निषेधाज्ञा कानून : दीवानी के अधिवक्ताओं के लिए वही महत्व, जो फौजदारी के अधिवक्ताओं के लिए किसी की जमानत का है – न्यायमूर्ति श्री विवेक अग्रवाल

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अंचल पंत , नैनीताल ( nainilive.com )- अधिवक्ता परिषद, अधिवक्ताओं के हितो को ध्यान में रखते हुए इस लॉकडाउन काल में अधिवक्ता परिषद उत्तर प्रदेश – उत्तराखण्ड द्वारा “दत्तोपंत ठेंगडी व्याख्यानमाला” का आयोजन 1 मई 2020 से ऑनलाइन किया जा रहा है। जिसमें देश के प्रतिष्ठित विधिवेत्ताओं के नियमित व्याख्यान नित नए विषयों पर आयोजित किये जा रहे है।

श्री दत्तोपंत ठेंगडी व्याख्यानमाला में आज के वक्ता माननीय न्यायमूर्ति श्री विवेक अग्रवाल जी उच्च न्यायालय, इलाहाबाद ने निषेधाज्ञा कानून विषय पर अपना उद्धबोधन दिया जिसमें बताया गया कि निषेधाज्ञा कानून दीवानी के अधिवक्ताओं के लिए वही महत्व रखती है जो फौजदारी के अधिवक्ताओं के लिए किसी की जमानत रखती है।यह किसी पक्षकार को कोई कार्य करने या उससे विरत रहने से माननीय न्यायालय द्वारा दिये जाने वाला अनुतोष है सक्षम न्यायलय को यह शक्ति प्राप्त है की वह विवादग्रस्त सम्पति को हटाने बेचने व्यनित करने व खुर्दबुर्द करने से रोकने के लिए स्थाई आदेश दे सकती है और वह तबतक रहेगा जब तक अन्य आदेश पारित न करे साथ ही वह किसी भी पक्षकार द्वारा इसकी अवज्ञा करने पर न्यायालय उसे तीन माह का सिविल कारावास या सम्पत्ति कुर्क करने का आदेश या उस सम्पत्ति को बेचकर उस क्षतिपूर्ति या नुकसानी की भरपाई कर सकती है। जब कोई अवैध निर्माण या अनधिकृत निर्माण का प्रश्न हो तब माननीय न्यायालय को लोकहित या व्यक्ति हिट में से लोकहित को महत्व देते हुए निषेधाज्ञा का आदेश पारित करने चाहिए ।इसके अंर्तगत विशिष्ट अनुतोष अधिनियम में यह प्रावधान है कि जबतक कोई भी पक्षकार दावे में अतिरिक्त नुकसानी के लिए प्रार्थना या नुकसानी संशोधन नही करता है तो उसे नुकसानी का विशिष्ट अनुतोष प्राप्त नही हो सकता है।

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सक्षम न्यायलय को किसी सेवा,अंतरण,निलंबन,अनिवार्य सेवा मुक्ति,प्रतिनयुक्ति,विश्विद्यालय के आंतरिक मामले,कुलाधिपति व शासन की नीलामी आदि वाले मामलों में निषेधाज्ञा देने से विरत रहना चाहिए साथ ही प्रथम दृष्टया देखना चाहिए कि वादपत्र में वांछित तथ्य है या नही व असुविधा व अनिष्ट का पड़ला किस पक्षकार के पक्ष में अधिक झुक है गुणदोष से पूर्व किसके अधिकारों की अपूर्णीय क्षति होने की संभावना है,सभी मापदण्ड पूर्ण है या नही भी देखना चाहिए।उक्त के विषय में अनेक विधि द्वारा प्रतिपादित सिद्धान्तों का भी उल्लेख किया गया।
कार्यक्रम का संचालन आदित्य शुक्ला एडवोकेट उच्च न्यायालय ने किया। सजीव प्रसारण में सुयश पंत, जानकी सूर्या, भास्कर जोशी, शशिकांत शांडिल्य, राहुल कंसल, भारत मेहरा, आदि अन्य अधिवक्ताओं ने सहभागिता की।

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