देश को हर क्षेत्र में बनाना होगा आत्मनिर्भर , बढ़ें पूरे आत्मविश्वास के साथ – प्रधानमन्त्री नरेंद्र मोदी
न्यूज़ डेस्क , नई दिल्ली( nainilive .com )- प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी आज मन की बात की 68वीं कड़ी में देश को देश को संबोधित करते हुये कहा कि देश के नागरिकों ने अपने दायित्वों का एहसास किया है. उन्होंने कहा कि आम तौर पर ये समय उत्सव का है. जगह-जगह मेले लगते हैं, धार्मिक पूजा-पाठ होते हैं. कोरोना के इस संकट काल में लोगों में उमंग और उत्साह तो है ही, मन को छू लेने वाला अनुशासन भी है. हम बहुत बारीकी से अगर देखेंगे, तो एक बात अवश्य हमारे सामने आएगी कि हमारे पर्व और पर्यावरण. इन दोनों के बीच एक बहुत गहरा नाता है.
उन्होंने कहा कि बिहार के पश्चिमी चंपारण में सदियों से थारू आदिवासी समाज के लोग 60 घंटे के लॉकडाउन, उनके शब्दों में 60 घंटे के बरना का पालन करते हैं. प्रकृति की रक्षा के लिए बरना को थारू समाज के लोगों ने अपनी परंपरा का हिस्सा बना लिया है और ये सदियों से है.
प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि गणेशोत्सव भी कहीं ऑनलाइन मनाया जा रहा है, तो ज्यादातर जगहों पर इस बार इकोफ्रेंडली गणेश जी की प्रतिमा स्थापित की गई है. ओणम की धूम तो, आज दूर-सुदूर विदेशों तक पहुंची हुई है. अमेरिका हो, यूरोप हो या खाड़ी देश हों, ओणम का उल्लास आपको हर कहीं मिल जाएगा. ओणम एक अंतरर्राष्ट्रीय पर्व बनता जा रहा है.
प्रधानमंत्री मोदी ने आगे कहा कि किसानों की शक्ति से ही तो हमारा जीवन, हमारा समाज चलता है. हमारे पर्व किसानों के परिश्रम से ही रंग-बिरंगे बनते हैं. अन्नानां पतये नम:, क्षेत्राणाम पतये नम:. अर्थात, अन्नदाता को नमन है, किसान को नमन है. हमारे देश में इस बार खरीफ की फसल की बुआई पिछले साल के मुकाबले 7 प्रतिशत ज्यादा हुई है. मैं इसके लिए देश के किसानों को बधाई देता हूँ, उनके परिश्रम को नमन करता हूं.
प्रधानमंत्री मोदी ने आगे कहा कि हमारे चिंतन का विषय था, खिलौने और विशेषकर भारतीय खिलौने. हमने इस बात पर मंथन किया कि भारत के बच्चों को नए-नए खिलौने कैसे मिलें. भारत खिलौने बनाने का बहुत बड़ा हब कैसे बने. उन्होंने कहा कि मन की बात सुन रहे बच्चों के माता-पिता से क्षमा मांगता हूं, क्योंकि हो सकता है कि उन्हें अब, ये मन की बात सुनने के बाद खिलौनों की नयी-नयी मांग सुनने का शायद एक नया काम सामने आ जाएगा.
खिलौने ने धन का, सम्पत्ति का, जरा बड़प्पन का प्रदर्शन कर लिया, लेकिन उस बच्चे की रचनात्मक भावना को बढऩे और संवरने से रोक दिया. खिलौना तो आ गया, पर खेल ख़त्म हो गया और बच्चे का खिलना भी खो गया. एक तरह से बाकी बच्चों से भेद का भाव उसके मन में बैठ गया. महंगे खिलौने में बनाने के लिये भी कुछ नहीं था, सीखने के लिये भी कुछ नहीं था. यानी कि एक आकर्षक खिलौने ने एक उत्कृष्ठ बच्चे को कहीं दबा दिया, छिपा दिया, मुरझा दिया. भारत के कुछ क्षेत्र खिलौनों के केन्द्र के रूप में भी विकसित हो रहे हैं. जैसे, कर्नाटक के रामनगरम में चन्नापटना, आन्ध्र प्रदेश के कृष्णा में कोंडापल्ली, तमिलनाडु में तंजौर, असम में धुबरी, उत्तर प्रदेश का वाराणसी, ऐसे कई ऐसे स्थान हैं.
