26 जुलाई “कारगिल दिवस” पर ….कारगिल युद्ध के साक्षी का अमर शहीदों को नमन
कुन्दन सिंह चिलवाल ( nainilive.com )- कारगिल युद्ध 1999 के अविष्मरणीय पल आज भी जहन में बार बार माँ भारती की सेवा के लिए सर्वश्व न्योछावर करने को प्रेरित करते हैं मैं उस युद्ध मे मेरे साथियों के बलिदान को विनम्र श्रद्धांजलि देते हुए ईश्वर से उनकी दिव्य आत्मा की शांति के लिए प्रार्थना करता हूँ!
कारगिल युद्ध के साक्षी
केवल 18 साल 3 महीने की उम्र में कारगिल युद्ध के रियनफोर्समेंट के तौर पर साथी घायलों को मिलट्री अस्पताल तक पहुँचाने वाले सहभागी कुमाऊँ रेजिमेंट के सेवानिवृत्त जवान कुन्दन चिलवाल बताते हैं आज भी जब उन्हें कारगिल की जंग व 12000-16000 फिट की ऊँचाई पर माइनस -10°तापमान में भारत-पाकिस्तान के बीच 1999 में हुआ कारगिल युद्ध आज भी हमारे के जहन में जिंदा है भारतीय इस लड़ाई को याद करके गर्व महसूस करते है.. लेकिन इस युद्ध में भारत ने अपने कई बहादुर जवानों और होनहार अफसरों को खोया था! देश के लिए अपनी जान न्यौछावर करने वाले हमारे साथियों ने अंतिम समय सांस तक दुश्मनों का सामना किया, शहीद होने से पहले इन्होंने दुश्मन के बंकर के छीतड़े बिखेर दिए थे। आज भी युद्ध की यादों से ऐसा ही जोश भर जाता है जैसा फौज में रहता था।
कुन्दन चिलवाल बताते हैं, तत्कालीन प्रधानमंत्री भारत रत्न अटल बिहारी वाजपेयी जी के निर्णय से जनरल वी पी मलिक ने थल सेना का ऑपरेशन विजय”,वायु सेना का “सफेद सागर” नौसेना का ऑपरेशन “तलवार” के साथ थल सेना का “ऑपरेशन विजय” लॉन्च जिसका हिस्सा बनने का मुझे सौभाग्य प्राप्त हुआ! जिसमें हमारे साथी 2 नागा के जवानों ने 6 और 7 जुलाई को कारगिल में ,पाॅइंट 4875 टूईन बम्प पर वापस कब्जा किया सिपाही कैलाश कुमार, सिपाही राजेश सिपाही संजय गुरुंग, नायक देवेंद्र सिंह ने चढ़ाई के दौरान दु्श्मन की आर्टिलरी बमवारी के बीच बम्प फतह करने में प्राण न्यौछावर कर दिए। नायक देवेंद्र को वीरता पुरस्कार से अलंकृत किया गया।
कुन्दन सिंह चिलवाल (पूर्व सैनिक) का कहना है कि जो जवान शहीद हो गए उनके परिवारों का तो सेना को पूरा ध्यान रखना ही चाहिए। जो घायल हुए उनके परिजनों की भी सुध लेनी चाहिए। हालांकि उन्हें सेना से कोई शिकायत नहीं है। लेकिन वे ऐसी नियमित व्यवस्था चाहते हैं ताकि सैनिकों के परिवारों की सुविधाओं का नियमित रूप से ध्यान रखें।
आज के भारत-चीन के हालात पर कुन्दन चिलवाल ने बताया, कुमाऊं-नागा रेजीमेंट का गौरवशाली इतिहास स्वर्णिम अक्षरों में दर्ज है. पहला परमवीर चक्र विजेता होने के साथ चीन पर भारत के इकलौते आक्रमण का श्रेय भी हमारी कुमाऊं रेजिमेंट को ही जाता है.मेरा प्रयास है मेरे बच्चे बड़े होकर सेना में सैन्य अधिकारी के रूप में सेवा दें!
नोट : लेखक कुंदन सिंह चिलवाल (पूर्व सैनिक) कारगिल युद्ध के साक्षी रहे हैं , और साथ ही सेना से सेवानिवृत्त होकर वर्तमान में अपने गृह क्षेत्र रामगढ़ में सामजिक कार्यों के द्वारा समाज एवं भारत माता की सेवा कर रहे हैं।
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