पिछले दिनों आसमान में आया धूमकेतु निओवाईज पर विशेष
बबलु चन्द्रा की कलम से नैनी लाइव के पाठकों के लिए विशेष
आकाश का दैत्य धमकता-दमकता हुआ सरकटा राक्षस केतु-धूमकेतू
नैनीताल ( nainilive.com ) – नाभिक मे अमृतद्रव लिए धरती से डायनासोरों का विनाश करने वाले ओर जीवन के उतप्तिकर्ता यदा कदा प्रकट होने वाले पुच्छलतारे धूमकेतुओ को सदियों से मृत्यु का संदेश वाहक समझा जाता रहा , इन्हें देख कर लड़ाइयां बीच मे रुक गई, राजज्ञायें हुई, राजाओं ने अपनी गद्दिया छोड़ी, डर से कई लोगों ने अपने प्राण त्यागे।
वैज्ञानिक दृष्टिकोण से धूम का अर्थ धुंवा-केतु का पताका,, धुंवे की पूंछ। वर्तमान मे कॉमेंट(comet) यूनानी भाषा के कोमेतेस शब्द बना, मतलब मेरी तरह लंबे बालों वाला। अथर्वेद मे धूमकेतु शब्द आया है-
महाभारत के भीष्मपर्व मे–धूमकेतुमर्हाघोरः पुष्यम चाक्रम्य तिष्ठति ( महाभयंकर धूमकेतू जब पुष्प नक्षत्र के पार पहुँचेगा, तब भीषण युद्ध आरंभ होगा)।
छठी सदी के महान ज्योतिषी वराहमिहिर ने अपने ब्रह्तसंहिता ग्रन्थ के केतुचार मे इसका वर्णन किया है।। अम्रेई पेरी ने लिखा है 1528 मे यूरोप के आकाश मे एक भयंकर धूमकेतू दिखा तो डर के मारे कई लोग मर गए कई बीमार पड़ गए। चीन मे प्राचीन काल से ही धूमकेतुओ का लेखा जोखा रखने की परंपरा रही है। 613 ईसवी के धूमकेतू का विवरण ओर 164 ईसवी पूर्व व 87 ईसवी पूर्व मे प्रकट धूमकेतू का उल्लेख बेबीलोन किलाक्षरों मे भी मिले है।
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महान खगोलविद ट्युको ब्राहे ने 1577 मे इनका अध्यनन कर सिद्ध किया कि ये पृथ्वी के वायुमंडल से बहुत दूर होते है ओर चन्द्रमा से भी। आइजेक न्यूटन के गुरुत्वाकर्षण के सिद्धांत मे उनके शौकिया दोस्त एडमंड हेली का बड़ा योगदान था, धूमकेतुओ के अध्ययन से उन्होंने बताया कि ग्रहों की तरह ये भी हमारे सौरमंडल के सदस्य है। क्योंकि पुराने जमाने, प्राचीन ग्रन्थों से ये जानकारी मिलती है कि किस समय और ओर आकाश मे कहाँ धूमकेतू दिखाई देगा। 1531 ई, ओर 1607 के धूमकेतु जो पहले दिखाई दिए,,को उन्होंने स्वयं 1682 मे देखा।।। मतलब एक निश्चित अवधि के बाद वो फिर लौटते है ओर दिखने चाहिए। उन्होंने तीनो को एक ही धूमकेतु बताया और लिखा कि यदि मेरा अध्ययन अनुमान सही है तो ये सोर मंडल की दूर सीमाओं का चक्कर लगाकर 75 या 76 साल मे वापस लौटेगा। ओर 1758 मे आसमान मे फिर प्रकट होगा।
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सचमुच ही उनकी भविष्यवाणी सच हुई और 1758 मे वो वापस दिखा। पर स्वयं वो उस धूमकेतू ओर अपनी भविष्वाणी को सच होते नही देख पाए। उस धूमकेतु को हम हेली का धूमकेतू नाम पड़ा। 1927 मे भारतीय खगोलविद बाप्पू न्यूकिर्क विह्वपल्ल ने भी एक धूमकेतू खोजा ओर उनके नाम से जाना गया। हेली का धूमकेतु अब 2061-62 मे नजर आएगा। अब तक डेढ़ हजार धूमकेतू खोजे जा चुके है।
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इन दैत्यों के तीन भाग होते है, नाभिक, सिर और पूंछ,, अमृत द्रव इसके नाभिक मे होता है जो बर्फ व अन्य गैसों से बना होता है सूर्य देव के करीब पहुँचने व उनके तीव्र ताप के संपर्क से गर्म होकर बर्फीली गैसें व धुली कर्ण बाहर निकलते हैं,,तब इन दैत्यों के सर व पूछ बनती है और शरीर का निर्माण होता है। धरती मे जीवन के उदभव मे पृथ्वी मे जल, कार्बनिक कण लाने का काम और डायनासोरों के विनाश मे भी इन दैत्यों का ही हाथ माना जाता है।
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वैज्ञानिको का अनुमान भी है कि किसी समय पृथ्वी के वायुमंडल मे 20 से 40 टन भार के करीब 20 दैत्यों(धूमकेतुओं) की बेशुमार बारिश से आक्रमण किया होगा और 3, 5 अरब साल पहले तब धरती पर शुक्ष्म जीवो का प्रादुर्भाव हुआ होगा। विख्यात खगोलविद फ्रेड हॉयल कहते है कि धूमकेतुओ के माध्य्म से आज भी विभिन्न किस्म के विषाणु वायरस धरती के वायुमंडल मे प्रवेश करते है।।। सौर मंडल की सीमाओं से दूर इन राक्षसों की दो विशाल बस्तियां कुईपर पट्टा ओर उर्ट बादल की खोज हुई है जो 5 अरब से 15 अरब किलोमीटर तक फैले हुए है। धूमकेतू ओ के अध्ययन के लिए कई अंतरिक्षयान विकसित देश भेज चुके है।
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दैत्य कॉमित निओवाइज की खोज के कुछ ही दिन बाद मैंने इसको पकड़ कर इसका शिकार कर दिया था, पर अमृत पान के कारण केतु बच गया मेरा निशाना नाभिक से चूक गया पर उसके 16 दिन बाद तक ये दिखना था युद्ध होना था ओर इसके साथ मुझे कुछ ओर की भी तलाश थी पर दो दिन दिखा उसके बाद नहीं देख पाया बादलो ने कोशिश नही करने दी और बिना उपकरणों के इसका वध कर पाना आसान नही, देख कर निराशा के भाव अपनाने से बेहतर है,, अगले कुछ साल बाद 22 मे आने वाले केतु को साजो सामान धनुष बाण के साथ वध करने निकलूंगा, क्योंकि इन धूमकेतुओं के साथ-साथ कुछ और भी धरती के करीब आता है।
(ज्ञान-विज्ञान की बातों से कोसों दूर मेरे लिए ये धूम का केतु दैत्य है राहु की तलाश जारी है)
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