दमा ( अस्थमा) के रोग में असरदार है आयुर्वेदिक उपचार , जाने हिमान आयुर्वेदा की डॉ हिमानी पाण्डे से
डा. हिमानी पाण्डे, ( बीएएमएस) (nainilive.com) नैनीताल – आज की जीवनशैली में दमा रोग ( Asthama) ने महामारी का रूप धारण कर लिया है। वह किशोर हो, युवा हो या बुजुर्ग सब अवस्थाओं में यह समस्या बढ़ती जा रही है। ख़ास कर शीत ऋतू के आगमन के साथ ही दमा रोगियों की संख्या में वृद्धि हो जाती है. दमा के रोगियों को इस ऋतू में ख़ास ख़याल रखना चाहिए। आइये जानते हैं , क्या हैं इस रोग के कारण और कैसे आयुर्वेद की मदद से इस रोग का उपचार कर सकते हैं.
कारण – इस रोग का इतनी तीव्रता से बढ़ने का मुख्य कारण है –
- दूषित आहार जलन पैदा करने वाले, भारी और कब्ज पैदा करने वाले पदार्थ, शीत पदार्थ जैसे कोल्ड ड्रिंक्स, आइस्क्रीम आदि। खट्टे पदार्थ जैसे दही अथवा देश, काल, प्रकृति विरुद्ध भोजन करना आदि आहार सम्बन्धी कारण हैं।
- दूषित विहार-सीलन, नमी, धूल, धुआँ, तीव्र वायु का सेवन, अधिक श्रम करना, मल-मूत्र आदि अधारणीय वेगों का धारण करना आदि विहार सम्बन्धी काज होते हैं।
- प्रदूषण।
- निरन्तर कम तथा कमजोर होती जा रही रोग प्रतिरोधक क्षमता ( Immunity)
आयुर्वेद की दृष्टि से देखें तो श्वास रोग कफ और वायु दोष की विकृति से उत्पन्न होता है। मूलतः उत्पत्ति पाचन संस्थान से होती है। उचित रूप से आहार का पाचन न होने से कफ विकृत होकर वायु के मार्ग को अवरूद्ध कर हृदय और फुफ्फुस ( Lungs) को विकृत कर देता है। इससे पुनः वायु और कफ की वृद्धि हो जाती है जिससे श्वास मार्ग एवं फुफ्फुस के वायु कोष्ठ कुछ संकुचित हो जाते हैं और उनमें कफ भर जाता है। परिणाम स्वरूप वायु के आने जाने में रूकावट होती है और फेफड़ों में वायु पूर्णरूप से प्रवेश नहीं कर पाती जिससे श्वास रोग उत्पन्न होता है। सामान्यतः वायु कोषों व श्वास नलिकाओं में सदैव कुछ तरल पदार्थ का स्राव होता रहता है, जो फेफड़ों से बाहर जाती श्वास के साथ वाष्प के रूप में निकल जाता है। किन्तु जब फुफ्फुस ( lungs)या नलिकाओं में congestion or inflammation या irritation होती है तो यह स्राव अधिक मात्रा में होने लगता है, इस कारण फुफ्फुस और श्वास नलिकाओं में कफ एकत्रित होने से, वायु के आवागमन के लिए स्थान की कमी से प्रतिक्रिया स्वरूप प्राण और उदान वायु का प्रकोप होने से खांसी और श्वास उत्पन्न होते हैं। खांसी के साथ कफ का निष्कासन आसानी से नहीं होता इसलिए श्वास की तीव्रता बढ़ जाती है। श्वास क्रिया में बाधा होने से आक्सीजन की कमी होने से सभी धातुएं दूषित होती है जिससे बेचैनी, विविध शूल, मोह, भ्रम आदि लक्षण होते है।
आधुनिक चिकित्सा विज्ञान के अनुसार दमा के कारणों में मनोवैज्ञानिक कारण और शारीरिक रूप से किसी भी प्रकार की एलर्जी का होना प्रमुख कारण माना गया है। एलर्जी किसी भी प्रकार की हो सकती है। वह वातावरण से भी हो सकती है और किसी पदार्थ से भी। श्वास नलिकाओं की दीवारों में किन्हीं पदार्थों के प्रभाव से अतिसंवेदनशील क्रिया होने पर शोथ हो जाता है जिससे श्वास मार्ग संकुचित हो जाता है और सांस लेने में असुविधा होती है, जिससे बार-बार जल्दी-जल्दी सांस लेनी पड़ती है, जिसे दमा रोग कहते हैं।
रोगी अपने आहार और विहार पर नजर रख कर यह तय कर सकता है कि किस-किस पदार्थ से उसे एलर्जी है और उन-उन पदार्थों से बच कर दमा रोग में नियंत्रण ला सकता है। डाक्टरों और मनोवैज्ञानिकों के अनुसार मानसिक तनाव, भय, क्रोध, शोक आदि का होना भी श्वसन संस्थान पर प्रभाव डालता है और लम्बे समय तक ऐसी मानसिकता रखने से धीरे-धीरे दमा रोग पनपने लगता है। कई बार वातावरण और स्थान बदलने से मानसिकता व वातावरण से उत्पन्न होने वाले दमा का उपचार सम्भव है।
चिकित्सा – आयुर्वेद में ऐसे कई औषध है जो इस रोग को नियन्त्रित ही नहीं करते बल्कि इस रोग से मुक्ति भी दिलाते हैं।
जैसे – सितोपलादि चूर्ण, श्रृंग भस्म, तालीसादि चूर्ण, श्वास कुठार रस, कनकासव, अभ्रक भस्म आदि। चिकित्सक की देख-रेख में ही औषधियों का प्रयोग करें।
अधिक जानकारी एवं उपचार के लिए आप हमारे क्लिनिक – हिमान आयुर्वेदा क्लिनिक ( Himan Ayurveda Clinic) , 18 , तल्लीताल बाजार ( गंगा स्टोर के सामने) , तल्लीताल , नैनीताल में संपर्क कर सकते हैं।
ईमेल द्वारा संपर्क – himanayurveda@gmail.com
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