उन्होंने आगे कहा कि खिलौनों के केन्द्र बहुत व्यापक हैं. गृह उद्योग हो, छोटे और लघु उद्योग हो, एमएसएमई हों, इसके साथ-साथ बड़े उद्योग और निजी उद्यमी भी इसके दायरे में आते हैं. इसे आगे बढ़ाने के लिए देश को मिलकर मेहनत करनी होगी. खिलौना वो हो जिसकी मौजूदगी में बचपन खिले भी, खिलखिलाए भी. हम ऐसे खिलौने बनाएं, जो पर्यावरण के भी अनुकूल हों. मैं देश के युवा टैलेंट से कहता हूं कि आप भारत में भी गेम्स बनाइये. भारत के भी गेम्स बनाइये. कहा भी जाता है- लेट दी गेम्स बिगेन! तो चलो, खेल शुरू करते हैं.
प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि आज जब हम देश को आत्मनिर्भर बनाने का प्रयास कर रहे हैं, तो हमें पूरे आत्मविश्वास के साथ आगे बढऩा है. हर क्षेत्र में देश को आत्मनिर्भर बनाना है. एक ऐप है कुटुकी. ये छोटे बच्चों के लिए ऐसा इंटरेक्टिव ऐप है जिसमें गानों और कहानियों के जरिए बात-बात में ही बच्चे गणित और विज्ञान में बहुत कुछ सी. इसमें एक्टिविटी भी हैं, खेल भी हैं.
उन्होंने कहा कि पूरे देश में सितम्बर महीने को पोषण माह के रूप में मनाया जाएगा. पोषण का मतलब केवल इतना ही नहीं होता कि आप क्या खा रहे हैं, कितना खा रहे हैं, कितनी बार खा रहे हैं. इसका मतलब है आपके शरीर को कितने जरुरी पोषक तत्व मिल रहे हैं.
प्रधानमंत्री मोदी ने सुरक्षाबलों के दो श्वान सोफी और दूसरी विदा का जिक्र करते हुये कहा कि सोफी और विदा भारतीय सेना के श्वान हैं. उन्हें सीडीएस के कमेंडेशन काड्र्स से सम्मानित किया गया है. उन्होंने कहा कि हमारी सेनाओं में, हमारे सुरक्षाबलों के पास, ऐसे कितने ही बहादुर श्वान है जो देश के लिये जीते हैं और देश के लिये अपना बलिदान भी देते हैं.
उन्होंने कहा कि कुछ दिनों बाद, पांच सितम्बर को हम शिक्षक दिवस मनायेगें. हम सब जब अपने जीवन की सफलताओं को अपनी जीवन यात्रा को देखते है तो हमें अपने किसी न किसी शिक्षक की याद अवश्य आती है.
उन्होंने कहा कि शिक्षक और छात्र मिलकर नया कर रहे हैं. नई शिक्षा नीति के जरिये इसमें अहम भूमिका निभाएंगे. भारतीयों के इनोवेशन और सॉल्यूशन देने की क्षमता का लोहा हर कोई मानता है और जब समर्पण भाव हो, संवेदना हो तो ये शक्ति असीम बन जाती है. हमारे यहां के बच्चे, हमारे विद्यार्थी, अपनी पूरी क्षमता दिखा पाएं, अपना सामथ्र्य दिखा पाएं, इसमें बहुत बड़ी भूमिका पोषण की भी होती है. उन्होंने कहा कि यह भी बहुत आवश्यक है कि हमारी आज की पीढ़ी, हमारे विद्यार्थी, आजादी की जंग के हमारे देश के नायकों से परिचित रहे, उसे उतना ही महसूस करें.
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