नहीं रहे टीएन शेषन, भगवान के बाद इस शख्स से डरते थे नेता

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नई दिल्ली (nainilive.com)- चुनाव आयोग को मौजूदा रुतबा दिलाने वाले टीएन शेषन का रविवार 10 नवम्बर की रात को निधन हो गया. 86 वर्षीय शेषन पिछले कई सालों से बीमार चल रहे थे और चेन्नई में रह रहे थे. शेषन को अब तक का सबसे कड़क चुनाव आयुक्त माना जाता है. उनके कार्यकाल में चुनाव आयोग को सबसे ज्यादा शक्तियां मिली. चुनाव सुधार भी लागू हुए. मतदाताओं के लिए मतदान पत्र अनिवार्य हुए. आचार संहिता का सख्ती से पालन शुरू हुआ. शेषन की बदौलत फर्जी मतदान पर रोक लगी और लोकतंत्र की नींव और ज्यादा मजबूत हुई. पार्टियों और प्रत्याशियों की मनमानी पर रोक लगाने के लिए पर्यवेक्षक तैनात करने की प्रक्रिया का सख्ती से पालन हुआ.

शेषन ने ही चुनाव में राज्य मशीनरी का दुरुप्रयोग रोकने के लिए केंद्रीय बलों की तैनाती को और ज्यादा मजबूत बनाया. इससे नेताओं की दबंगई कम हुई. उनके कार्यकाल से पहले तक चुनाव में बेहिसाब पैसा खर्च होता था और पार्टी एवं प्रत्याशी इसका हिसाब भी नहीं देते थे. उन्होंने आचार संहिता के पालन को इतना सख्त बना दिया कि कई नेता शेषन से खार खाते थे.

इनमें लालू प्रसाद यादव प्रमुख थे. यह शेषन की ही देन है कि अब चुनावों में राजनीतिक दल और नेता आचार संहिता के उल्लंघन की हिम्मत नहीं जुटा पाते हैं. उनके कार्यकाल के दौरान ही पहचान पत्र बने. चुनाव में वोट डालने के लिए वोटर आईडी कार्ड का इस्तेमाल होने लगा. इससे फर्जी मतदान पडऩे कम हुए. यह भी कहा जाता है कि शेषन जब चुनाव आयुक्त थे उस वक्त वोट देने के लिए शराब बांटने की प्रथा एकदम खत्म हो गई थी. चुनाव के दौरान धार्मिक और जातीय हिंसा पर भी रोक लगी थी.

जानिए कौन थे टीएन शेषन क्यों नेता उनसे खाते थे खौफ…

– शेषन का पूरा नाम तिरुनेलै नारायण अय्यर शेषन था.

– वह भारत के दसवें चुनाव आयुक्त रहे.

– उन्होंने 1990 से 1996 के दौरान चुनाव प्रणाली को मजबूत बनाया. 

– इसकी बदौलत चुनाव प्रणाली की दशा और दिशा बदल गई.

– उस वक्त यह कहा जाता था कि नेताओं को या तो भगवान से डर लगता है या फिर शेषन से. 

– के आर नारायणन के खिलाफ लड़ा राष्ट्रपति पद का चुनाव

– टीएन शेषन तमिलनाडु कार्डर के 1995 वैज के आईएएस अधिकारी थे. चुनाव आयुक्त की जिम्मेदारी निभाने से पहले वह सिविल सेवा में थे. वह स्वतंत्र भारत के इतिहास में सबसे कम वक्त तक सेवा देने वाले कैबिनेट सचिव बने. 1989 में वह सिर्फ आठ महीने के लिए कैबिनेट सचिव बने. शेषन ने के आर नारायणन के खिलाफ राष्ट्रपति पद का चुनाव भी लड़ा. वह तब के योजना आयोग के सदस्य भी रहे.  

लालू क्यों कहते थे शेषनवा को भैंसिया पर चढ़ाकर गंगाजी में हेला देंगे!

शेषन के बारे में उस वक्त प्रसिद्ध था कि वह जरा-सा शक होने पर चुनाव रद्द कर देते थे. उस वक्त बिहार के मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव थे और चुनाव हो रहा था. बिहार में तब सबसे ज्यादा फर्जी वोट पडऩे और बूथ कैप्चरिंग की घटनाएं होती थी. शेषन ने पूरे सूबे को अर्धसैनिक बलों से पाट दिया. संकर्षण ठाकुर अपनी किताब द ब्रदर्स बिहारी में लिखते हैं कि लालू प्रसाद यादव अपने जनता दरबार में टीएन शेषन को खूब कोसते थे. वह अपने हास्य और व्यंग्य के लहजे में कहते थे- शेषनवा को भैंसिया पे चढ़ाकर गंगाजी में हेला देंगे.

शेषन 11 दिसंबर 1996 तक चुनाव आयुक्त रहे और इस दौरान भारत का चुनाव आयोग सबसे ज्यादा शक्तिशाली और मजबूत हुआ. उस वक्त बिहार में विधानसभा चुनाव हो रहे थे. लालू यादव फिर से कुर्सी पर बैठने की राह ताक रहे थे. शेषन ने सूबे में सुरक्षा व्यवस्था को इतना मजबूत कर दिया था कि बिहार में चुनाव प्रक्रिया तीन महीने तक चली. यह पहली बार था जब बिहार में पिछले चुनावों के मुकाबले कम हिंसा हुई और फर्जी वोट भी कम पड़े. 

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