मेरे गुरुदेव ” बाबा नीब करौरी महाराज
अनिल पंत , नैनीताल ( nainilive.com )- भारतवर्ष के कुमाऊँ क्षेत्र में नीब करौरी बाबा की महिमा सर्वत्व व्याप्त है। यहाँ के वृद्ध , स्त्री, पुरूष एवं बालक इनके यश और प्रताप से परिचित हैं और इनके प्रति आस्था रखते हैं और अपने मनोरथ हेतु इनसे प्रार्थना करते हैं। बाबा नीब करौरी, जैसा कि लाखों लोग इन्हें इस नाम से जानते हैं, में भी परमात्मा के वे ही ‘नर रूप हरि’ जैसे गुण पाये जाते हैं। इनका जन्म उत्तर प्रदेश के आगरा जनपद में नागउ ग्राम समूह के एक गाँव अकबरपुर में हुआ था। वे कुलीन एवं वैभवशाली परिवार से थे। इनका नाम श्री लक्ष्मी नारायण शर्मा था। अल्प अवस्था में वे घर छोड़कर गुजरात चले गये थे। वहाँ बाबनियाँ नामक स्थान पर उन्होंने घोर तपस्या की। वहीं किसी वैष्णव सन्त ने कौपीन धारण कराकर लक्ष्मणदास नाम दिया। इस अवधि में वे अधिकतर वहाँ एक तालाब में रहकर साधना करते थे और वहीं से वे तलैया बाबा के नाम से पुकारे जाने लगे। इसके बाद बाबा जी फरूखाबाद जिले के नीब करौरी ग्राम में एक गुफा में रहकर साधना करने लगे। यहीं से आलौकिक एवं कल्याणमयी लीलाओं का शुभारम्भ हुआ। उनकी ईश्वरीयता की कहानियाँ बाबनियाँ में रहने के समय से ही अर्थात 1910 से ही सुनी जाती हैं। उनको नीब करौरी गाँव में श्री श्री 1008 परम हंस बाबा लक्ष्मणदास की पदवी भी दी गयी जो कि भारतीय आध्यात्मिक परम्परा में सर्वोच्च मानी जाती है। यहीं से बाबा नीब करौरी ‘महाराज’ के रूप अवतरित हुए।
बाबा जी ने कुमाऊँ क्षेत्र में नैनीताल को वर्ष 1935 के आस पास अपनी लीला स्थली के लिए चुना। यहाँ पर उनकी बहुत मान्यता हुई और ‘महाराज’ नाम से प्रचलित हुए। उन्होंने घर-घर में अखण्ड रामायण पाठ विशेषकर सुन्दरकाण्ड तथा हनुमान चालीसा का पाठ करवाना प्रारम्भ किया और जन-जन तक हनुमान जी के प्रति निष्ठा, श्रद्धा तथा प्रेम का संचार कर दिया। कहते हंै कि राम जी को पाना है तो हनुमान जी को श्रवण करो। यहाँ पर भक्तों के अत्यधिक प्रेम व समर्पण को देखते हुए महाराज ने यहाँ मनोरा पर्वत स्थित बजरी के टीले पर संकट मोचन हनुमान मन्दिर की स्थापना की। बाबा जी की आलौकिक लीलाओं का महाभाग प्राप्त उत्तराखण्ड की इस देव भूमि में उनके द्वारा स्थापित यह प्रथम हनुमान मन्दिर है जिसकी स्थापना वर्ष 1953 में हुई।
मुझे महाराज के प्रथम दर्शन मेरे बाल्यकाल में नैनीताल के तल्लीताल चुंगी स्थित श्री ईश्वरी दत्त पन्त जी के निवास स्थान पर प्रातः 04-05 बजे के बीच हुए। प्रणाम करने के पश्चात महाराज ने अपनी मधुर मुस्कान से मुझे आशीर्वाद दिया। तभी से जहाँ भी महाराज के आने की सूचना मिलती, मैं वहाँ पर दर्शन हेतु पहुँच जाता था। मुझे याद है, जब महाराज जी श्री ईश्वरी दत्त पंत जी के आवास पर पधारे थे तभी पास ही मेें इण्टर कालेज मेें निवासित श्री पी. सी. जोशी जी, जो वहाँ कला के अध्यापक थे, पहँुचे और विलाप कर महाराज से अपना दुःखड़ा कहने लगे। हुआ यूँ था कि श्री जोशी जी की पुत्री का विवाह श्री नारायण दत्त पाण्डे जी के पुत्र श्री