हिंदी कहानी : काॅन्ट्रास्ट्

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पार्वती जोशी, नैनीताल (nainilive.com)- पूनम ने अपनी साडियों की अल्मारी खोली और थोड़ी देर तक सोचती रही कि, कौन सी साड़ी निकालूँ। आज उसकी भाँजी रितु की शादी थी। सोचा ससुराल पक्ष के सब लोग वहाँ उपस्थित होंगे। उसे भी उनके सामने सजधज कर जाना होगा। उनमें से कोई साड़ी एस पसन्द नहीं आई। भारी साड़ियों का बाॅक्स खोला। हाल ही में उसने उन सभी साड़ियों की तह पलटकर उन्हें बाहर हवा में रखा था। प्रति वर्ष वह उन साड़ियों का बाहर हवा दिखाकर, उनकी तह बदल देती और साथ में नीम की पत्तियों को सुखाकार एक पाउच में रख देती, जिससे उनमें कीथ न लगने पाये। उनमें से धानी रंग की एक साउथ सिल्क की साड़ी उसे पसन्द आ गई। याद आया कि पिछले वर्ष जब वे तिरुपति बालाजी के दर्शनों के लिए दक्षिण भारत की यात्रा पर गये थे, तो नल्ली, पोथी व कुमरन साडी की दुकानें छानने के बाद ‘कुमरन’ से उसने ये साड़ी पसन्द की थी। उसने निर्णय ले लिया कि आज वह यही साड़ी पहनेगी। फिर उसके साथ के गहने भी निकाल लिए। केवल चूडियाँ निकालनी रह गई। पूनम ने अपनी ड्रेसिंग टेबल के सबसे नीचे का खाना खोला, तो देखा सब चूड़ियों के डिब्बे उसने कितने करीने से लगाए थे, तभी उसकी दृष्टि हरे रंग के,सुनहरे गोटे से सजे हुए चू़िड़यों के डिब्बे पर पड़ी। उसने उसे सावधानी से बाहर निकाला। चूड़ियों के उस डिब्बे को देखकर उसे नजर भैय्या की याद आ गई। उसे पकड़कर वहीं पलंग पर बैठ गई उसकी धूल साफ की, फिर खोला। हरे काँच की सुन्दर कामदार चूड़ियों पर हाथ फेरते हुए, उसके चेहरे पर मुस्कुराहट आ गई। अपनी शादी का वह दिन याद आ गया, जब सब लोग दहेज के कमरे में जाकर अपना नाम दर्ज़ करवा रहे थे, तब नजर भइया सीधे उसके पास आये। उस समय वह अपनी सहेलियों से घिरी हुई थी।
वे उसके पास आकर बोले, ‘बेनी तेरा ये गरीब भाई तुझे क्या दे सकता है, ये तेरे सुहाग की चूड़ियाँ हैं, अल्ला से दुआ माँगता हूँ कि तेरा सुहाग सदा बना रहे’ डबडबाई आँखों से पूनम ने उनका हाथ पकड़ा। रुँधे हुए गले से केवल इतना ही कह पाई ‘नजर भइया! ये मेरी शादी का सबसे कीमती ;नायाबद्ध तोहफा है, इसे मैं हमेशा अपने पास रखूँगी।
इसी लिए इस वर्ष दीपावली की सफाई करते हुए जब उसकी बडी बेटी गायत्री ने उसे सुझाव दिया कि इन चूडियों के सभी पुराने डिब्बों की चूड़ियो चूडी स्टैन्ड में लगा कर इन्हें फंेक देने हैं क्योकि ये बेकार जगह घेर रहे हैं। उसने कहा सब फैंक भी दो, किन्तु वह हरा वाला डिब्बा मत फेंकना, इसके साथ उसकी बहुत-सी यादें जुड़ी हैं। फिर गायत्री ने पता नहीं क्या सोचा कि कोई डिब्बा नहीं फेंका।
आज उसे विवाह से पूर्व की बहुत-सी बातें याद आने लगी उसे याद आया कि उनका घर नये बज़ार का आखिरी घर था, बीच में टूटी-फूटी सड़क, दूसरी ओर पुरानी बजार शुरू हो जाती। पुरानी बज़ार का पहला घर ही तो नज़र भइया लोगों का था। जो उनके घर के पिछवाडे़ में पड़ता था। नजर भइया लोग चार भाई व उनके माता-पिता उस छोटे से खण्डहर नुभा-जर्जर घर में रहते थे। पूनम के स्कूल का रास्ता वहीं से होकर जाता था। उसे हमेशा डर लगी रहती कि कहीं वह मकान भरभराकर गिर ने पड़े। फिर एक दिन उनकी तरन्नुम आपा के शौहर का जब इन्तकाल हो गया, तो वे भी अपने पाँचों बच्चों के साथ वहीं रहने आ गई। फिर तो उस घर में बहुत ही रौनक बढ़ गई।
नज़र भइया की चूड़ियों की दुकान गाँधी चाॅक में थी, वह उसी रास्ते स्कूल जाया करती थी। उस समय नजर भइया स्त्रियों की गोरी व नाजुक कलाइयों में चूड़ी पहनाते हुए उससे पूछते ‘बैनी स्कूल जारी?’ वह उत्तर देती ‘हाँ भइया जा रही हूँ।’ लौटते समय भी वह उससे पूछते, ‘बैनी स्कूल से आ गई?’ और वह जवाब देती, ‘हाँ भइया आ गई।’ ये हर रोज़ का नियम था। इस आरी-जारी के सिलसिले में कब इतना समय बीता और उसकी शादी का दिन भी आ गया, उस दिन तरन्नुम आपा की बेटी जेबुन्निआ ने ‘आने से उसके आए बहार’ गाने में ऐसा नाच किया, कि महिला संगीत में आई हुई महिलाएँ व उसकी सहेलियाँ सभी मंत्रमुग्ध हो गये।
