कैंची धाम पर विशेष : कैंची धाम का प्रतिष्ठापन समारोह

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अजय सिंह रावत , नैनीताल ( nainilive.com )- अल्मोड़ा राजमार्ग पर उत्तरवाहिनी नदी के तट पर पवित्र तीर्थस्थल कैंची धाम मंदिर स्थित है। भारत के महान एवं रहस्यवादी संत नीब करौरी बाबा की स्थली होने के कारण यह स्थल आध्यात्मिक मान्यता का भी केंद्रबिंदु रहा है। ब्रिटिश शासन के दौरान किये गए उनके द्वारा एक चमत्कार का वाक्य है कि जब नीब करौरी नामक स्थान पर उनकी रेल रुकी थी तब एक एंग्लो-इंडियन कंडक्टर ने उन्हें प्रथम श्रेणी के डिब्बे से निकाल दिया था। इस कारण बिना किसी यांत्रिक खराबी के भी रेल 2 घंटे तक वहाँ से चल न सकी थी क्यूँकि रेल का इंजन तो चल रहा था पर पहिया नहीं। तब बाबा ने अधिकारियों को अपना टिकट दिखाया जिससे असहज हो उन्होंने तुरंत बाबा को पुनः रेल में चढ़ने का आग्रह किया। उनके चढ़ते ही रेल चल पड़ी तथा जिसे देख सभी आश्चर्यचकित हो गए थे।


बाबा के भीतर हिमालय के लिए अथक प्रेम था। बाबा के एक शिष्य अर्जुन दास आहूजा के अनुसार, ”वे 20 शताब्दी के तीसरे दशक में उत्तराखंड आये थे, यहीं 1942 में कैंची गाँव का उन्होंने पहली बार भ्रमण के समय पूर्णानंद तिवारी नामक स्थानीय ग्रामीण से उनकी भेंट हुई थी। उन्होंने बाबा से पूछा था कि उनके अगले दर्शन कब होंगे तब बाबा ने कहा था कि 20 वर्ष बाद मैं फिर कैंची आऊंगा। सन 1962 उन्होंने में पुनः कैंची की यात्रा की तथा उत्तरवाहिनी नदी के तट पर पूर्णानंद जी के साथ खड़े होकर तट के दूसरी तरफ जहाँ दो महान संतों प्रेमी बाबा एवं सोमवारी बाबा ने हवन किया था, जाने की इच्छा प्रकट की थी। श्री माँ के साथ नदी के साथ चलते हुए 25 मई 1962 के ऐतिहासिक दिन बाबा ने उसी जगह अपने पवित्र पग रखे थे जहाँ आज कैंची मंदिर विदयमान है।” कैंची मंदिर और आश्रम के प्रभारी विनोद जोशी ने कहा थे, ”उनके द्वारा लिए गए संकल्प ने शीघ्र आकार ले लिया था। सन 1965 में हनुमान मंदिर को पूरा किया गया एवं उसी वर्ष 15 जून को पहली बार भंडारा का आयोजन किया गया था, जिसके बाद से प्रत्येक वर्ष इसी तिथि के दिन मंदिर परिसर में प्रतिष्ठापन समारोह आयोजित किया जाता है।”


भ्रमरूपी जीवन के इस दलदल में बाबा को आशा के एक प्रतीक के रूप में माना जाता है जिनका मंदिर परिसर एक ऐसा दिव्य शांति स्थल है जहाँ सब एक हो सूक्ष्म में विलीन होने की अनुभूति करते हैं। विभिन्न धर्मों और धर्मों के लोगों को इस दिव्य स्थल पर आते हैं, जो उन्हें भीतर के स्व और प्रकृति के साथ सद्भाव बनाने की प्रेरणा देता है। मंदिर के साथ अपने बाल्यकाल से जुड़े वरिष्ठ नागरिक रवि प्रकाश पांडे ‘राजी दा‘ दृढ़ता से कहते हैं, ”25 सितंबर 2015 को जब हमारे माननीय प्रधानमंत्री संयुक्त राज्य अमेरिका की यात्रा में थे तब मार्क इलियट जुकरबर्ग ने उनसे भारत के एक मंदिर के बारे में पूछा था जहाँ उनके गुरु ने उन्हें जाने की सलाह दी थी।” जुकरबर्ग फेस बुक के अध्यक्ष एवं मुख्य कार्यकारी अधिकारी है। जब विश्व को पता चला है कि वह कैंची धाम के बारे में बात कर रहे थे तब मंदिर के बारे में दोनों, प्रिंट एवं विजुअल मीडिया में अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रचार प्रसार हुआ। सन 2007 में ही ज्ञान की प्राप्ति हेतु जुकरबर्ग कैंची धाम भी आये थे। यह उनके जीवन में परीक्षण का समय था। उनकी इसी यात्रा के पश्चात, यह माना जाता है कि उनका भाग्य करवट बदलने लगा और फेसबुक एक घरेलू नाम बन गया।


वह अपने गुरु, एप्पल के मुख्य कार्यकारी अधिकारी, सह संस्थापक एवं अध्यक्ष स्टीवन पॉल ”स्टीव जॉब्स” से प्रेरित थे। 1970 के दशक के माइक्रो कंप्यूटर क्रांति में व्यापक रूप से अग्रणी भूमिका निभाने के लिए उन्हें एप्पल के सह संस्थापक स्टीव वॉजनिएक के साथ बहुत ख्याति भी प्राप्त हुई थी। स्टीव जॉब्स नवंबर 1973 में कैंची धाम आये थे, जहाँ आकर उन्हें इस सांसारिक जीवन के मध्य परम ज्ञान, सर्वव्यापी अनुभव एवं परमात्मा की उपस्थिति की अनुभूति हुई थी। बाबा ने डॉ लॉरेंस ”लैरी” ब्रिलियंट, एक प्रख्यात अमेरिकी चिकित्सक को स्टीव जॉब्स को प्रेरित करने का माध्यम बनाया था। भारत से चेचक उन्मूलन हेतु बाबा के सपने को पूरा करने की उनकी कैंची की यह यात्रा सुनियोजित ढंग से रची हुई यात्रा थी। रिचर्ड अल्पेर्ट द्वारा 1968 में लिखित पुस्तक ‘बी हियर नाउ‘ से प्रभावित होकर सन 1970 में वे कैंची आये थे। वह बाबा के परम भक्त थे जिसके बाद वह सांसारिक जीवन त्याग कर बाबा राम दास के रूप में प्रसिद्ध हो गए थे।


बाबा के साथ कई वर्ष बिताने वाले स्वर्गीय केके साह कहते थे , ”डॉ ब्रिलियंट दिल्ली में विश्व स्वास्थ्य संगठन में लगभग नौ वर्ष तक कार्यरत रहे तथा इस अवधि के दौरान ही उन्होंने चेचक उन्मूलन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।” दिल्ली में नौ वर्ष तक रहते हुए ही वह कई बार कैंची धाम की यात्रा पर भी आया करते थे।


अपनी अनेक यात्राओं में से एक में स्टीव जॉब्स टिम कुक को भी अपने साथ लाये थे जिन्होंने सन 2011 में स्टीव जॉब्स की मृत्यु के पश्चात एप्पल के सीईओ का कार्यभार संभाल लिया था। यहाँ आने वाले अन्य भक्तों द्वारा भी महसूस किया जाता है कि उनकी यहाँ की यात्रा परम आदेश के चलते ही होती है जो उन्हें मंदिर के वातावरण में परम सत्ता से सूक्ष्म होकर रहने को प्रेरित करती है।

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