56 सालो में पहली बार कैंची धाम में नहीं हुआ विशाल भंडारे का आयोजन

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हिमानी बोहरा , नैनीताल ( nainilive.com )- कोरोना महामारी के चलते जब दो माह से ज्यादा समय पूरे देश में ताला बन्दी रहीं तब सनातन धर्म के सभी धार्मिक स्थल भी भक्तों के लिए बन्द किए गए थे। अब देशभर में अनलॉक होने के बाद धार्मिक स्थल तो भक्तों के लिए खोल दिए गए है लेकिन अब भी कोरोना को देखते हुए भंडारे , मेलों या किसी भी प्रकार का कोई धार्मिक आयोजन अभी फिलहाल नहीं करवाया जा रहा है और कैंची धाम के मंदिर कमेटी द्वारा निर्णय लिया गया है कि कैंची मंदिर 30 जून के बाद स्थिति सामान्य होने पर खोला जाएगा। साथ ही इस वर्ष नीम करौली बाबा के प्रसिद्ध धाम कैंची में विशाल भंडारे का आयोजन भी नहीं करवाया जा रहा है। ऐसा 56 सालों में पहली ही बार हुआ है कि कैंची धाम में विशाल भंडारे का आयोजन ना हुआ हो । हर वर्ष हजारों भक्त इस विशाल भंडारे में शामिल होकर बाबा का आशीर्वाद लेते थे और कैंची धाम भक्तों के जयकारों से गूंज उठता था लेकिन इस वर्ष वहां सुनसानी छाई रहेंगी।

कैंची धाम की स्थापना के पीछे की रोचक कथा

बता दें कि हिमालय की गोद में बसे उत्तराखंड की सरोवर नगरी से लगभग 20 किलोमीटर की दूरी में कैंची धाम का प्रतिष्ठित मंदिर स्थित है शिप्रा नदी पर स्थित इस भव्य मंदिर की स्थापना के पीछे भी रोचक कहानी है। बुजुर्गों से प्राप्त जानकारी के अनुसार 1942 की बात है जब कैंची निवासी पूर्णानंद तिवारी पैदल यात्रा कर नैनीताल के गेठिया होते हुए पैदल ही कैंची की तरफ जा रहे थे तभी अचानक एक स्थुलकाय व्यक्ति कम्बल लपेटे हुए उन्हें दिखाई दिया तो वह डर गए। तभी उस व्यक्ति ने पूर्णानंद को उनका नाम लेकर पुकारा और इस समय यहां आने का कारण भी उसे बता दिया। कम्बल लपेटे हुए कोई और नहीं बल्कि स्वयं बाबा थे। पूर्णानंद के पूछने पर कि बाबा अब कब दर्शन होंगे तो बाबा ने जल्दी से उत्तर में 20 वर्ष बाद कहा और ठीक बीस वर्ष बाद बाबा महाराज तुलाराम साह और श्री सिद्धि मां के साथ रानीखेत से नैनीताल जा रहे थे तभी बाबा कैंची पर उतर गए और उन्होंने उस स्थान को देखने की इच्छा जताई जहां साधु प्रेमी बाबा और सोमवारी महाराज ने वास किया था। 24 मई 1962 को नीम करोली बाबा के पावन कदम यहां की भूमि में पड़े थे। यहां आकर बाबा ने घास और जंगल के बीच घिरे चबूतरे और हवन कुंड को ढकने को कहा। बाद में 1964 में इस स्थान में कैंची मंदिर की स्थापना की गई और तभी से यहां स्थापना दिवस के उपलक्ष्य में भव्य भंडारे का आयोजन किया जाता है।

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बाबा नीम करौली को माना जाता है भगवान हनुमान का अवतार

कहा जाता है कि बाबा नीम करौली भगवान हनुमान की उपासना करने के बाद अनेक चमत्कारिक सिद्धियां प्राप्त हुई थीं। लोग उन्हें हनुमान जी का अवतार भी मानते हैं लेकिन बाबा बेहद साधारण तरीके से रहते थे और अपने पैर किसी को नहीं छूने देते थे। कहते हैं बाबा हमेशा ही राम नाम का स्मरण करते रहते थे। नीम करौली बाबा के देश विदेशों में कई आश्रम है इनमें से सबसे बड़ा आश्रम कैंची धाम और अमेरिका के न्यू मैक्सिको सिटी में स्थित टाउस आश्रम है।

चमत्कारी कथाओं से विख्यात है बाबा का धाम

स्थानीय लोगों के अनुसार एक बार भंडारे के दौरान प्रसाद बनाते समय घी कम पड़ गया था तभी बाबा ने एक कनिस्तर में नीचे बहने वाली शिप्रा नदी से पानी मंगवाया और उस पानी को प्रसाद में डाला तो कनिस्टर का पानी घी में बदल गया। इसी प्रकार भक्तों का कहना है कि बाबा अपने भक्तों से अत्यधिक प्रेम करते थे। इसलिए एक बार बाबा ने भक्तों को तेज धूप से बचाने के लिए बादल की छतरी बना कर भक्तों को उनकी मंजिल तक पहुंचाया।

