ओजोन दिवस पर विशेष – चायना है विश्व का सबसे अधिक ओजोन पैदा करने वाला देश
भारत में 120 पीपीबी पहुंची ओजोन की मात्रा
दुनिया में हर साल .1 से .5 पीपीबी बड रही है ओजोन
न्यूज़ डेस्क , नैनीताल ( nainilive.com )- आसमान के उच्च क्षेत्र में पृथ्वी का कवच है, तो धरती की सतह पर इसका बढना बेहद खतरनाक है। वर्तमान में एशियाई देश धरातल पर ओजोन की मात्रा वृद्धि कर रहे है; आमेरिका सहित कुछ पश्चिमी देश भी इसे बडा रहे है। पृथ्वी पर .1 से .5 प्रतिशत प्रतिवर्ष बढ रही है। भारत में इसका आंकडा 100 से 120 पीपीबी यानी पार्ट पर बिलियन पहुंच चुकी है, जबकि चायना दुनिया का सबसे अधिक ओजोन उत्सर्जित करने वाला देश बन गया है। चायना में इसकी मात्रा 200 पीपीबी जा पहुंची है।
भले ही विश्व ओजोन दिवस उच्च आसमान में ओजोन लेयर संरक्षण के लिए मनाया जाता हो, लेकिन अब धरती के सतह के वातावरण में ओजोन की मात्रा की वृद्धि कुछ और ही कहानी बंया कर रही है। धरातल पर इसकी वृद्धि का कारण नाइट्रोजन ऑक्साइड , कार्बन डाई ऑक्साइड व हाइडृोजन ऑक्साइड है। इसकी मात्रा बेतहासा बडती जा रही है। भारत जैसे विकासशील देश भी इसकी चपेट से बाहर नही हैं। महानगरों में इस प्रदूषण बडने से स्वास्थ्य पर बूरा असर पड रहा है, वही प्रतिवर्ष लाखों टन चावल गेहुं के साथ कपास की पैदावर को कम करने में ओजोन को जिम्मेदार माना जा रहा है। भारतीय महानगरों में कहीं अधिक तो कहीं कम मात्रा में ओजोन निरंतर बड रही है।
30 से 60 के बीच होनी चाहिए ओजोन
यूरोपीय देशों ने कर लिया ओजोन पर कण्ट्रोल
यूरोपीय देशों ने सतही ओजोन पर नियंत्रण पा लिया है। इस दिशा में यूरोपीय देशों ने जागरूकता की मिसाल कायम की है। ओजोन पर काबू पाने के लिए यूरोप में नियम तो बने हैं, लेकिन इसकी घातकता को देखते हुए स्थानीय लोगों ने जागरूकता का परिचय देते हुए इस पर नियंत्रण पा लिया है।
15 किमी से उपर मौजूूद होती है ओजोेन लेयर
अपने पूराने स्वरूप में लौटने में 100 साल लगेंगे ओजोन को
एरीज नैनीताल के वायुमंडलीय वैज्ञानिक डाॅ मनीस नाजा का कहना है कि धरती के लिए ओजोन वरदान के साथ अभिशाप भी है। यह पृथ्वी के उपरी सतह पर बडे तो वरदान है और निचली सतह पर बडे तो उतनी ही खतरनाक हो जाती है। अतीत में ओजोन की बात करें तो इसकी भरपाई में अभी कई दशक लग जाएंगे। 1980 में ओजोन लेयर की भरपाई में में अभी 50 साल लगेंगे, जबकि 1960 में ओजोन लेयर जितनी थी उसकी भरपाई होने में अभी सौ साल का समय लग जाएगा। जरूरत है कि हमें ओजोन के प्रति खुद में प्रेम जागृत करना होगा। सिर्फ नियम बना देने से ही पर्यावरण संरक्षण संभव नही लगता।
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