृत्यु के शिकार हुए। निरंजन दा भले ही शिक्षा विभाग के ऊँचे पदों पर देश-विदेश में कार्य करते हुए सेवा-निवृत हुए, किन्तु उनकी पत्नी निःसंतान होने का दुःख अपने मन में लेकर असमय में ही चल बसी और आज वे एक सन्यासी की भांति अपना जीवन बिता रहे हैं।
सविता का विवाह गंगोली हाट के एक गाँव में हुआ था। उनके पति, मोहन जीजाजी उनसे उम्र में बहुत बड़े थे। वह उनसे बात करने में भी डरती थी। किन्तु उनकी सेवा वह जी-जान से करती थी। घर के सारे काम करने के अलावा खेत-खलिहान, गाय-बछड़ों की सेवा आदि सब काम सवि कर लेती थी। अपनी माँ से उसने खाना बनाना भी सीखा था। सबको खाना खिलाकर चैका-बर्तन करके गाँव की अन्य बहुओं के साथ घास काटने या लकड़ी लेने जंगल भी जाती थी। एक दिन न जाने क्या हुआ कि वह अपनी शादी के उन्हीं मनहूस चप्पलों को पहनकर जंगल चली गई जिनसे मीनू गिर गई थी। एक उंची पहाड़ी में चढ़ कर घास काट रही थी कि पैर फिसला और धड़ाम से, सिर के बल पहाड़ी से नीचे गिर गई। गिरते ही उसकी मृत्यु हो गई। लोग तो कह रहे थे कि इस मोहन के भाग्य में स्त्री सुख लिखा ही नहीं है किन्तु सुना है, सवि की मृत्यु के तीसरे ही महिने उन्होंने अपना तीसरा विवाह किया। ये बातें सोचती हुई मीनू का हाथ अपने माथे की चोट पर चला गया, ऐसा लग रहा था मानो ंखून निकल कर उसमें खुरंट जम गई हो। उसे सवि के शब्द याद आने लगे, जब उसने उससे कहा था कि मेरी शादी के इन चप्पलों को पहनकर तो तू पूरी तरह खून में सन गई, पता नहीं मेरे भाग्य में क्या लिखा है?‘‘

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