हरियाली का पर्व हरेला कुमाऊँ के अधिकांश क्षेत्रों में मंगलवार (आज) बोया गया हरेला

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हिमानी बोहरा, नैनीताल ( nainilive.com)- कुमाऊँ में सौंण के महीने की संक्रान्ति को मनाए जाने वाले लोकपर्व “हरेला” के लिए मंगलवार 7 जुलाई को सतनाज यानी सात प्रकार का अनाज, मक्का,धान,जौं, राई,तिल,मटर व मॉस को मिलाकर पूरे विधि विधान व पूजा-पाठ के बाद घर के अंदर देवस्थल में बो दिया गया।

हरेला बोने के लिए जो मिट्टी उपयोग में लाई जाती है , वह मिट्टी एक दिन पहले ही खेत से निकाल ली जाती है। मिट्टी की ऊपरी सतह को हटाने के बाद ही उसे निकाला जाता है। इसका कारण है कि मिट्टी की ऊपरी सतह में कई तरह की घास- फूस व दूसरी तरह की सड़ी – गली चीजें भी होती हैं। इस सब को हटाने के बाद ही थोड़ा नीचे से मिट्टी हरेला बोने के लिए खोदी जाती है। एक तरह से हरेला बोने के लिए पवित्र मिट्टी का प्रयोग किया जाता है। मिट्टी को खेत से लाने के बाद उसे अच्छी तरह से छान लेते हैं। ताकि उसमें खरपतवार की कोई जड़ आदि न रह जाए अगर ऐसा होगा तो वह भी हरेले के साथ ही जम जाएगा। उसके कारण खराब भी हो सकता है। उसके बाद मिट्टी को धूप में अच्छी तरह से सूखा लेते हैं। जिससे मिट्टी बहुत ही भुरभुरी हो जाती है। और ऐसी मिट्टी में हरेला बहुत ही अच्छी तरह उगता है।

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कुछ लोग गाड़-गधेरों की बारीक रेत का उपयोग भी हरेला बोने के लिए करते हैं। रेत को लेकर उसे किसी बर्तन में डालकर पानी से धो लिया जाता है। उसके बाद उसे धूप में सूखा लेते हैं। रेत चूँकि बहते हुए पानी का होता है और उसमें खरपतवार व दूसरी तरह की सड़ी-गली चीजें भी नहीं होती हैं। लिहाजा रेत को भी हरेला बोने के लिए पवित्र माना जाता है।

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मंगलवार से ठीक दसवें दिन संक्रान्ति 16 जुलाई को हरेला काटा जाएगा। तब तक प्रतिदिन इसमें प्रात: काल की पूजा – अर्चना के समय शुद्ध जल छिड़का जाएगा। पूजा स्थल में कमरे के अन्दर रखे जाने के कारण हरेला जब बड़ा हो जाता है। तो वह पीलापन लिए हुए होता है।

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