जय गुरुदेव ” बाबा नीब करौरी महाराज ” – भाग -3
अनिल कुमार पंत, नैनीताल –
महाराज जी की वाणी और उनके कार्य सदा रहस्यमय रहे। अद्भुत लीलाओं की चर्चा आज तक बनी हुई है। उन्हें सभी धर्मों के अनुयायी शीश झुकाते हैं। उनमें कोई स्वार्थ व इच्छा नहीं रहती है। उनका महान चरित्र अत्यन्त आकर्षक एवं प्रभावपूर्ण है। जिससे उनके प्रति आस्था बढ़ती जाती है और अनेक रूपों में उनके पास होने की अनुभूति होने लगती है। बाबा के महाप्रयाण से पूर्व कोई भी उनके बारे में न कुछ समझ पाया और न ही कुछ कह पाया। एक बार एक भक्त श्री प्रभु दयाल शर्मा जी ने पद्य के रूप में ‘‘महाराज जी’’ के बारे में लिखा, जिसे देखकर ‘‘महाराज’’ ने मोड़कर फेंक दिया। बाद में किसी सेवक/भक्त द्वारा उसे एकत्र कर लिया गया। आगे चलकर उसे ‘‘विनय चालिसा’’ के नाम से प्रकाशित करवा दिया, जो आज तक महाराज की स्तुति में स्मरण की जाती है।
वर्ष 2014 में ऋषिकेश मन्दिर में मुझे श्री प्रभुदयाल जी से मिलने का सौभाग्य प्राप्त हुवा और मैंने उनसे ‘‘विनय चालिसा’’ और ‘‘पुष्पांजलि’’ के बारे में पूछा तो उन्होंने कहा कि ‘‘पुष्पांजलि, ‘‘विनया चालिसा के करीब 5-6 साल बाद महाराज कपा से लिख पाया। ये सब महाराज के महाप्रयाण के बाद की बात है। उसके पश्चात् ‘‘पुष्पांजली -2’’ लिखी गई यथा ‘ लिख रहयो झींक झींक, मांगू हूँ कपा की भीख। श्रद्धा के सुमन नित, नूतन चढ़ाया करूँ।’ इन्हीं दो रचनाओं में श्री प्रभुदयाल जी ने महाराज के चरित्र की सुन्दर झाँकी प्रस्तुत की है। जो आज हर भक्त के द्वारा गुरू देव के लिये गायी जाती है।
महाप्रयाण 11 सितम्बर 1973 अनंत चतुर्थी से पूर्व बाबा जी ने अपने बारे में लिखने की किसी को अनुमति नहीं दी और जिसने लिखा भी उसे अपने सामने ही नष्ट करने को कहा। आगे चलकर प्रथम प्रयास बाबा के एक भक्त जो अमेरिकन मूल के थे डा0 रिचार्ड एल्पर्ट, प्रो0 मनोविज्ञान, हारवर्ड विश्वविद्यालय, वोस्टन ने किया। उन्होंने अपनी पुस्तक ‘‘बी हियर नाव’’ और ‘‘मिरेकल आफ लव’’ में किया। ‘बी हियर नाव’ मेें उन्होंने लिखा कि किस तरह रिचर्ड एन्पर्ट की परिणति राम दास में हुई। रामदास नाम बाबा जी का ही दिया हुआहै। उस वक्त वे विभिन्न प्रकार का नशा करते थे। नशे के द्वारा भगवत प्रति करना चाहते थे। उस समय हार्वड यूनिवर्सिटी का यह प्रोफेसर अपने जीवन का आदर्श एवं आध्यात्मिक उथल पुथल में जी रहा था। उस समय महाराज ने उसे बड़े चमत्कारिक ढ़ंग से अपनी ओर खींच लिया और उन पर कपा कर उनके जीवन को पूर्ण रूप से बदल दिया। आज भी वे अमेरिका में रहकर अपने शिष्यों के मध्य अपना सुखी जीवन व्यतीत कर रहे हैं। इसी तरह महाराज के अनेक विदेशी भक्त रहे हैं। जिनका विवरण आगे चलकर दिया जाता रहेगा।
महाराज के भक्तों में से एक थे नित्यानन्द मिश्रा जी जो बिड़ला विद्या मन्दिर नैनीताल में इतिहास के अध्यापक थे और चलकर इतिहास विद् रहे। उन्होंने संस्मरण में लिखा कि किस तरह से वे महाराज के सम्पर्क में आये और महाराज की उन पर क्या कपा रही। तीस चालीस की दशक में कुर्मांचल क्षेत्र में एक अवतारी सिद्ध पुरूष आये। वे थे पूज्य नीबकरौरी महाराज। मैनपुरी एटा जनपदों के जनशून्य बीहड़ों में उन्होंने घोर साधना की। ‘‘मंगल मूरति मारूति नंदन, सकल अमंगल मूल निकन्दन ’’ यह पद सदा गुनगुनाते रहते थे। लोग कहते हैं कि उन्हें उनके इष्ट देव जी ने सिद्ध बना दिया।
सच ही तो कहा है संत सिरोमणि तुलसीदास ने, ‘जो यह पढ़े हनुमान चालिसा, होइ सिद्ध सारी गौरीशा।।’
पूज्य नीब करौरी महाराज हनुमान चालिसा और सुन्दर काण्ड के निरंतर पाठ पर बड़ा जोर देते थे। इस अज्ञात नामा सिद्ध पुरूष का नाम नीब करौरी कैसे प्रसिद्ध हुआ, इस पर भी चमत्कार पूर्ण कहानी है।
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