प्लास्टिक कचरे से हिमालयी जल स्रोत जैव विविधता गंभीर ख़तरे में
न्यूज़ डेस्क , नैनीताल / दिल्ली ( nainilive.com )- भारत का मुकुट कहलाने वाले पर्वतराज हिमालय के स्थानीय निवासियों को समर्पित दिवस “हिमालय दिवस ” पर राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन, जल शक्ति मंत्रालय, भारत सरकार एवं नौला फाउंडेशन के सयुंक्त तत्वाधान में आयोजित कार्यक्रम ‘ हिमालय का महत्व एवं हमारी जिम्मेदारियाँ’ में क्षेत्र के युवाओं को सम्मानित किया हैं, जिसमे विकासखंड चौखुटिया ग्रामं कनोनी मासी के युवा ग्राम प्रधान गिरधर बिष्ट व् फुलौरा ग्राम के इंजीनियर हिमांशु फुलोरिया, विकासखंड द्वाराहाट की युवा ग्राम प्रधान सुमन कुमारी, विकासखंड ताड़ीखेत ग्राम चलसिया पड़ोली के पर्यावरणविद संदीप मनराल को विशेष तौर पर नमामि गंगे के द्वारा सम्मानित किये जाने पर समस्त क्षेत्र में ख़ुशी की लहर है।
ग्राम प्रधान गिरधर बिष्ट का कहना हैं के सम्मान वो समस्त राम गंगा घाटी को समर्पित करते हैं जिनके परस्पर जन सहयोग से वो धरातल पर जमीनी कार्य करने में सफल हुए है। आज पहाड के हर गॉव मैं ठोस व तरल कूड़े के निस्तारण की कोई व्यवस्था नही है । सब ग्राम वासी प्लास्टिक को खुले मैं जल स्रोतो के आसपास फैंक कर चले जाते है जो हिमालयी वैटलेडंस व जैव विविधता के लिये गंभीर ख़तरा बन गयी है । हमें मिलकर ठोस समाधान कारण ही होगा। ये कदम घर से उठाना होगा, तभी गगास, रामगंगा, गंगा, यमुना जैसी नदिया का अस्तित्व रहेगा। पर्यावरणविद सुरेंद्र सिंह मनराल का कहना हैं की भारत वर्ष में नदियों के जल का ७०% स्प्रिंगफेड यानि पारम्परिक प्राकृतिक जल स्रोत है, जो वनाच्छादन की कमी, वर्षा का अनियमित वितरण एवं अनियंत्रित विकास प्रक्रिया के कारण सूखते जा रहे हैं। इस हिमालयी राज्य में स्प्रिंगशेड ( नौले-धारे का रिचार्ज क्षेत्र) संरक्षण, संवर्धन पर असल हितधारक स्थानीय जन समुदाय की भागीदारी सुनिश्चित करनी ही होगी ।
समस्त उत्तराखंड मैं जल मंदिर नौले धारों के संरक्षण को संकल्पित समुदाय आधारित संस्था नौला फाउंडेशन कुमाऊँ मंडल में परस्पर जन सहभागिता से पहाड़ पानी परम्परा के सरंक्षण संवर्धन में लगी है। गगास घाटी की बेटी लोकप्रिय युवा ग्राम प्रधान सुमन कुमारी का कहना हैं की गभीर चितां का विषय है कि पर्यावरण से सबसे ज़्यादा नुक़सान हमारे परम्परागत जल स्रोतों स्प्रिंग नौले धारों गधेरो को हो रहा है । नौला फाउंडेशन के अध्यक्ष बिशन सिंह का कहना हैं की आज पर्वत राज हिमालय के बारे में हम मिलकर एक नई सोच स्थापित करें, जिसमें समाज और सरकार का समन्वय हो, स्थानीय समुदायों को साथ लेकर ही हिमालय सरंक्षण नीति बनायीं जाय, जिसमें जल जंगल, और जमीन के तहत हिमालय की सामाजिक,आर्थिक, परिस्थितिक, जैव विविधता, व सांस्कृतिक पहलुओं पर कुछ विशेष नियम बनाये जाएं, जिनका किसी भी प्रकार का उल्लंघन दण्डनीय हो। सच मानिए जलवायु परिवर्तन व अनियंत्रित दोहन से हिमालय की मौत हुई तो यह देश का अस्तित्व क्या बचेगा?
