बढ़ती नजदीकियां दिलचस्पी बढ़ाए ब्रह्मांड का मिलन -राशियों मे टकरार बताए
पृथ्वी के करीब आता मंगल, फोबस को खींचता लाल रंग
बबलू चंद्रा , नैनीताल ( nainilive.com )- 1877, 1939, 1965, 1971, 75 1988, 2003 और 2287 मे आएगा बेहद करीब पड़ोसी ग्रह लाल गोला जिसके लिए महाभारत मे उल्लेख किया-प्रत्यागत्य पुनजिष्णुजघरने, संशप्तकानम बहुनु। वक्रातिवकरगमनामंददधृकः इन ग्रह। (अर्थात जैसे मंगल ग्रह तीव्र वक्र गति से चलता हुआ अनिष्टकारी सिद्ध होता है, वैसे ही विजयी अर्जुन दंडधार की सेना से पुनः लौटकर बहुत सारे स सप्तकों का संहार शुरू कर दिया)। वही महाकवि कालिदास अपने नाटक मे- शीघ्रमप्रकमामह, यावध्दडॉरको राशिमिवानुवक्रम प्रतिममन न करोति। (यहाँ से तुरंत चले जाओ, इससे पहले की मंगल पुनः राशि मे लौट जाए।।
मार्स जो आजकल रात को आकाश मे लाल बल्ब की तरह जगमगाता हुआ, कभी चाँद के करीब तो कभी सप्तऋषियों के करीब से कभी सीधे तो कभी उलटा(वक्री)जा रहा है।
भारतीय आख्यानों मे जिसे भूमि पुत्र भौम कहा गया, यूनानी रोमन कथाओं मे लाल रंग युद्ध का देवता मार्स । कई रातों तक मंगल को देखा तो ये लाल गोला कभी तेज कभी मंद कभी उलटा तारो की पृष्टभूमि मे एक गोल चक्कर लगाता हुआ नजर आया। इसे वैज्ञानकी और ज्योतिषी इसकी वक्री चाल कहते है। और इसे अनिष्ठकारी वक्री चाल बता कर राशियों मे प्रभाव बता दिया जाता है जबकि मेरे लिए ये एक भृम है। क्योंकि इसका एक कारण ये है कि जिस पृथ्वी से हम इसे देख रहे है सूर्य का चक्कर लगाते हुए अपनी कक्षा गति 30किमी प्रति से, है ओर जिसे देख रहे है उसकी 24किमी प्रति सेकेंड है।
प्राचीन ग्रन्थों मे कही भी स्पष्ठ नहीं है कि आकाश मे ये चाल ये गतियॉ कैसे उत्पन्न हुई। 1877 ईसवी मे मंगल के पृथिवी की करीब आने पर मंगल की सतह पर नदियों नहरों का जाल दिखा, उसके चाँद दिखे। और हमारी कल्पनाओं का संसार यहाँ जीवन होने के गोते लगाते हुए मानने लग गया था कि यहाँ भी प्राणियों का वास है ओर एलियंस की खोज शुरू हो गई थी।
अन्तरिक्षयात्राओ का दौर शुरू हुआ तो कल्पनाओं के कोरे कागज जानकारियों से भरते हुए छपते रहे। 1894 मे खगोविद परसिवल लोबेल ने फैलगस्टाफ अरिजोना मे के वेधशाला बना कर कई सालों तक मंगल का अवलोकन किया, कई मानचित्र बनाये 500 नहरें दर्शाई और1908 मे मंगल: जीवन का धारक शीर्षक से एक ग्रन्थ लिखा ओर वहाँ बुद्धिमान प्राणियों का प्रतिपादन किया।
1898 मे एच जी वेल्स ने अपने उपन्यास ग्रहो का युद्ध मे लिखा कि मंगलवासी पानी की प्राप्ति के लिए पृथिवी मे आक्रमण करते हैं। सन 1965 मे जब ये पृथ्वी के करीब आया तब पहली बार नासा के मैरिनर-4 ने इस ग्रह की 21 फोटुक खिंची थी,। अगस्त 1971 मे इसकी दूरी 562 लाख किमी थी, 1975 मे पुनः करीब आने पर वाइकिंग-1 यान ने इसकी जलवायु व सतह के बारे मे जानकारी दी, सितंबर 1988 मे 584 की दूरी जब थी तब फोबोस नाम के दो स्वचालित यान मंगल के सतह पर उतारे गए। 28 अगस्त को 2003 को 60 साल बाद ये पृथ्वी के बेहद करीब 558 लाख किमी की दूरी पर पहुँच गया था। तब बग्गीगाड़ियों ने मंगल ग्रह पर उतर कर सैरसपाटा किया और ढेर सारी जानकारियां बताई, इसके दक्षिण ध्रुव मे हेलास खड्ड जो 2000 किमी चौड़ा व 24 किमी ऊंचा है,, सबसे बड़ा ज्वालामुखी शिखर ओलंपस मॉम्स 600 किमी चौड़ा व हमारे एवरेस्ट चोटी से तीन गुना ऊंचा है। धूलभरे तूफान रौद्र रूप से आते जाते रहते है। तापमान शून्य से नीचे 55 डिग्री से, है। धुर्वीय क्षेत्र तुषार परतों से ढके रहते हैं, ओर इसकी सतहों पर नदियों व उनकी सहायक नदियों के सूखे पाट भी मौजूद है जो 1500 किमी लंबे है।
खगोलविदों का अनुमान है कि किसी समय इन नदियों मे बेशुमार पानी बहा होगा। जो शायद अब बर्फ रूप मे अब तस्वीरों से पता चलता है की इसके उत्तरी व दक्षिणी दोनों ध्रुवीय क्षेत्रो के नीचे बर्फरूप पानी की परतें मौजूद है। इससे ये भी पता चला कि यहाँ गर्मी व सर्दी के लंबे दौर चलते हैं। ऑक्सीजन रही हो या नहीं पर पानी अवश्य रहा है, ओर कुछ सूक्ष्म जीवाणु बिना ऑक्सीजन के भी पनप सकते है। आरंभ मे पृथिवी मे भी ऑक्सीजन नहीं थी।
ये लाल गोला पृथिवी के करीब आकर टकराये ये बहुत दूर की बात है पर मंगल अपने ही चाँद को अपनी गुरुत्वाकर्षण शक्ति से खींच रहा है और इसके मंगल से लाखों करोड़ो साल मे टकराने की संभावना को नकारा नही जा सकता। खगोलविदों का अनुमान है कि तीन से सात करोड़ वर्षो मे फोबोस उपग्रह मंगल की सतह पर जा गिरेगा।
इसके लाल रंग के लिए उदाहरण स्वरूप नैनीताल की लाल नदी है जो नैनीताल के बल्दियानाले मे मिलती है,, जहां अंग्रेजो के लोहे के जंग लगे विद्युत टरबाइन मिट्ठी मे मिल पानी को लाल कर देते है ठीक वैसे ही मंगल की बालूमय मिट्टी मे लौह ऑक्साइड मिला होने के व गैसों से सहयोग से ये लाल दिखता है। भूमिपुत्र मंगल 6 अक्टूबर 20 को एक नई दिलचस्पी के साथ फिर होगा हमसे बेहद करीब,
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