हिंदी कहानी : और वह कुछ कह न सकी

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पार्वती जोशी , नैनीताल ( nainilive.com )- रिक्शे में बैठी जया आज स्कूल में घटी उस घटना के बारे में सोचकर विचलित हो गई । रमज़ान का महीना चल रहा था ,उसकी कक्षा की एक छात्रा मरियम ने भी रोज़े रखे थे ।एक तो परीक्षाओं का स्ट्रैस,ऊपर से रोज़ों के दौरान पानी भी नहीं पी सकते ।वह परीक्षा देते-देते बेहोश हो गई ।एक छात्रा से पानी की बोतल लेकर उसके मुँह में पानी के छींटे मारने पर ही वह घबरा गई,कि कहीं कोई ये न सोचे कि उसने मरियम का रोज़ा तोड़ दिया है ।आजकल वह अपने देश की मीडिया से बहुत घबराने लगी है, क्योंकि अभिव्यक्ति की आज़ादी के नाम पर बहुत से पत्रकार बात का बतंगड़ बना कर अख़बारों में छापने लगे हैं ।
मरियम का मुँह पोंछने के लिए वह उसके बस्ते से रुमाल निकालने लगी, तो उसने देखा कि बस्ते के अंदर सूखे मेवे और खजूर के पैकेट रखे थे लेकिन उस बच्ची में इतना आत्म संयम है कि उसने उन्हें खोला भी नहीं था । जया ने सोचा कि ये पैकेट छात्रावास आते समय उसकी माँ ने रखे होंगे ।उसे स्कूल की इन्फॉर्मरी में भेजकर वह पानी पीने के लिए स्टाफ़ रूम में चली गई । स्टाफ़ वालों के सामने वह इस बारे में बहुत कुछ कहना चाहती थी किन्तु मामले की संजीदगी को देखते हुए,वह कुछ नहीं कह सकी,मन ही मन में सोचती रह गई कि क्या छोटे व नाज़ुक बच्चों से इतने कठिन रोज़े रखवाने चाहिए ?


रिक्शे से उतरते ही वह स्कूल में घटी सब बातें भूलकर अपनी गृहस्थी की बातें सोचने लगी ।उसे जल्दी -जल्दी घर पहुँचना है क्योंकि उसके पति शाम की चाय पर उसका इंतज़ार कर रहे होंगे ।साथ ही उसे फल व सब्ज़ियाँ भी ख़रीदनी थी । शहर का मुख्य बाज़ार उसके घर के मार्ग में पड़ने का यही तो फ़ायदा है कि वह रोज़ की ज़रूरतों का सामान लेकर ही घर जाती है ।
लाल्स इंपोरियम के सामने लतीफ़ भाई के ठेले में ताज़ा अमरूद और सेब देखकर वह रुक गई ।उसने पूछा ,” कहो लतीफ़ भाई कैसे हो, काम कैसा चल रहा है?” लतीफ़ उसे देखकर खुश होता हुआ बोला ,” नमस्ते मैम! मैं बिलकुल ठीक हूँ ,आप लोगों की दुआओं से मेरा काम भी ठीक चल रहा है ।”फिर उसने उसके लिए आधा -आधा किलो अमरूद और सेब तोले । लतीफ़ भाई की कश्मीरी टोपी देखकर वह उसे कश्मीरी समझती थी ।वह सोचती थी कि अन्य कश्मीरियों की तरह वे भी व्यापार करने यहाँ आए होंगे। उन्हें आशीर्वाद देती हुई वह बोली ,” लतीफ़ भाई !तुम उतनी दूर कश्मीर से इतने स्वादिष्ट फल मँगवाकर हमें खिलाते हो, मैं तुम्हें आशीर्वाद देती हूँ कि इसी मुख्य बाज़ार में तुम्हारी अपनी फलों की दुकान खुल जाये ।” खुश होकर लतीफ़ ने कहा,” मैम आपका आशीर्वाद सर आँखों पर,किन्तु मैं कश्मीरी नहीं हूँ, यहीं लक्कड़ बाज़ार में मेरे अब्बू की गमले रखने के लिए लोहे के स्टैंड बनाने की दुकान है । बचपन में मैं उन्हीं के साथ काम करता था ।क्या आपने मुझे वहाँ कभी नहीं देखा? ?यह कह कर वह दूसरे ग्राहकों में व्यस्त हो गया ।केवल उसकी टोपी देखकर ही उसे कश्मीरी समझने की अपनी अटकलें लगाने पर उसे हँसी आ गई ।
सच में उसका आशीर्वाद लतीफ़ भाई के लिए फलीभूत हो गया । कुछ ही समय बाद उसी मुख्य बाज़ार में उनकी फलों की अपनी दुकान खुल गई ।उस दुकान में फलों के अतिरिक्त सूखे मेवे ,गज़क ,शहद और फलों के जूस भी मिलने लगे ।देखा जाये तो वह दुकान उस इलाक़े के लिए आकर्षण का केंद्र बन गई ।

