झारखंड में करारी हार के बाद बोले रघुवर दास- यह मेरी हार, पार्टी की नहीं

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नई दिल्‍ली (nainilive.com)-  झारखंड विधानसभा चुनाव के रुझानों में भारतीय जनता पार्टी अपने प्रतिद्वंद्वी झारखंड मुक्ति मोर्चा-कांग्रेस-आरजेडी गठबंधन से बुरी तरह से मुकाबले से हारती हुई दिखाई दे रही है. झारखंड के मुख्यमंत्री रघुवर दास ने भी अपनी हार स्वीकार कर ली है. उन्होंने कहा कि यह मेरी हार है न कि पार्टी की हालांकि, वोटों की गिनती की शुरुआत में मुख्यमंत्री रघुबर दास ने अपने पक्ष में नतीजे आने की उम्मीद जताई थी. उन्होंने कहा था मैं आखिरी परिणामों का इंतजार कर रहा हूं. बीजेपी जनता का जनादेश स्वीकार करेगी. लेकिन अब उन्होनें अपनी हार स्वीकार कर ली है.

इसके पहले जब रघुबर दास से पूछा गया था कि क्या उम्मीदें हैं आपकी पार्टी तो पीछे जाती हुई दिखाई दे रही है तब उन्होंने कहा था कि अभी 1 लाख वोटों की गिनती होनी बाकी है. जब उनसे पूछा गया कि आपकी पार्टी ने 81 में से 65 सीटें जीतने का दावा किया था, तब रघुवर दास ने कहा कि जिंदगी में बड़ा लक्ष्य रखना चाहिए. उन्होंने कहा, ‘बीजेपी हमेशा बड़ा लक्ष्य लेकर चलती है. मीडिया को पूरी बात में पूरे चुनाव का विश्लेषण कर लेने के बाद ही बता पाउंगा. आपको बता दें कि अब झारखंड विधानसभा चुनाव के परिणाम भी आने शुरू हो गए हैं. तोरपा विधानसभा सीट से बीजेपी के कोचे मुंडा ने जीता चुनाव, तो वहीं खूंटी विधानसभा से बीजेपी उम्मीदवार नीलकंठ सिंह मुंडा जीते.

रघुवर दास की पहचान झारखंड में पांच साल तक मुख्यमंत्री पद पर बने रहने की है. बिहार से अलग होकर झारखंड बने 19 साल हो गए है, परंतु रघुवर दास ही ऐसे मुख्यमंत्री हैं जो लगातार पांच साल तक मुख्यमंत्री पद पर काबिज रहे. यही कारण है कि मुख्यमंत्री पर हार का मिथक तोड़ने को लेकर भी लोगों की दिलचस्पी बनी हुई थी.

ये रहा है इतिहास?

झारखंड के गठन के बाद वर्ष 2000 में बीजेपी सरकार में राज्य में पहले मुख्यमंत्री के रूप में बाबूलाल मरांडी ने कुर्सी संभाली थी. पूर्व मुख्यमंत्री बाबूलाल मरांडी ने वर्ष 2014 में बीजेपी से अलग होकर अपनी पार्टी झारखंड विकास मोर्चा (झाविमो) बना ली और गिरिडीह और धनवाद विधानसभा क्षेत्र से चुनाव मैदान में उतरे, लेकिन दोनों सीटों पर उन्हें हार का सामना करना पड़ा. धनवाद विधानसभाा क्षेत्र में भाकपा (माले) के राजकुमार यादव ने मरांडी को करीब 11,000 मतों से पराजित कर दिया, जबकि गिरिडीह में उन्हें तीसरे स्थान से संतोष करना पड़ा.

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