सद्भावना की विरासत
आबाद जाफ़री, नैनीताल (nainilive.com)
समाज की सुख-शान्ति, भाईचारा और सद्भाव को नष्ट करने के लिए अमानवीय शक्तियों ने वैमनस्यता की खोज करके क्या हथियार तलाश कर लिया है। चन्द लोग इसे मिशन बनाकर तरह-तरह की हरकतें करते रहते हैं। मैं भी इनमें से एक हूँ। हमारे देश में हजारों मिसालें ऐसी हैं जो देश को एकसूत्र मंे बाँधती हैं।
बादशाह हुमायूँ की बेगम ‘गुलबदन बेगम के हवाले से’ ‘हुमायूँनामा’ में एक घटना का उल्लेख मिलता है। इस घटना को केरल के महाकवि ‘बल्लतोल’ ने अपनी लेखनी के माध्यम से इस घटना को अमर कर दिया है।
‘एक दिन बादशाह हुमायूँ सैर के लिए निकले तो रास्ते में एक मासूम और खूबसूरत स्त्री को देख कर मुग्ध हो गये। उसके चापलूस सिपाही ने बादशाह को खुश करने के लिए उस लड़की को शाही हरम मंे पहुँचा दिया। हरम में बादशाह उस लड़की को रोता देखकर बेचैन हो गया। उसने लड़की की माँग में सिंदूर देखकर कहा आप किसी की अमानत हैं। लड़की ने उत्तर देते हुए कहा, ”मैं अपने भैय्या को राखी बाँधने जा रही थी और आपके सिपाहियों ने यहाँ पहुँचा दिया।“
बादशाह ने तसल्ली देते हुए कहा, ”पगली! इसमें रोने की क्या बात है? तू भाई के यहाँ जाने के लिए निकली थी और भाई के यहाँ ही पहुँची है। तू मुझे राखी बाँध।“ इतना सुनकर लड़की के आँसू थम गये और हौंठों पर मुस्कान तैर गयी।
बादशाह ने उस लड़की से राखी बँधवाने के बाद लड़की को हरम में जबरन लाने वाले सिपाही सालार को बुलवाया और उसका सिर उतारने का हुक्म जारी किया। सिपहसालार डर से काँपने लगा। लड़की ने हुमायूँ से कहा कि इस पावन अवसर पर जब मुझे आप जैसा भाई मिला है, ये खून-खराबा अनुचित है। अगर आप इजाज़त दें तो मैं सिपहसालार को भी राखी बाँधकर भाई बनालूँ। फिर ऐसा ही हुआ।
स्वामी भक्त भामा शाह से आर्थिक सहायता मिलने के बाद महाराणा प्रताप की विजय का दौर शुरू हुआ। एक के बाद एक किले जीतने लगे। गोगूँदा की लड़ाई में मुगल सेना का नेतृत्व अब्दुर्रहीम खाने-खाना कर रहे थे। राजा प्रताप ज्वर आने के कारण लड़ाई मेंे शरीक नहीं थे। राजपूती सेना का नेतृत्व राणा के बड़े पुत्र अमर सिंह कर रहे थे। लड़ाई में मुगल सेना को पीछे हटना पड़ा। खाने-खाना का हरम भी युद्धभूमि में था। देखकर अमर सिंह ने हरम के गिर्द घेरा डाल दिया। राणा को जब सूचना मिली तो उन्होंने कहा कि ‘अमर सिंह’ तुम मर क्यों नहीं गये, तुम्हें हमारी राजपूती मर्यादा का भी ध्यान नहीं रहा। महाराणा ने युद्ध भूमि में जाकर कहा, खाने-खाना की बड़ी साहिब कौन हैं? वह उनके नजदीक गये और बोले जो सर शहंशाह अकबर के सामने नहीं झुका, उसे मैं आपके कदमों में झुकाता हूँ। आप अपने इस गरीब पुत्र बेटे के यहाँ जो कुछ है, स्वीकार करें।
इसके बाद महाराणा ने 500 राजपूत सैनिकों के साथ हरम की बेगामात को पालकियों में सम्मान सहित विदा किया। अकबर ने जब सुना तो खाने-खाना पर बहुत नाराज हुआ। खाने-खाना ने कहा, ‘‘जहाँ-पनाह! गुस्ताखी माफ़ हो। बेगमात महराणा के यहाँ पूरी तरह सुरक्षित हैं। मैं महाराणा के स्वभाव से परिचित हूँ।
इस प्रकार की हजारांे मिसालें हैं। ऐसे उदाहरण पाठ्यपुस्तकों में प्रमुखता से सम्मिलित किये जायें तो माहौल बन जायेगा। दुःख इस बात का है कि ऐसे उदाहरण सियासत के घटियापन का शिकार हो जाते हैं।
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