जगदीश चन्द्र पाण्डे जी से तय हुआ था जो कि नैनीताल के बिड़ला स्कूल में अध्यापक थे। ना जाने किस कारण से श्री पाण्डे जी घर छोड़कर कर चले गये थे। यही दुःखड़ा जोशी जी महाराज से कह रहे थे और विलाप कर रहे थे कि अब मेरी पुत्री का विवाह कैसे होगा। यह घटना प्रातः काल की है। काफी देर बाद महाराज ने श्री जोशी जी से कहा कि जाओ सब ठीक हो जाएगा। तुम्हारा दामाद शीघ्र घर आ जायेगा और निश्चित समय पर विवाह होगा। सचमुच कुछ समय बाद श्री जगदीश चन्द्र पाण्डे जी का विवाह श्री पी.सी. जोशी जी की सुपुत्री के साथ सम्पन्न हुआ। बाद में सुनने में आया कि श्री पाण्डे जी ने विवाह न करने की सोची थी और घर छोड़कर चले गये थे। महाराज के प्रताप से श्री पाण्डे जी का विचार बदला तथा वे घर लौट आये व विवाह के लिए अपनी सहमति दे दी तथा निश्चित तिथि पर विवाह सम्पन्न हुआ। आज भी हल्द्वानी में महाराज जी के पुण्य प्रताप से अच्छा जीवनयापन कर रहे हैं।
एक समय हम 6-7 बालक नैनीताल से कैंची मन्दिर, जो उस समय बन ही रहा था, घूमने गये वहाँ पर हमने महाराज जी के दर्शन किये, महाराज जी ने मुझे एक फल देकर कहा कि ‘जाओ यहाँ से। भागकर आ जाते हो’ और हमें वहाँ से भगा दिया। हमें शीघ्र ही एक ट्रक मिल गया और हम लोग उसमें बैठकर आ गये। जब हम नैनीताल पहुँचे तो देखा घर में हमारी ढूँढ खोज हो रही थी, जिस कारण हमेें काफी डाँट पड़ी। उस दिन से बहुत सालों तक चाहकर भी मैं कैंची मन्दिर न जा सका। यह बात वर्ष 1964-65 की है। वर्ष 2007 में राम नवमी के अवसर पर हनुमानगढ़ मन्दिर नैनीताल में श्री माँ महाराज ‘सिद्धि माँ’ के सामने मैंने अपना दुःखड़ा सुनाया और उनसे अनुरोध किया कि मैं कैंची मन्दिर आना चाहता हूँ पर किसी न किसी कारण से मैं नहीं आ पा रहा हूँ। इसका क्या कारण है और उपरोक्त घटना उन्हें सुनाई। माँ महाराज ने मेरी व्यथा ध्यान से सुनी और कहा कि यहीं हनुमानगढ़ में महाराज का ध्यान और पाठ करो, महाराज तुम्हारी अवश्य सुनेंगे। मैंने वैसा ही किया सचमुच लगभग दो माह के अन्दर मैं कैंची मन्दिर पहुँच गया। वहाँ अचानक मुझे माँ महाराज के दर्शन हुए। मैंने जैसे ही उन्हें प्रणाम किया उन्होंने मुस्कुराकर कहा कि ‘ऐ गो छा’ मतलब आ गये हो। कुछ क्षण बाद कहा कि जाओ महाराज के मन्दिर में ध्यान व पाठ करो, मैंने वैसा ही किया और पाया कि साक्षात महाराज मेरे सामने बैठे मुस्कुरा रहे हैं। यह मुस्कान मैं आज तक नहीं भूला हँू। सच में माँ महाराज ने मुझे पुनः मेरे गुरूदेव के दर्शन करा दिये, लेकिन मैं यह रहस्य आज तक नहीं समझ पाया कि महाराज ने इतने समय तक मुझे अपने से दूर क्यों रखा।
साभार : बाबा नीब करौरी महाराज जी के अनन्य भक्त अनिल पंत , नैनीताल द्वारा उपलब्ध कराये गए लेख। यह विशेष आलेख कालम आगे भी महाराज जी के आदेशों तक चलता रहेगा। पाठकगण भी अपने दिव्य अनुभव , दृष्टांत , लेख हमे हमारे ईमेल : nainilive@gmail.com पर भेज सकते हैं अथवा हमारे व्हाट्सप्प नंबर 9412084796 पर भी प्रेषित कर सकते हैं।
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