स्वतंत्रता आंदोलन का पहला संखनाद 1857 की क्रांति की शुरुवात कुमाऊँ से

स्वतंत्रता आंदोलन का पहला संखनाद 1857 की क्रांति की शुरुवात कुमाऊँ से

स्वतंत्रता आंदोलन का पहला संखनाद 1857 की क्रांति की शुरुवात कुमाऊँ से

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संतोष बोरा, नैनीताल ( nainilive.com )- 1857 की क्रांति स्वतंत्रता आंदोलन का पहला शंखनाद। इसके स्वर जैसे ही कुमाऊं के वीरों के कानों पर पड़े, वे आजादी के लिए स्वतंत्रता संग्राम में कूद पड़े। कई वीरों ने अपनी जान की बाजी लगा दी। स्वतंत्रता आंदोलन को कुचलने के लिए अंग्रेजों ने नैनीताल के एक गधेरे में एक साथ कई वीरों को फांसी पर लटका दिया। इस गधेरे को तब से लेकर अब तक फांसी गधेरा ही कहा जाता है।

1857 की क्रांति ने ही लोगों को अत्याचारों से मुक्ति की राह दिखाई। पूरे देश में आजादी की लड़ाई ने जोर पकड़ा और कुमाऊं भी इससे अछूता नहीं रहा। आंदोलन की भनक अंग्रेजों को लगी तो तत्कालीन ब्रिटिश कमिश्नर हेनरी रैमजे कुमाऊं पहुंचा और कुमाऊं-गढ़वाल में मार्शल लॉ लागू कर दिया। आंदोलनकारी गतिविधियों पर रोक लगा दी गई। इससे अंग्रेज शासकों ने जुल्म शुरू कर दिए, लेकिन इससे आंदोलन कुंद होने के बजाय और तेज हो गया।

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गरम दल स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों को नैनीताल के फांसी गधेरे में फंदे से लटका दिया गया। 1958 तक स्वतंत्रता संग्राम की लड़ाई काली कुमाऊं तक अंग्रेजों के खिलाफ उग्र बगावत के रूप में फैल गई थी। देश भक्त कालू सिंह महरा, आनंद सिंह फत्र्याल और विशन सिंह करायत ने आर-पार की लड़ाई का एलान कर दिया। आनंद सिंह फत्र्याल और विशन सिंह करायत को विद्रोही करार देते हुए सरेराह गोली से उड़ा दिया गया और कालू सिंह महरा को आजीवन जेल में डाल दिया गया।

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स्वामी विवेकानंद और सत्यदेव ने अल्मोड़ा आकर आजादी के आंदोलन को और तेज किया। उन्होंने लोगों में स्वतंत्रता प्राप्ति को जोश भरा। इसके बाद ज्वाला दत्त जोशी, वाचस्पति पंत, हरीराम पाडे, सदानंद सनवाल, शेख मानुल्ला व बद्री साह ने प्रमुख आंदोलन की कमान अपने हाथों में ली। कूर्माचल केसरी बद्री दत्त पाडे, मोहन जोशी और जय हिंद को नारा देने वाले स्वतंत्रता संग्राम सेनानी राम सिंह धौनी ने आजादी की लड़ाई को आगे बढ़ाया। कई महत्वपूर्ण आंदोलनों ने भी जन्म लिया। कुली बेगार प्रथा के खिलाफ आंदोलन के अंकुर भी इसी दौरान फूटे

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