आज 100 करोड़ से ज्यादा का पर्यटन व्यापार देता है हिमालय, बदले में हम क्या वापस करते है, ये आज का महत्वपूर्ण प्रश्न है।जगह-जगह फैले कूड़े के ढेर, जिनमें अधिकतर प्लास्टिक वेस्ट यानी रंग-बिरंगे पॉलीथिन बैग, टूटी-फूटी प्लास्टिक की बोतलें आदि दिखाई देती हैं, जो नॉन-बायोडिग्रेडेबल वस्तुएँ हैं, आज ये समस्या इतनी बढ़ गई है कि ये हमारे पर्यावरण के लिये बड़ा खतरा बन गई है। गभीर चितां का विषय है कि पर्यावरण से सबसे ज़्यादा नुक़सान हमारे परम्परागत जल स्रोतों स्प्रिंग नौले धारों गधेरो को हो रहा है ।
भारत वर्ष में नदियों के जल का ७०% स्प्रिंग यानि परम्परागत प्राकृतिक जल स्रोत है, जो वनाच्छादन की कमी, वर्षा का अनियमित वितरण एवं अनियंत्रित विकास प्रक्रिया के कारण सूखते जा रहे हैं। ऊपर से प्लास्टिक कचरा इन्हीं जल स्रोतो के जल एवं जैव विविधता को प्रदूषित कर रहा है । आज पहाड के हर गॉव मैं ठोस व तरल कूड़े के निस्तारण की कोई व्यवस्था नही है । सब ग्राम वासी प्लास्टिक को खुले मैं जल स्रोतो के आसपास फैंक कर चले जाते है जो हिमालयी वैटलेडंस व जैव विविधता के लिये गंभीर ख़तरा बन गयी है । इस हिमालयी राज्य में स्प्रिंगशेड ( नौले-धारे का रिचार्ज क्षेत्र) संरक्षण, संवर्धन पर असल हितधारक स्थानीय जन समुदाय की भागीदारी सुनिश्चित करनी ही होगी ।
नौला फाउंडेशन के संस्थापक अध्यक्ष पर्यावरणविद बिशन सिह का मानना है कि धरती को #unplastic अब नहीं किया जा सकता, प्लास्टिक हमारे चारों ओर है परन्तु R5 मतलब अंग्रेजी के अक्षर ‘R’ को 5 बार प्रयोग में लाया है यानी Reduce, Recycle, Reuse, Recover and Residuals Management, यदि इन पाँच ‘आर’ पर कड़ाई से अमल किया जाये तो काफी हद तक प्लास्टिक के कूड़े का प्रबन्धन किया जा सकता है। देश में कहीं भी नई संतति पैदा हो तो एक नया वृक्ष जितने परिवारीजन हो, रोपें। आज के भौतिक युग में पॉलीथीन के दूरगामी दुष्परिणाम एवं विषैलेपन से बेखबर हमारा समाज इसके उपयोग में इस कदर आगे बढ़ गया है मानो इसके बिना उनकी जिंदगी अधूरी है। यहाँ तक यह हिमालय की वादियों को भी दूषित कर चुका है ।
नौला फाउंडेशन का सरकार से ये निवेदन हैं की हिमालय के लिए एक ठोस हिमालयी परिस्थिति संरक्षण नीति बनानी चाहिए और पर्यटकों पर इस पॉलीथीन रूपी बीमारी से छुटकारा पाने के लिये शुध्ध पर्यावरण शुल्क भी लगाना अनिवार्य करना होगा। प्लास्टिक पर पूर्णतः प्रतिबन्ध आज के समय की गंभीर मांग है तभी थोड़ा बहुत हम अपने बच्चों को साफ़ सुधरा भविष्य दे सकते हैं I आज पूरा विश्व जिस संकट की आशंका से चिंतित है उसने हमारे दरवाजे पर दस्तक दे दी है I प्रकृति का क्रोध प्रत्यक्ष रूप से हमें विश्व के विभिन्न भागों मै साफ तौर पर दिखाई दे रहा है I है। नौला फाउंडेशन निदेशक पर्यावरणविद किशन भट्ट का मानना है कि हमारे वेदों के पारम्परिक जल विज्ञानं पर आधारित परम्परागत जल सरंक्षण पद्धति व सामुदायिक भागीदारी को ज्यादा जागरूक करके पारम्परिक जल सरंक्षण पर ध्यान देना होगा I अब समय आ चुका हैं हिमालय के लिए एक ठोस नीति बनानी होगी और पर्यटकों पर पर्यावरण शुल्क भी लगाने के साथ साथ प्लास्टिक पर पूर्णतः प्रतिबन्ध लगाना होगा तभी थोड़ा बहुत हम अपने बच्चों को साफ़ सुधरा भविष्य दे सकते हैं I मिडिया हैंड पर्यावरणविद संदीप मनराल ने संवाददाता को बताया नौला फाउंडेशन पहाड पानी परम्परा के संरक्षण को संकल्पित है इसी मद्देनज़र इस प्लास्टिक के सदुपयोग के लिए स्वच्छ भारत अभियान ( ग्रामीण ) को समर्थित परस्पर सामुदायिक जन सहभागिता के साथ नौला फाउंडेशन परिवार देशहित मैं संकल्पित महाअभियान #R5-2030 से समस्त देशवासियों को जुड़ने की अपील करता हैं ।
महान चिंतक व नौला फाउंडेशन नीतिज्ञ पर्यावरणविद स्वामी वीत तमसो के अनुसार दुनिया भर के देशों में 5 अरब से ज्यादा प्लास्टिक बैग यूं ही फेंक दिए जाते हैं। आज जिन प्लास्टिक की थैलियों में हम बाजार से सामान लाकर आधे घंटे के इस्तेमाल के बाद ही फेंक देते हैं और उन्हें नष्ट होने में हज़ारों साल लग जाते हैं। क्यों नहीं हम स्वदेशी पैकिंग का उपयोग करना फिर शुरू करते। देश में स्वदेशी के नाम पर चल रहे जितने उद्योग हैं, सभी को इस दिशा में जल्दी सोचना होगा। आज सुबह का बिस्कुट और चाय दोनों ही प्लास्टिक में उपलब्ध है। आटा, चावल, दालें, मसाले सभी प्लास्टिक में पैक है। कपड़े, किताबें, इलेक्ट्रॉनिक, किसी भी ओर नजर घुमा के देख लें प्लास्टिक मौजूद है। स्वदेशी पैकिंग प्रणालियों को पुनर्जीवित करने का अवसर है। हमें इस दिशा में नया कानून चाहिये। पैकिंग नितियों को फिर से आमूल चूल परिवर्तन की आवश्यकता है। सभी चाहते है, प्लास्टिक से पीछा छूटे, पर ठोस नीतियोँ के बिना ये कदापि सम्भव नहीं। हम रोज़ वही राग प्रलाप गाये जा रहे है, और रोज़ प्लास्टिक में जीवन कुछ और ज्यादा पैक होता जा रहा है।
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