153 देशों के 11 हजार 258 वैज्ञानिकों ने घोषित की क्लाइमेट इमरजेंसी

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नई दिल्ली (nainilive.com)- दुनिया के कुछ हिस्सों में बारिश नहीं हो रही है, कहीं इतनी बारिश हो रही है कि बाढ़ से लोगों का जीना मुहाल हो गया है. वायु प्रदूषण से लोगों का दम घुट रहा है. ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन, बढ़ती आबादी की दर, जलवायु पर इंसानी प्रभाव ने खतरे की घंटी बजा दी है लिहाजा दुनिया के 153 देशों के 11 हजार 258 वैज्ञानिकों ने घोषणा कर दी है कि यह क्लाइमेट इमरजेंसी का समय है. इससे निपटने के लिए उन्होंने छह व्यापक नीतिगत लक्ष्य दिए हैं, जिन्हें हर देश को करना चाहिए.

बायोसाइंस जर्नल में इस बारे में एक अध्ययन प्रकाशित किया गया है. ओरेगॉन स्टेट यूनिवर्सिटी के पर्यावरणविद बिल रिपल और क्रिस्टोफर वोल्फ के साथ टफ्ट्स यूनिवर्सिटी के जलवायु वैज्ञानिक विलियम मुमाव और ऑस्ट्रेलिया व दक्षिण अफ्रीका के शोधकर्ताओं ने यह अध्ययन किया है. इसमें साफ तौर पर कहा गया है कि ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन को कम करने की बड़ी चुनौती है. अध्ययन में कहा गया है कि वैश्विक जलवायु वार्ताओं के 40 वर्षों के बावजूद, हमने सामान्य रूप से व्यवसाय किया है और इस पूर्वानुमान को दूर करने में असफल रहे हैं.

अध्ययन में आसानी से समझने वाले संकेतकों के एक सेट पर अपने निष्कर्षों को दिया गया है, जो जलवायु पर मानव प्रभाव को दिखाते हैं. उदाहरण के लिए ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन के 40 साल, जनसंख्या वृद्धि दर, प्रति व्यक्ति मांस उत्पादन, वैश्विक स्तर पर पेड़ों का कम होने का नतीजा है कि वैश्विक तापमान और महासागरों का जल स्तर बढ़ रहा है. इन बातों पर ध्यान देने की जरूरत ऊर्जा के मामले में अध्ययन में कहा गया है कि दुनिया को बड़े पैमाने पर ऊर्जा दक्षता और संरक्षण प्रथाओं को लागू करना होगा.

ऊर्जा के रिनेवल सोर्स (नवीकरणीय स्रोतों) के इस्तेमाल को बढ़ाना होगा ताकि जीवाश्म ईंधन के इस्तेमाल में कमी हो. मगर, यह काम जितनी तेजी से होना चाहिए, उतनी तेजी से नहीं हो रहा है. धरती में बाकी बचे जीवाश्म ईंधन, जैसे कोयला और तेल को जमीन में बने रहने दिया जाए, जो कई जलवायु कार्यकर्ताओं के लिए एक प्रमुख लक्ष्य है. बोस्टन में सिमंस कॉलेज में वैज्ञानिकों की चेतावनी और जीव विज्ञान के प्रोफेसर की एक हस्ताक्षरकर्ता मारिया अबेट का कहना है कि उन्हें उम्मीद है कि इस अध्ययन से लोगों में जागरुकता बढ़ेगी. उन्होंने कहा कि अन्य जीवों की तरह हम भी अपने आस-पास के वातावरण के दूरगामी पर्यावरणीय खतरों को पहचानने के लिए अनुकूलित नहीं हैं.

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