राष्ट्रीय वेब गोष्टी में प्रोफेसर ललित तिवारी ने रखी अपनी बात

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संतोष बोरा , नैनीताल ( nainilive.com )- मानव संसाधन विकास मंत्रालय व चमन लाल महाविद्यालय लढ़ौरा हरिद्वार द्वारा आयोजित, भारत में शिक्षा और पर्यावरण के लिए कोविड-19 की वैज्ञानिक एवं तकनीकी शब्दावली पर राष्ट्रीय बेब गोष्ठी में कुमाऊँ विश्वविद्यालय, से प्रो ललित तिवारी ने अष्टवर्ग एवं औषधीय पौधों विषय पर अपनी बात रखी।

प्रो तिवारी ने कहा कि विश्व में 17 लाख 50 हजार प्रजातियाँ जैव विविधता के अन्तर्गत ज्ञात है। किन्तु अनुमान है कि 5-15 मिलीयन तक प्रजातियाँ हो सकती है। अभी तक मात्र 20 प्रतिशत जैव विविधता का मूल्याकंन हुआ है। अमेरिका में 40 प्रतिशत दवायें जैव विविधता आधारित बनती है।

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उन्होने कहा कि कोविड-19 के प्रभाव में जब मानव को सुरक्षित रहना है तो सतत् विकास एवं संरक्षण पर विशेष जोर देना होगा। भारत में जैव विविधता का 10.69 प्रतिशत विश्व का है। व 7555 औषधीय पौधें भारत में उपलब्ध है। विश्व के कुल 4 लाख 22 हजार पौधों में से 52885 औषधीय गुणयुक्त पौधें है।

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उत्तराखण्ड उद्योग में शामिल 250 कूड ड्रग पौधों में फैबेसी, एसटरेसी, लैमीऐसी, यूफोरर्बियेसी, एपिऐसी कुल महत्वपूर्ण है। विश्व में औषधीय पौधों का 14 विलीयन डालर का कारोबार प्रतिवर्ष होता है। भारतीय हिमालयी क्षेत्र में पायी जाने वाली 1748 प्रजातियों में से उत्तराखण्ड में 701 पायी जाती है। आज कोविड-19 काल में हम प्रतिरक्षा तथा प्रतिरोधकता बढ़ाने क¢ लिए तुलसी, नीम, अश्वगंधा, गिलोय का प्रयोग कर रहे है जो पूर्व में भी करते रहे है।

अतीश, कुथ, हत्थाजड़ी, सतवा, चंद्रा, ब्रजदंती, रागी, थुनेर, अमलताश, हरड़ की उपयोगिता हमेशा बनी रही है। अष्टवर्ग पर प्रकाश डालते हुए उन्होने कहा कि जीवक, रिश्वाक, मेदा, महामेदा, काकोली, क्रिशकाकोली, रिद्वि, वृद्वि का मिश्रण अष्टवर्ग है तथा ये वही पौधें है जिन्हें रिषि चवन ने ग्रहण कर युवावस्था प्राप्त की तथा वही से चवनप्राश बना। ये अष्टवर्ग शरीर की प्रतिरोधक क्षमता में वृद्वि कर शरीर को स्वस्थ रखता है तथा उसकी ताकत बढ़ाता है किन्तु आज मावन के दोहन से ये दुलर्भ श्रेणी में आ गयी है।

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