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देश में ही नहीं, बल्कि विदेशों में भी है बाबा के भक्त

फेसबुक और एप्पल के संस्थापक मार्क जुकरबर्ग व स्टीव जॉब्स को राह दिखाने वाले नीम करौली बाबा पश्चिमी देशों में भारत की विरासत का प्रतिनिधित्व करते हैं। उनके आश्रम में न केवल देशवासियों को ही, बल्कि पूरी दुनिया को प्रसन्न और खुशहाल बनने का रास्ता मिलता है।बाबा सिर्फ देश में ही नहीं बल्कि विदेशों में भी अपने चमत्कारों की वजह से जाने जाते हैं। लोकप्रिय लेखक रिचर्ड अल्बर्ट ने “मिरेकल ऑफ लव” नाम से बाबा पर एक पुस्तक लिखी। इसी के साथ हॉलीवुड अभिनेत्री जूलिया राबर्ट्स, फेसबुक के संस्थापक मार्क जुकरबर्ग, एप्पल के संस्थापक स्टीव जॉब्स सहित अन्य विदेशी हस्तियां बाबा के भक्त हैं।

नीम करौली बाबा हनुमान जी के बहुत बड़े भक्त थे उन्होंने अपने जीवनकाल में लगभग 108 हनुमान मन्दिर बनवाए थे। 1960 में जब एक लेखक ने बाबा पर पुस्तक लिखी तब बाबा को अंतरराष्ट्रीय पहचान मिली। बाबा ने अपनी समाधि के लिए वृंदावन की पावन भूमि को चुना था। 10 सितम्बर 1973 को बाबा की मृत्यु हो गई। उनकी याद में आश्रम में उनकी प्रतिमा स्थापित की गई है।

56 साल में पहली बार भंडारे का आयोजन ना हो पाने पर भक्तों के विचार

स्थानीय भक्त राजीव पांडे का कहना है कि “वाकई यह दुख का विषय है, लेकिन वर्तमान परिपेक्ष्य में मंदिर कमेटी का यह निर्णय कि मंदिर 30 जून के बाद खुलेगा सही है, कैंची मेला नैनीताल जिले का भव्य आयोजन है इसकी तैयारी माह मार्च से शुरू हो जाती है, वैश्विक महामारी कोरोना के समय में हम सभी को घर में रहकर ही महाराज जी से प्रार्थना करनी चाहिए कि सभी पर अपनी कृपा बनाये रखे”।

स्थानीय भक्त बीना बोहरा का कहना है कि हमारे घर से 12किलो मीटर की दूरी पर कैंची धाम स्थित है हर वर्ष कैंची धाम में भव्य भंडारे का आयोजन होता था और हम उस आयोजन में शामिल होते थे लेकिन इस वर्ष कोरोना जैसी महामारी की वजह से मेले का आयोजन नहीं हुआ और वो एक तरह से सही भी है क्योंकि हजारों की तादात में बाबा के भक्त दर्शनों के लिए इस आयोजन का हिस्सा बनते हैं। तो इस वक्त जब सभी को सोशल डिस्टेंसिंग का विशेष ध्यान रखना है तो इस परिस्थिति में हम सभी भक्तों को घर में रहकर ही बाबा से प्रार्थना करनी चाहिए कि पूरी दुनिया की इस महामारी से रक्षा करें और अपने सभी भक्तों पर अपनी कृपा दृष्टि और आशीर्वाद बनाए रखें।

स्थानीय भक्त जितेंद्र सिंह बंगारी सचिव पूर्व छात्र संघ, नैनीताल का कहना है कि हर वर्ष 15 जून को कैंची धाम में होने वाला मेला इस वर्ष नहीं हो पा रहा है पर हम सभी की आस्था कैंची धाम पर बहुत अधिक है इसलिये हम इस बार इसको अपने घरों में अपने अपने तरीके से मनाये व नीम करौली महाराज जी से प्रार्थना करेंगे कि जल्द ही करोना रूपी विश्वव्यापी महामारी से हम सबको मुक्ति प्रदान करें और हम फिर से अपने आम दिनचर्या में लौट कर अगले साल और अधिक धूम धाम से कैंची मेला मना सके।

स्थानीय भक्त भानु पांडे कहते है कि हर वर्ष कैंची धाम पर 15 जून स्थापना दिवस के अवसर पर भव्य मेले का आयोजन कराया जाता था इस बार कोरोना काल के कारण मेले का आयोजन नहीं हो पाया। 56 वर्षों के इतिहास में पहली बार ऐसा हुआ है जिससे हम ही नहीं बल्कि पूरा विश्व दुःखी है और कई लोगों को मेला ना होने की वजह से व्यापार में भी नुकसान उठाना पड़ेगा लेकिन हम सभी इस वर्ष बाबा जी को माहा प्रसाद अपने घरों से ही अर्पित करेंगे और प्रार्थना करेंगे कि सारे संसार को इस कोरोना नामक महामारी से मुक्ति दिलाएं।

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