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जाड़ों की छुट्टियों के बाद ,स्कूल खुलने पर जब जया लौटकर आई ,तो उसे अपने शहर का माहौल कुछ-कुछ बदला हुआ सा लगा ।कुछ दुकानें व कुछ दुकानदारों का पहनावा बदला हुआ था ।सबसे पहले तो लतीफ़ भाई और उसकी दुकान में काम करने वाले फ़ैज़ को देखकर उसे आश्चर्य हुआ । कश्मीरी टोपी पहनने वाले लतीफ़ भाई और जींस- टी शर्ट पहनने वाले फ़ैज़,दोनों की लम्बी दाड़ी,छोटा पाजामा,लम्बा कुर्ता और सफ़ेद गोल टोपी देखकर वे दोनों ही उसे अजनबी से लगने लगे ।आदतन स्कूल से लौटते हुए जया फल ख़रीदने के लिए उनकी दुकान की ओर मुड़ गई ।लतीफ़ भाई ने मुस्कुराते हुए उसका स्वागत किया ।उनके व्यक्तित्व में आए गरिमामय बदलाव को देखकर ही वह समझ गई कि उनका व्यापार अच्छा चल रहा होगा ।जब तक फ़ैज़ उसका सामान तोल कर रख रहा था,तब तक लतीफ़ भाई अपने साथ बुर्के में लिपटी हुई एक स्त्री को उससे मिलाने के लिए दुकान के अंदर से बुला लाए और उसका परिचय कराते हुए बोले,” मैम! आप तो मुझे कश्मीरी समझ रही थीं किन्तु ये मेरी पत्नी शाहीन कश्मीरी है ।” चेहरे से बुर्का हटा कर शाहीन ने उसे आदाब किया। वह बहुत ख़ूबसूरत थी।गोरी चिट्टी ,लाल गाल ,लग रहा था जैसे कश्मीरी सेबों की रंगत उसके गालों में उतर आई हो ।तभी दुकान के अंदर से ,अपनी माँ कीं भाँति ही सुंदर,लाल टमाटर से गालों वाला ,पाँच -छह साल का उसका बेटा बाहर निकला ।अपने बेटे से मिलाते हुए उन्होंने कहा कि ये जी़शान है ।अपनी पढ़ाई की वजह से ये अपने नाना-नानी के साथ कश्मीर में ही रहता है ।फिर उन्होंने शाहीन को बताया कि ये वही मैम हैं,जिन्होंने मुझे दुकान खोलने के लिए अपना आशीर्वाद दिया था ।


