व्यायाम – स्वस्थ रहने का एक अनूठा उपाय , जाने क्या हैं इसके फायदे हिमान आयुर्वेदा की डॉ हिमानी से.

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डा॰ हिमानी पाण्डे बी॰ए॰एम॰एस॰, नैनीताल –

आजकल की व्यस्त जीवनशैली में मनुष्य का अपने को स्वस्थ रखने के लिए समय निकाल पाना बहुत मुश्किल हो गया है। अगर मनुष्य थोड़ा सा भी समय निकाल कर व्यायाम करे तो शारीरिक एवं मानसिक दोनों सुख पा सकता है। व्यायाम का वर्णन प्राचीन संहिताओं में भी मिलता है। जिसका उल्लेख आज हम यहां करने जा रहे हैं-
शरीरायासजनकं कर्म व्यायाम उच्यते। (अ. सं. 3/62द्)
जिस कर्म के कारण शरीर में किसी हद तक थकावट पैदा हो, उसे व्यायाम कहते हैं।
इस व्याख्या के अनुसार सभी शारीरिक उपक्रमों को व्यायाम कहा जा सकता है। लेकिन ऐसा सोचना सही नहीं होगा क्योंकि ‘व्यायाम’ शरीर की ऐसी चेष्टा अर्थात् क्रिया है जिससे मन में प्रसन्नता उत्पन्न हो, जो शरीर को स्थिरता प्रदान करे और बल की वृद्धी करे अर्थात् इसका प्रयोग भी मात्रानुसार ही किया जाना चाहिए।
लाघवं कर्मसामध्र्यं दीप्तोऽग्निर्मेदसः क्षयः।
विभक्तघनगात्रत्वं व्यायामादुपजायते।। (अ. हृ. सू. 2/10)

व्यायाम करने से शरीर में लाघव निर्माण होता है, कार्यशक्ति बढ़ती है, जठराग्नि ;पाचकाग्निद्ध प्रदीप्त होती है एवं शरीर का मोटापा कम होता है। इसी कारण अंग-प्रत्यंग स्पष्ट दिखलाई देते हैं।
व्यायाम की मात्रा एवं काल निर्देश
अर्धशक्त्या निषेव्यस्तु बलिभिः स्निग्धभोजिभिः।
शीतकाले वसन्ते च, मन्दमेव ततोऽन्यदा।।

ऐसा व्यक्ति जो बलवान हो और उसके आहार में स्निग्ध परार्थों का समावेश हो, वह शीतकाल (हेमन्त – शिशिर ऋतु ) में एवं वसन्त ऋतु में ‘अर्धशक्ति’ भर व्यायाम करें और अन्य ऋतुओं में उससे भी कम व्यायाम करें।
यहां अर्धशक्ति का आशय है कि जब व्यायाम करते समय हृदय स्थान में स्थित वायु मुख की ओर आने लगे अर्थात् जब व्यायाम करने वाले व्यक्ति को मुख से सांस लेना पड़े तो यह बलार्ध या अर्धशक्ति का लक्षण समझना चाहिए। साथ ही उस व्यक्ति के आँखों में, माथे पर, नासिका के ऊपर, हाथ-पैर तथा सभी संधियों में पसीना आने लगे और मुंह सूखने लगे तब समझना चाहिये कि आधी शक्ति समाप्त हो चुकी है। उस समय व्यायाम करना छोड़ देना चाहिए।
व्यायाम के बाद शरीर का मर्दन (मालिश) आवश्यक होता है लेकिन ऐसा करते समय ध्यान रहे कि मालिश करने से शरीर को किसी भी प्रकार का कष्ट ना पहुंचे। मालिश करने से प्रकुपित वात का शमन करने में मदद मिलती है।

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अतिव्यायाम से होने वाले रोग
अतिव्यायाम करने से तृष्णा,क्षय, श्वास, रक्त पित्त, कास, ज्वर तथा द्दर्दि ( Vomiting) जैसे रोग हो सकते हैं इसलिए जैसे कि आचार्यांे ने स्पष्ट किया है कि ‘अर्धशक्ति’ के अनुसार ही व्यायाम करना चाहिए।

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आयुर्वेद में स्पष्ट रूप से उल्लेख है कि व्यायाम, जागरण, मार्गगमन आदि का सेवन सोच समझ कर करना चाहिए। युक्ति पूर्वक करना चाहिए। उपरोक्त कहे कर्मों का सेवन करते समय अपनी शरीरिक क्षमता को ध्यान में रखना आवश्यक है। अतिरिक्त साहस के कारण अपकी अवस्था उस सिंह की तरह हो सकती है जो अपने द्वारा मारे गए हाथी को खींचकर ले जाने के प्रयास में स्वयं को ही क्षति पहुंचाता है। तात्पर्य यह है कि व्यक्ति को अपनी शारीरिक क्षमता को जानकर व्यायाम आदि कर्म करना चाहिए। यही बात आज अत्यधिक उत्साही व्यक्तियों को ध्यान में रखनी आवश्यक है, जो जोश में व्यायामशालाओं में अपनी शारीरिक क्षमता से भी अधिक श्रम करते हंै, जिससे उनके स्वास्थ्य पर विपरीत परिणाम होता है।

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अधिक जानकारी एवं उपचार के लिए आप हमारे क्लिनिक – हिमान आयुर्वेदा क्लिनिक ( Himan Ayurveda Clinic) , 18 , तल्लीताल बाजार ( गंगा स्टोर के सामने) , तल्लीताल , नैनीताल में संपर्क कर सकते हैं।

ईमेल द्वारा संपर्क – himanayurveda@gmail.com

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