गुमनामी के अंधरे में था, पहचान बना दिया दुनिया के गम से ,मुझे अंजान बना दिया, ऐसी कृपा हुई गुरू की मुझे इंसान बना दिया: प्रो ललित तिवारी
संतोष बोरा , नैनीताल ( nainilive.com )- कुमाऊं विश्वविद्यालय शिक्षक संघ के अध्यक्ष प्रोफेसर ललित तिवारी ने गुरु पूर्णिमा के मौके पर कहा कि,जुलाई माह यानि बरसात, इसी माह में पड़ने वाली पूर्णमासी को गुरू पूर्णिमा के रूप में मनाया जाता है। यह दिवस महाभारत के रचयिता कृष्ण द्वैपापन ब्यास का जन्म दिन है उन्होनें 18 पुराणों की रचना की तथा वेदों को विभाजित करने का महत्वपूर्ण कार्य भी उन्ही के हाथों सम्पन्न हुआ। गुरू पूजनीय है मार्ग दर्शक है इसलिए पूर्णिमा को गुरू पूर्णिमा अथवा ब्यास पूर्णिमा भी कहते है।
गुमनामी के अंधरे में था पहचान बना दिया दुनिया के गम से मुझे अंजान बना दिया ऐसी कृपा हुई गुरू की मुझे इंसान बना दिया। प्राचीन काल से ही विश्वमित्र, वशिष्ठ, द्रोणाचार्य गुरू के विशिष्ट उदाहरण है। गुरू क¢ माध्यम से परमात्मा के दर्शन होते है तथा उनसे साक्षात्कार होता है। जीवन को नई दिशा तथा उन्नति का मार्ग मिलता है। गुरू के बिना ज्ञान नही मिल पाता है। जीवन के प्रारम्भ में माँ गुरू का कार्य प्रारम्भ करती है तो फिर पिता और शिक्षक गुरू के रूप में किताबी तथा व्यवहारिक ज्ञान बाॅटते है। गुरू का कार्य रास्ते का निर्माण करना है। इसलिए कहा गया है कि गुरूब्र्रह्मा गुरूविष्णुः गुरूर्देवो महेश्वरः। गुरूः साक्षात् परं ब्र्रह्म तस्मै श्री गुरूवे नमः। महर्षि बाल्मिकी ने गुरू क¢ रूप में इतिहास रच दिया।
गुरू आधुनिक युग में सूचना बाटने का कार्य करते है किन्तु गुरू के कहे वाक्य जीवन को बदलने तथा साकारात्मक एवं निरन्तर उन्नति का संदेश देते है। गुरू की विशालता उसका ज्ञान तथा अपने विद्यार्थियों को सीख देने से पहचानी जाती है। व्यक्तित्व के निर्माण में भी गुरू का योगदान अविस्मरणीय है। रामकृष्ण परमहंस के विद्यार्थी स्वामी विवेकानंद युवा हृदय सम्राट हो गये तथा उनके उपदेश जीवतंता प्रदान करते है। अगर में बात करू कि नैनीताल शिक्षा के क्षेत्र में अग्रणी रहा है तो इस.शहर के स्व प्रो डीडी पंत, स्व प्रो यशपाल सिंह पांगती, प्रो एसपी सिंह, प्रो शेखर पाठक, प्रो अजय रावत, खीमराज बिष्ट, स्व प्रो केसी पाण्डे, मोहन लाल साह, हेमंत बिष्ट, प्रो एमएस बिष्ट, प्रो एचसी त्रिपाठी, प्रो सीएस मथेला, जहूर आलम, डा घनश्यााम लाल शाह, प्रो एलान्स, डा अतुल पाण्डे, प्रो केएस वल्दिया, स्व प्रो अग्रवाल, प्रो सर्वेश कुमार जैसे शिक्षक दिये जिन्होनें शिक्षा, रंगमंच खेलों में ऐसे युवा तैयार किये जिन्होनें विश्व में उत्तराखण्ड का परचम लहराया।
आज का दिन गुरू पूर्णिमा उन गुरूओं को समर्पित है जिन्होनें दीप ज्योति दिखाने का कार्य किया है गुरू हर क्षेत्र में चाहे राजनीतिक, फिल्म, संगीत हो या विभिन्न विषयों पर गुरू की भूमिका महत्वपूर्ण रही है। आज के इण्टरनेट के दौर में भी गुरू की वही भूमिका है जो प्राचीन काल में हुआ करती थी। गुरू के ज्ञान की सार्थकता ने शोध को बढावा दिया है तो आविष्कार को भी जन्म दिया निश्चित तौर पर कौविड-19 की लड़ाई में भी गुरू की सीख का आविष्कार मावन को जीत दर्ज करेगें। आज गुरू के विभिन्न रूप तथा उनकी कलाओं को सादर प्रणाम है।
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