तभी ,”गुड ईवनिंग मैम!की सुरीली आवाज़ सुनकर जया ने पीछे मुड़कर देखा, तो सिर से पाँव तक काले बुर्के में लिपटी हुई एक स्त्री,सात -आठ साल के एक लड़के का हाथ पकड़कर खड़ी थी ।उसकी केवल दो आँखें ही दिखाई दे रही थी,इसलिए उसने उसे नहीं पहचाना ।चेहरे से बुर्का हटाकर वह बोली ,” मैम!क्या आपने मुझे नहीं पहचाना? मैं शहनाज़ हुसैन! आप मुझे पढ़ा चुकी हैं ।गौर से देखने पर ही वह पहचान पाई।वह तो पहले ही बहुत ख़ूबसूरत थी ,अब तो उसकी ख़ूबसूरती और अधिक बढ़ गई थी ।उसे यक़ीन ही नहीं हुआ कि कक्षा की सबसे चंचल और शरारती लड़की ,स्पोर्ट्स प्रैक्टिस के दिनों में ,जो अपनी स्कर्ट को कमर से मोड़कर छोटा कर लेती थी ,टीचर्स को उसकी तथा उसकी जैसी अनेक छात्राओं की स्कर्ट्स खींचकर लम्बी करनी पड़ती थी ।आज अपने ही शहर में वह इस रूप में? वैसे भी इस ख़ूबसूरत से पहाड़ी पर्यटक स्थल पर सब लोग अपने ही लगते हैं । बुर्क़ा प्रथा तो तब यहाँ पर नहीं के बराबर थी । ,” अरे शहनाज़ ये तुम हो ,कितनी बदल गई हो ? आजकल कहाँ हो ?,नौकरी कर रही हो ? शादी हो गई ?,ऐसे ही अनेक प्रश्न,जो वह अपनी पूर्व छात्राओं से पूछती है ,उससे भी पूछे ।उसने बड़े धैर्य से सभी प्रश्नों का उत्तर दिया कि पढ़ाई पूरी होते ही उसकी शादी हो गई थी ।उसकी ससुराल कश्मीर में है ।वह वहीं के एक स्कूल में पढ़ाती है । फिर अपने बेटे का परिचय कराते हुए बोली ,” मैम !ये मेरा बेटा शिराज़ है ।मेरे ही स्कूल में पढ़ता है ।आजकल छुट्टियों में वे यहाँ अम्मी -अब्बू से मिलने आए हैं ।शिराज़ भी अपनी माँ की तरह ही ख़ूबसूरत था ।उसका चेहरा मासूम व आँखें नीली झील की भाँति थी।उसने जया से स्कूल के सब हाल चाल व पुरानी अध्यापिकाओं के बारे में पूछा ।उसने कहा ,अरे किसी दिन तुम अपने बेटे को स्कूल दिखाने के लिए,खुद ही क्यों नहीं चली आतीं?इस शनिवार को स्कूल का स्पोर्ट्स डे है,उस दिन आ जाओ ।फिर वह हंसते हुए बोली , अब तो किसी को तुम्हारी स्कर्ट लम्बी भी नहीं करनी पड़ेगी ।तुम्हें याद है स्पोर्ट्स डे? तुम्हारी स्कर्ट खींचकर लम्बी करनी पड़ती थी?लेकिन अब ये क्या ,अपने ही शहर में? उसके आगे के शब्द जया के मुँह में ही अटक गये ,केवल आँखों में प्रश्न उतर आया ।दरअसल आज देश के हालात इतने बदल गये हैं कि कुछ भी बोलने से पहले शब्दों को तोलना पड़ता है कि कहीं मामला संवेदनशील न हो जाय।ख़ैर शहनाज़ उसके आँखों में उतर आए प्रश्नों को समझ गई और बोली ,” मैम! मुझे अपनी शैतानी के दिन अच्छी तरह याद है ,वे दिन मेरी ज़िन्दगी के सबसे ख़ूबसूरत दिन थे, जो कभी लौटकर नहीं आ सकते।फिर उसकी आँखों में उतर आए प्रश्न का उत्तर देते हुए बोली, “ लेकिन मैम! अब तो यही हमारी पहचान है ।” स्पोर्ट्स डे के दिन आने का वादा करके उससे विदा लेकर और उसे अचम्भित करके वह चली गई ।
जया सोचने लगी ,पहले लतीफ़ भाई की पहचान और अब शहनाज़ की पहचान ! अचानक देश में इस बदलाव की बयार कैसे चली ?पहले तो मान लेते हैं कि अपनी अस्मिता की रक्षा के लिए हिजाब व बुर्का पहना जाता था किन्तु अब,जबकि स्त्रियाँ हर क्षेत्र में बहुत आगे निकल चुकी हैं ।फिर पुरुषों में बदले हुए इस पहनावे की पहचान का कारण,वह समझ नहीं पा रही है, अब वह पूछे भी तो किससे?

