पहाड़ी जंगली खट्टा-मीठा रसीला फल, हिसालू : हिसालू जात बड़ी रिसालू , जाँ-जाँ जाँछे, उधेड़ि खाँछे
हिमानी बोहरा, नैनीताल ( nainilive.com)- जेठ-असाड़ (मई-जून) के महीने में समुद्र तल से 750 से 1800 मीटर की ऊँचाई की पहाड़ी क्षेत्रों की रूखी-सूखी धरती पर, छोटी-छोटी कटीली झाड़ियों में उगने वाला जंगली खट्टा-मीठा रसदार फल है हिसालू।
आमतौर पर जंगल में घास काटने गई महिलाएं, गाय, बकरी चुगाने गए ग्वाले, स्कूल से घर आते-जाते बच्चो के लिए ये किसी से अमृत से कम नही होता है। क्योंकि ये पानी की कमी भी पूरी करता है। साथ ही कुछ हद तक भूख मिटाने में भी मददगार साबित होता है। लेकिन इस बार अप्रैल महीने में हुई अत्यधिक बारिश व ओलावृष्टि के चलते, काफी कम मात्रा में ही लोगो को हिसालू खाने के लिए मिल रहा है।
प्रसिद्ध कवि गुमानी पन्त ने हिसालू के बारे में लिखा है :
हिसालू की जात बड़ी रिसालू , जाँ-जाँ जाँछे उधेड़ि खाँछे, यो बातक क्वे नॉक नी मानून किलेकि दूध दिड़ी
गोरुक लात खाँड़ पड़ी।
यानी हिसालू की नस्ल बड़ी नाराजगी भरा है , जहां-जहां जाता है, बुरी तरह खरोंच देता है, तो भी कोई इस बात का बुरा नहीं मानता, क्योंकि दूध देने वाली गाय की लातें खानी ही पड़ती हैं।
पोषक तत्वो से भरा हुआ है हिसालू।
हिसालू में पोषक तत्वों की कोई कमी नही है इसमें कार्बोहाइड्रेट, कैल्शियम मैग्नीशियम, आयरन, जिंक, पोटेशियम, सोडियम व एसकरविक एसिड प्रचुर मात्रा में उपलब्ध है। इसमें विटामिन सी 32 प्रतिशत, फाइबर 26 प्रतिशत, मैंगनीज़ 32 प्रतिशत, व मुख्य रूप से में लौ गलीसमिक, जिसमे की शुगर की मात्रा सिर्फ 4 प्रतिशत तक ही पायी गयी है।
औद्योगिक रूप में भी इसका उपयोग किया जाता है, विभिन्न प्रकार के खाद्य पदार्थो के निर्माण में इसका उपयोग किया जाता है जैसे जैम, जैली, विनेगर, चटनी व वाइन आदि में। साइट्रिक एसिड, टाइट्रिक एसिड, का काफी अच्छा स्रोत इसे माना गया है।
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