पूनम का तरन्नुम आपा की वह बात याद आई, जब वे उसे मोहर्रम के वाज़िए की परिक्रमा कराकर, उसके नीचे से दूसरी ओर ले जातीं और कहतीं ‘बैनी मुहर्रम के ताज़िए से छिरककर दूसरी ओर निकलना बहुत शुभ माना जाता है, तुझे अब सालभर तक कोई रोग-शोक नहीं होगा, उन दिनों नज़र भैया लोगों के घर के आगे की सड़क पर मोर्हरम का ताजिया रुकना, फिर दो दलों में तलवारबाजी होती थी। हमारी आमा भी उस ताजिए में चादर चढ़ाती थीं। उसके बाद सारी बजार में घूमकर ताज़िया करबला के मैदान की ओर जाता था। उन दिन हिन्दू-मूस्लिम सभी लड़के उसमें भाग लेते थे। अपने बचपन में उसे कभी नहीं लगा कि धर्म भी अलग होते हैं।
एक दिन शाम के धुँधलके में वह अपने घर से बड़ी दी के घर जा रही थी। शिशु मन्दिर के सामने ही मण्डप स्कूल के बरामदे में बैठे हुए छोकरों ने उसके साथ कुछ छेड़खानी की,(उन दिनों लडकियों के साथ छेड़खानी करना एक आमबात होती थी, दूसरे मोहल्ले के लड़के वहाँ एकत्र होकर आती-जाती लड़कियों पर कमेन्ट करते थे) तभी नज़र भइया के बड़े भाई अमीर भैया हाथ में एक डन्डा लेकर वहाँ आ गयेें। कड़क आवाज़ मे उन लड़कों का डपटते हुए बोले,‘ तुमने मेरी बैनी के साथ छेड़खानी की। अब आज से यहाँ बैठे नज़र आए, तो हड्डी-पसली तोड़ दूँगा।’
सभी छोकरे आश्चर्य से उनका मँुह ताकने लगे कि ये तो मुसलमान हैं, पूनम इनकी बहन कैसे हो सकती है। सर पर पैर रखकर वे वहाँ से भाग लिए। सामने ही शिशु मंदिर के एक आचार्य जी (जो आज एक राजनैतिक दल के बड़े नेता हैं) अमीर भइया से बोले,‘क्यों रे! उन लड़कों को क्यों डाँट रहा है?इस लडकी का समझा कि अँधेरे में घर से बाहर निकलने का यही नतीज़ा होता है।’ यह सुनकर पूनम तो रोने लगी किन्तु अमीर भैइया ने उन्हें ऐसा पाठ पढ़ाया कि उसने सोचा अब जीवन में ये आचार्य जी स़्ित्रयों की आज़ादी के सम्बन्ध में अपने विचार परिवर्तित अवश्य करेंगे किन्तु कुत्ते की पूँछ बारह वर्ष तक भी नली में रहे, तो भी वह सीधी नहीं होती। आज भी उनके विचारों में कोई परिवर्तन नज़र नहीं आता। उसे याद है कि उन्होंने अमीर भइया से कितनी गन्दी जुबान में बात की थी। दरअसल उन जैसे लोगों ने ही हमारे समाज का विघटन किया है। उन्हीं जैसे लोग तो आज राजनैतिक दलों के शीर्ष नेता है, जिन्होंने वोट बैंक भरने के लिए लोगों के दिलों में नफरत की दीवार खड़ी कर दी है। वरना उन लोगों का बचपन तो एक दूसरे के साथ पे्रम पूर्वक ही बीता था। ये नेता धर्म के नाम पर लोगों को भड़काकर उस आग में अपनी राजनैतिक रोटियों सेंक रहे हैं। पढ़ी-लिखी जनता तो इनकी मंशा जानती है किन्तु गरीब, लाचार व अनपढ़ जनता को ये खरीदका गुमराह कर देते हैं।
पूनम इन्हीं सब विचारों में डूबी हुई थी कि पति की आवाज़ आई तैयार हो गई क्या?टैक्सी आ चुकी है। वह जल्दी-जल्दी तैयार होकर बाहर निकली, तो उसके पति की नज़र साड़ी से होते हुए पूनम के हाथों में गई। उन्होंने चैंकते हुए उससे पूछा कि धानी साड़ी के साथ उसने ये हरे रंग की चूड़ियाँ क्यों पहनीं ?
पूनम अपनी ही विचारों की रौ में बहते हुए बोली,‘ अरे! ये तो काॅन्ट्रास्ट् का ज़माना है। सोने की चूड़ियों के बीच में येहरे काँच की चूड़ियाँ देखिये। कितना सुन्दर काॅन्ट्रास्ट है।’ उसके पति कुछ न समझते हुए उसका मुँह ताकते रह गये।

Parwati Joshi Nainital

लेखिका परिचय : श्रीमती पार्वती जोशी मूल रूप से पिथौरागढ़ में पली बढ़ी है. राजकीय कन्या इंटर कॉलेज पिथौरागढ़ से शिक्षा ग्रहण करने के पश्चात आपने कुमाऊं विश्वविद्यालय से उच्च शिक्षा ग्रहण की. इसके उपरान्त नैनीताल के प्रतिष्ठित अंग्रेजी माध्यम के विद्यालय सेंट मेरीस कान्वेंट में आपने हिंदी की शिक्षिका के रूप में अध्यापन का कार्य किया। सम्प्रति आप अवकाश प्राप्ति के उपरान्त नैनीताल में ही निवास करती हैं और लेखन कार्य कर रही हैं.

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