बड़ा संगठन बनाना संघ का ध्येय नहीं है, बल्कि संघ का ध्येय संपूर्ण समाज को संगठित करना है- डॉ. मोहन भागवत
हैदराबाद ( nainilive.com)- राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत ने कहा कि बड़ा संगठन बनाना संघ का ध्येय नहीं है, बल्कि संघ का ध्येय संपूर्ण समाज को संगठित करना है. भाग्यनगर (हैदराबाद) में विजय संकल्प शिविर के दौरान स्वयंसेवकों को संबोधित करते हुए सरसंघचालक ने विजय का अर्थ समझाया. उन्होंने कहा कि विजय तीन प्रकार की होती हैं. असुर प्रवृति के लोग दूसरों को कष्ट देकर सुख की अनुभूति करते हैं और उसे विजय समझते हैं. इसे तामसी विजय कहा जाता है. कुछ लोग अपने स्वार्थ के लिए दूसरे लोगों का उपयोग करते हैं और स्वार्थ के लिए लोगों को लड़ाते हैं. ऐसे लोगों की विजय को राजसी विजय कहा जाता है. लेकिन यह दोनों विजय हमारे समाज के लिए निषिद्ध हैं. हमारे पूर्वजों ने सदैव धर्म विजय का आग्रह किया है. सवाल यह है कि धर्म विजय क्या है. हिन्दू समाज ऐसा विचार करता है कि दूसरे के दुखों का निवारण कैसे किया जाए. दूसरों के सुख में अपना सुख मानना और दूसरों के कल्याण की भावना मन में रखना और उसी के अनुसार आचरण करने से धर्म विजय प्राप्त होती है. डॉ. मोहन भागवत ने कहा कि हमारे देश में भी राजस और तामस शक्तियों के खेल चल रहे हैं. लेकिन हमें सात्विक विजय चाहिए, जो शरीर, मन, आत्मा और बुद्धि को सुख देने वाली हो. सर्वत्र प्रेम और सबके विकास का साधन बनने से धर्म विजय का मार्ग प्रशस्त होता है. सरसंघचालक ने मशाल का उदाहरण देते हुए बताया कि जैसे मशाल को नीचे करने पर भी ज्वाला ऊपर की तरफ ही जाती है, उसी प्रकार सात्विक शक्तियां हमेशा उन्नयन की ओर जाती हैं.
राष्ट्रकवि रविंद्र नाथ टैगोर के एक निबंध ‘स्वदेशी समाज का प्रबंध’ का उद्धरण देते हुए उहोंने कहा कि समाज को प्रेरणा देने वाले नायकों की जरूरत है. सिर्फ राजनीति से भारत का उद्धार नहीं होगा, बल्कि समाज में परिवर्तन की आवश्यकता है. रविंद्र नाथ टैगोर ने स्वदेशी समाज का प्रबंध में लिखा है कि अंग्रेजों को आशा है कि हिन्दू मुसलमान लड़कर खत्म हो जाएंगे. लेकिन आपस के संघर्षण में से ही यह समाज साथ रहने का उपाय ढूंढ लेगा और वह उपाय हिन्दू उपाय होगा. उन्होंने कहा कि संघ की दृष्टि में 130 करोड़ का पूरा समाज हिन्दू समाज है. जो भारत को अपनी मातृभूमि मानता है और जन, जल, जंगल, जमीन और जानवर से प्रेम करता है, उदार मानव संस्कृति को अपने जीवन में उतारने का प्रयास करता है और जो सभी का कल्याण करने वाली संस्कृति का आचरण करता है, वह किसी भी भाषा, विचार या उपासना को मानने वाला क्यों न हो, वह हिन्दू है. सरसंघचालक जी ने कहा कि भारत परंपरा से हिन्दूवादी है. विविधता में एकता नहीं, एकता की ही विविधता है. आस्था, विश्वास और विचारधारा अलग- अलग हो सकती हैं, लेकिन सभी का सार एक ही है. उन्होंने कहा कि अंधेरा हटाने के लिए दूसरों को पीटना नहीं होता, बल्कि उसके लिए दिया जलाना होता है और दिए की रोशनी से ही अंधेरा हट सकता है. एक नायक से काम नहीं चलेगा, बल्कि गांव और कस्बे में नौजवान नायकों की टोलियां तैयार करनी होंगी, जो समाज के प्रति बिना किसी स्वार्थ के काम करें और जिनका चरित्र निष्कलंक हो. इसी से भारत का भविष्य बदल सकता है. उन्होंने कहा कि विश्व भारत की तरफ देख रहा है और विश्व को सुख शांति का रास्ता दिखाने वाला संगठित हिन्दू समाज चाहिए.
साभार : चित्र एवं समाचार : rss.org
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