और अब एक चीनी गुलाब…
राजशेखर पंत
कोरोना वायरस को आज कमोबेश सारी गुस्साई दुनिया चीनी वायरस के नाम से संबोधित कर रही है. इस बदनाम, हत्यारे वायरस का सच चाहे जो हो पर इस बात को झुठलाया नहीं जा सकता कि अतीत में चीन ने दुनियां को बहुत कुछ ऐसा भी दिया है जो निहायत ही खूबसूरत है; इतना खूबसूरत कि इसे अपलक निहारते हुए आप कुछ देर के लिए ही सही, पर कोरोना की विभीषिका को भूल जायेंगे.
बसंत ने इस साल कुछ ठिठक कर दस्तक दी है. पर पिछले सप्ताह से भीमताल, नैनीताल, रामगढ, मुक्तेश्वर और कमोबेश उन सब शहरों में जहाँ कि ब्रिटिश युग के अवशेष अब भी दिखाई दे जाते हैं –बगैर कांटे वाले पीले गुलाब की बेलें फूलों के गुच्छों से लद गयी हैं.
रोज़ा बैंकेसिया नाम है इस गुलाब का. सामान्यतया लेडी बैंक्स रोज कहते हैं इसे. मध्य और पश्चिमी चीन के गांसू, हैनान, युन्नान, हुबई और जियांग-सू प्रान्तों में इसे सैकड़ों वर्षों से उगाया जाता रहा है. इस खूबसूरत गुलाब का नामकरण लेडी डोरोथिया बैंक्स के नाम पर किया गया है, जो 18वीं शताब्दी के प्रसिद्ध ब्रिटिश वनस्पतिशास्त्री सर् जोसफ बैंक्स की पत्नी थीं. जोसफ बैंक्स ने कप्तान कुक की प्रसिद्ध समुद्री यात्रा (1768-1771) में भाग लिया था और युकलिपटस के पेड़ों से यूरोप का पहला परिचय भी कराया था. विश्व प्रसिद्ध रॉयल बोटेनिक गार्डन को स्थापित करने की सलाह भी इन्होने ही तत्कालीन राजा जॉर्ज तृतीय को दी थी.
डोरोथिया बैंक्स स्वयं एक जुनूनी संग्रहकर्ता थीं. विवाह के बाद इन्होने स्प्रिंगग्रोव्स स्थित अपने बंगले की डेरी को चीनी कलाकृतियों के विशाल संग्रह में तब्दील कर डाला था. उनके इस विशाल संग्रह से अब केवल एक पाण्डुलिपि उपलब्ध है. इसमें उनके द्वारा संग्रहित नायाब चीनी कलाकृतियों तथा संग्रह के उनके तरीके का व्यापक जिक्र हुआ है.
1807 में जब जोसफ बैंक्स द्वारा विलियम कर नामक एक वैज्ञानिक को पौधों की खोज में चीन भेजा गया तो चीन की प्रसिद्ध फाआ-टी नर्सरी से वह इस गुलाब का पहला पौधा इंग्लैंड में लाये थे. चीन के प्रति लेडी बैंक्स के लगाव को देखते हुए इसका नामकरण उनके नाम पर किया गया होगा.
1600 से ले कर 7500 फिट की ऊँचाई तक लेडी बैंक्स रोज को आसानी से उगाया जा सकता है. इसे पानी की बहुत कम जरूरत होती है. एशिया के कुछ देशों में इसका उपयोग गैंग्रीन और कोढ़ के सक्रमण को रोकने के लिए भी किया जाता है.
राजशेखर पंत हिंदी और अंग्रेजी भाषा के उत्कृष्ट लेखकों में गिने जाते हैं. आपका अधिकतर लेखन कार्य हिमालय क्षेत्र के पर्यावरण, नदियों के अद्ध्यन , हिमालयी संस्कृति एवं जीवन पर केंद्रित रहा है. आपके लेख कई राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय पत्र पत्रिकाओं में प्रकाशित हो चुके हैं. आपको वर्ष २००७, २००८ , २०१३ और २०१५ में विभिन्न विषयों पर कार्य एवं शोध लेखन के लिए सेंटर ऑफ साइंस एंड एनवायरनमेंट , नई दिल्ली की प्रतिष्ठित मीडिया फ़ेलोशिप प्रदान हो चुकी है , जिसमे भारत एवं एशिया पसिफ़िक क्षेत्र के पत्रकारों को विभिन्न विषयों पर शोध एवं रिपोर्टिंग लेखन के लिए प्रदानं किया जाता है। आप लेखक , पत्रकार, के साथ साथ एक बेहतरीन डाक्यूमेंट्री निर्माता भी हैं , और आपकी कई डॉक्यूमेंट्री फिल्म्स को पुरुस्कृत भी किया जा चूका है. आपका वर्तमान निवास भीमताल , जिला नैनीताल, उत्तराखंड में है.
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