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जो बातें वह लतीफ़ भाई और अपनी प्रिय छात्रा शहनाज़ से नहीं पूछ पाई, उन्हीं बातों का विश्लेषण करती हुई वह अपने घर की चढ़ाई चढ़ने लगी ।अचानक उसके दिल में डर बैठ गया कि कहीं बड़े होने पर शिराज़ और ज़ीशान भी अपने देश के रक्षक सैनिकों पर पत्थर तो नहीं चलाएँगे,देश के विरुद्ध नारे तो नहीं लगाएँगे,अपने ही देश से आज़ादी की माँग तो नहीं उठाएँगे? जो पहचान लतीफ़ भाई और शहनाज़ सरीखे नौजवान अपनी बता रहे हैं,उसे आज समाज में संदिग्ध नज़रों से नहीं देखा जा रहा है ?क्योंकि दुनिया में जितने भी आतंकी हमले हुए हैं, उनका सीधा संबंध इन पोशाक वालों से ही रहा है ,इसलिए शायद हवाई यात्रा हो ,बस या रेल की यात्रा,अपने पास में इन पोशाक वालों को बैठा देखकर हमारा मन भयभीत हो जाता है।उसे लगता है कि कहीं न कहीं देश की विघटनकारी ताक़तें समाज को बाँटने में सफल हो गई हैं ।क्या हमें उन लोगों को सफल होने देना चाहिए?

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जया सोचने लगी कि ,हम तो अपने सभी विद्यार्थियों को एक सी शिक्षा देते हैं,फिर उनके समझने में ये अंतर कहाँ से आता है ? इनमें प्रतिभाओं की कोई कमी नहीं है, यदि देखा जाये तो जीवन के हर क्षेत्र में ये अव्वल है । अच्छे लेखक,कलाकार, संगीतकार ,गीतकार ,गायक ,शायर और अच्छे व्यापारी!क्या नहीं है ये लोग ?किन्तु इनमें से बहुत से लोग इतने असंतुष्ट क्यों है?देशके निर्माण की बात न सोचकर केवल विध्वंस की बात क्यों सोचने लगे है ?क्या ये देश इनका नहीं है? क्या देश के बुद्धिजीवियों का ये फ़र्ज़ नहीं है कि वे सार्वजनिक रूप से ग़लत को ग़लत कहने का साहस करके इन भटके हुए नौजवानों को सही दिशा दिखाकर देश की मुख्य धारा के साथ जुड़ने में इनकी मदद करें ।,जिससे देश के विकास में ये अपना योगदान दे सकें।लोग चाहें तो ये हो सकता है , किन्तु कुछ लोग है ,जो ये सब नहीं होने देना चाहते ।वे समाज को विघटित करके अपने स्वार्थ सिद्ध करते हैं ।इससे पहले देश कभी भी इस क़दर नहीं बँटा था , जितना कि आज बँटा है । वह समाज से पूछना चाह रही है कि नफ़रत के इस दौर में कबीर की भाँति ढाई अक्षर प्रेम का कौन पढ़ाएगा? लेकिन पूछ नहीं पाई क्योंकि उसके अच्छी नीयत से किए गये इस अनुरोध का भी लोग ग़लत अर्थ न निकाल लें।

लेखिका परिचय : श्रीमती पार्वती जोशी हिंदी की लेखिका हैं. इनकी कई कहानिया कई राष्ट्रीय स्तर की पत्रिकाओं में छप चुकी है. नैनीताल के प्रतिष्ठित स्कूल सेंट मैरीज कॉलेज से हिंदी अध्यापक के पद से आप सेवानिवृत्त हुई है.

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