वरिष्ठ कांग्रेसी नेता त्रिभुवन फर्त्याल ने प्रवासियों के राज्य वापसी को सुअवसर के रूप में लेने को लेकर दिए राज्य सरकार को महत्वपूर्ण सुझाव

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नैनीताल ( nainilive.com )- वरिष्ठ कांग्रेसी नेता , पूर्व सचिव -प्रदेश कांग्रेस एवं ताड़ीखेत से क्षेत्र पंचायत सदस्य त्रिभुवन फर्त्याल ने आज सचिव , मुख्यमंत्री एवं आयुक्त कुमाऊं मंडल अरविन्द सिंह ह्यांकी से मुलाकात कर उन्हें राज्य में वापस लौट रहे प्रवाशी उत्तराखंडियों को एक सुअवसर के रूप में लेकर उनका योगदान राज्य के विकास में सकारात्मक एवं सार्थक रूप में करने को लेकर ज्ञापन सौपान। अपने ज्ञापन में उन्होंने विभिन्न मुद्दों एवं प्रवासियों को लेकर प्राथमिकता के आधार पर बिंदुवार ज्ञापन के माध्यम से अहम् सुझाव सौंपे हैं।

उन्होंने अपने ज्ञापन में कहा की , जिस प्रकार से कोरोना संक्रमण के काल में उत्तराखंड राज्य से बाहर प्रवास कर रहे प्रवासीगण वापस अपने मूल गांवों को लौटे हैं, हम सभी के सम्मुख इन प्रवासियों का इतनी बड़ी तादाद में आना ना केवल एक चुनौती है बल्कि पलायन के दर्द से कराह रहे उत्तराखंड के पर्वतीय क्षेत्रों के लिए एक सुअवसर भी है या यूं कहें कि यह संख्या वरदान भी साबित हो सकती हैं,तो अतिश्योक्ति नहीं होगी। मनरेगा को लेकर उन्होंने कहा कि , मनरेगा ग्रामीण अर्थव्यवस्था की रीढ़ के रूप में स्थापित हुई हैं। सौ दिन के रोजगार गारंटी के सापेक्ष मनरेगा के अंतर्गत वर्तमान में ₹201 की दैनिक मजदूरी दर अनुमान्य हैं, जबकि वर्तमान में बाजार में दैनिक मजदूरी प्रचलित दर लगभग ₹500 हैं।महोदय आपके माध्यम से राज्य सरकार से निवेदन करना चाहता हूं कि बाजार एवं मनरेगा में दैनिक मजदूरी दर के मध्य अंतर को पाटने हेतु राज्यांश के रूप में मनरेगा में दैनिक अकुशल मजदूरी दर को लगभग ₹450 किया जाना नितांत आवश्यक हैं,जिससे कि बाहर से आए प्रवासी भी अधिक से अधिक संख्या में मनरेगा के माध्यम से पूरे मनोयोग एवं रुचि के साथ कार्य कर सकें। यदि संशोधित दर को तत्काल प्रभाव से लागू किया जाए तो वर्तमान में मनरेगा को संचालित करने में जमीनी स्तर पर होने वाली बहुत सी व्यवहारिक समस्याओं का बहुत हद तक समाधान हो सकेगा एवं मनरेगा पर्वतीय ग्रामीण अंचलों में स्थानीय वासियों को रोजगार उपलब्ध करवाकर पलायन पर अंकुश लगाने में काफी हद तक एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती हैं।

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वर्तमान आलोक में बाहर से आने वाले प्रवासियों की कार्यकुशलता के अनुरूप वर्गीकृत कर युद्ध स्तर पर कार्य योजना बनाने की बेहद आवश्यकता हैं। बीपीओ, कंप्यूटर सहित अन्य तकनीकी कार्य करने वाले प्रवासियों हेतु मनरेगा के प्रभावशाली कार्य योजना बनाने की दरकार हैं। हम स्थानीय स्तर पर सी०एस०सी (कॉमन सर्विस सेंटर) को स्थापित करने के नियमों में व्यवहारिक शिथिलीकरण कर एवं कम्प्यूटर सहित अन्य तकनीक से जुड़ी संबंधित ईकाइयों को स्थापित करने हेतु प्रदेश स्तर पर आर्थिक प्रोत्साहन देकर भी उक्त वर्ग के प्रवासियों सहित स्थानीय वासियों को रोजगार उपलब्ध करवा सकते हैं। प्रवासियों के आने से एवं मनरेगा में दैनिक मजदूरी को संशोधित करने के उपरांत मनरेगा के कार्यो में तेजी आना स्वभाविक हैं, जिससे मनरेगा को विकास खंडों के स्तर पर सफलतापूर्वक संचालित करने हेतु एक से अधिक डी०पी०ओ, बेयर फुट टेक्नीशियन, रोजगार सेवक की आवश्यकता पड़ना बहुत स्वाभाविक हैं, उक्त पदों को सृजित करवा कर भी रोजगार उपलब्ध करवाया जा सकता हैं,जबकि इन पदों के वेतनमान परोक्ष रूप से मनरेगा के कार्यों से जुड़ी हुई हैं। मनरेगा के दायरे को बढ़ाते हुए विकासखंड, जिला पंचायतों एवं ग्राम पंचायत के कार्यालयों के विभिन्न स्तरों पर कार्यों को संचालित करने हेतु भी स्थानीय युवाओं सहित प्रवासियों को रोजगार उपलब्ध करवाया जा सकता हैं।

