गंगा दशहरा विशेष : घरों में गंगा दशहरा द्वार पत्र लगाना माना जाता है अत्यन्त शुभ

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हिमानी बोहरा, नैनीताल ( nainilive.com )- सनातन धर्म में गंगा दशहरा का महत्व धार्मिक परम्पराओं वाले त्यौहार के रूप में माना जाता है। गंगा दशहरा ज्येष्ठ मास की शुक्ल पक्ष की दशमी को मनाया जाता है। ऐसी मान्यता है कि भागीरथी की कठोर तपस्या से प्रसन्न होकर इसी दिन मां गंगा स्वर्ग से धरती पर अवतरित हुई थी। गंगा नदी को भारत की सबसे पवित्र नदी माना जाता है और इसी कारण उन्हें सम्मान से मां गंगा या गंगा मैया कह कर पुकारा जाता जाता है और माता के समान पूजा अर्चना की जाती है। गंगा दशहरा के दिन भक्त मां गंगा के पृथ्वी पर अवतरण होने के लिए धन्यवाद और पूजा अर्चना करते हैं। भारतीय संस्कृति में मनुष्य का जीवन व मोक्ष नदियों से ही जुड़ा हुआ है जिसमें गंगा को सर्वोच्च स्थान दिया गया है। माना गया है कि गंगा मात्र धरती पर ही नहीं अपितु आकाश और पाताल में भी प्रवाहित होती है। इसी वजह से उन्हें त्रिपथगा भी कहा जाता है।

इस दिन भक्त प्रातः काल स्नान के दान पुण्य, उपवास, भजन कर गंगा मैया की आरती करते है और अपने सभी पापों से मुक्ति पाते है। हिन्दू धर्म में ज्येष्ठ शुक्ल पक्ष की दशमी को संवत्सर का मुख भी कहा जाता है जिस कारण इस दिन दान और स्नान का ही अत्यधिक महत्व है।

उत्तराखंड में इस त्यौहार का अपना एक अलग ही लोक सांस्कृतिक महत्व है क्योंकि गंगा का अवतरण इसी क्षेत्र में हुआ था। इस दिन घरों में द्वार पत्र लगाने की परंपरा को अत्यन्त शुभ माना जाता है। मान्यता है कि द्वार पत्र लगाने से घर में विनाशकारी शक्तियां प्रवेश नहीं करती हैं और वज्र पात, बिजली गिरने जैसे घटनाओं का भय नहीं रहता है। साथ ही घर के प्रवेश द्वार में द्वार पत्र लगाने से नकारत्मक ऊर्जा का घर में प्रवेश निषेध हो जाता है और घर में सुख, समृद्धि और शांति बनी रहती है।

यह पत्र एक वृत्ताकार आकृति के होते है जिनके मध्य में ज्यामितीय आकृति बनी होती है। चारों ओर अनेक कमल दल अंकित किए जाते है जो धन धान्य और समृद्धि के द्योतक होते है। इसी के साथ बाहर की ओर वृत्ताकार शैली में संस्कृत में वज्र निवारक पांच ऋषियों के नाम पर मंत्र लिखा जाता है

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अगस्त्यश्च पुलस्त्यश्च वैशम्पायन एव च
जैमिनिश्च सुमन्तुश्च पञ्चैते वज्र वारका।

मुने कल्याण मित्रस्य जैमिनेश्चानु कीर्तनात विद्युदग्निभयंनास्ति लिखिते च गृहोदरे।

यत्रानुपायी भगवान् हृदयास्ते हरिरीश्वरः
भंगो भवति वज्रस्य तत्र शूलस्य का कथा।

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पूरा देश जब कोरोना महामारी से जूझ रहा है सभी लोग अपने घरों में ही है धार्मिक स्थल सभी बन्द किए गए है। जिसके चलते लोग पवित्र स्थलों में पूजा पाठ , दान पुण्य और पवित्र नदियों में स्नान करने से वंचित रहे । लेकिन फिर भी लॉकडाउन के सारे नियमों का पालन करते हुए लोगों ने गंगा दशहरा का त्यौहार अत्यन्त हर्षोल्लास के साथ मनाया और घरों में ही स्नान ध्यान पूजा अर्चना कर सुख सौभाग्य और समृद्धि की कामना की।

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