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उत्तराखंड राज्य में लगभग 12085 वन पंचायतें स्थापित हैं, जो कि प्रदेश के लगभग 13% वनों की देखरेख कर रही हैं। महोदय, वन पंचायतों के अधिकारों को बढ़ाने के साथ ही साथ संबंधित ग्राम पंचायतों के युवा मंगल दलों, महिला मंगल दलों स्वयं सहायता समूह आदि के माध्यम से वन विभाग की देखरेख में वन संपदा के दोहन का पूर्ण अधिकार प्राप्त होने से भी ना केवल रोजगार उत्पन्न होगा बल्कि स्थानीय लोगों की भागीदारी होने से वनों में आग लगने जैसी घटनाओं पर बहुत हद तक अंकुश लगाने में मदद प्राप्त होगी।

कृषि के क्षेत्र में लोगों के रुझानों को बढ़ाने के लिए कृषि कार्य को मनरेगा से जोड़ते हुए, खरीफ और रबी की समस्त फसलों का आवश्यक बीमा राज्य सरकार के स्तर पर सुनिश्चित किया जाए एवं “प्रत्येक फसल” की न्यूनतम समर्थन मूल्य राज्य स्तर पर निर्धारित कर विपणन के ढांचे को सुदृढ़ किया जाने की बेहद आवश्यकता हैं। पर्वतीय क्षेत्र में अधिकतर किसान सीमांत काश्तकार हैं, अतः उनकी तैयार फसलों को विपणन केंद्र तक पहुंचाने हेतु सहकारिता एवं अन्य सुलभ- सुगम माध्यमों की नितांत आवश्यकता हैं, अन्यथा अपनी सीमित कृषि रकबे के सापेक्ष फसलों को सीमांत काश्तकार औने पौने दामों में बिचौलिए के माध्यम से बेचने के लिए मजबूर हैं। कृषि क्षेत्र को अधिक लाभकारी एवं रुचि पूर्ण बनाने के लिए हाइड्रोपोनिक आदि जैसी तकनीकों पर निरंतर शोध कार्य को बढ़ावा दिए जाने की भी आवश्यकता हैं। इन तकनीकों से कम परिश्रम एवं स्थान में अधिक कृषि उपज पैदा की जा सकती हैं, ऐसी तकनीकों को महाअभियान के रूप में काश्तकारों विशेषकर पर्वतीय क्षेत्र में प्रचलित एवं प्रसारित करवा कर भी स्थानीय पर्वतीय लोगों को पुनः लाभकारी काश्तकारी से जोड़कर रोजगार सृजित किया जा सकता हैं।

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उत्तराखंड राज्य में पर्यटन गतिविधियां लगभग शून्य हो चुकी हैं, अतः राज्य में परोक्ष अपरोक्ष रूप से पर्यटन गतिविधियों पर आधारित समस्त व्यवसायियों को उनके द्वारा लिए गए समस्त ऋणों के सापेक्ष किश्तों के भुगतान हेतु आगामी एक वर्ष की छूट एवं उपरोक्त काल में ब्याज शून्य किया जाए।

सुक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्योग की परिभाषा को पुनः परिभाषित करते हुए न्यूनतम लागत की सीमा को 40 लाख निर्धारित किया जाए, जिससे कि विशेषकर पर्वतीय क्षेत्र में स्थानीय बाशिंदों द्वारा स्थापित विभिन्न स्तर की ईकाइयों जैसे फूड प्रोसेसिंग यूनिट,लीसा उद्योग, होटल रेस्टोरेंट, रिसार्ट ,आरा मशीन आदि को इस संकट काल में प्रोत्साहित किया जा सके एवं सरकार द्वारा पूर्व में दिए गए आर्थिक राहत पैकेज के लाभ के दायरे में लाया जा सके।


पर्वतीय सीमांत काश्तकारों सहित बीपीएल श्रेणी एवं असंगठित क्षेत्र के कर्म कारों के खातों में डी०बी०टी के माध्यम से तत्काल ₹10000 की धनराशि प्रतिमाह कोरोना काल के दौरान उनके न्यूनतम स्तर पर जीवन यापन करने हेतु उपलब्ध करवाया जाए।

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