देश की मानसूनी बारिश के साथ आकाश मे भी चरम मे होगी उल्काओ की बौछार
-आसमानी आतिशबाजी से जगमगाएगी गुरु व शुक की रात
-पीक के दौरान एक घंटे मे 100 से ज्यादा आम बोलचाल के टूटते तारे हकीकत की उल्काएं आएंगी नजर
-मौसम के साफ रहने पर हों सकेंगे जगमगाती फुलझड़ियों के दीदार
बबलू चंद्रा , नैनीताल ( nainilive.com )- गुरुवार को आसमान मे उल्काओ की बौछार चरम मे होने की संभावना है। देश मे मानसून के साथ-साथ आज रात आसमान भी मेटीओर शावर यानी आसमानी उल्काओं की जगमगाती बरसात से रोशन होगी। पृथ्वी के सूर्य परिक्रमा के दौरान धूमकेतु स्विफ्ट टट्ल (बर्फीली गैसों व धूली कणों के पिंड) की पूंछ द्वारा छोड़े धूलिकणों व मलवे के यात्रा पथ मे आने से वायुमण्डल मे प्रवेश करते ही ये रगड़ खाकर जलती हुई फुलझड़ियों के समान जल उठते है और कुछ सेकंड मे राख बन जाते हैं। ये राई के दाने से लेकर फूटबॉल के बराबर तक होते हैं। कुछ कई टन के भी हो सकते हैं। आर्यभट्ट प्रेक्षण शोध संस्थान के वरिष्ठ खगोल वैज्ञानिक डॉ शशिभूषण पांडे के अनुसार ये सामान्य खगोलीय घटना होने के साथ-साथ एक प्राकृतिक रोमांच से भरी आकाशीय आतिशबाजी होती है। जिस तरह दीवाली या अन्य आयोजनों मे कृतिम स्काईशॉय पटाखों को आसमान मे चंद सेकेंड जलते हुए देखते है, उल्कावृष्टि के दौरान भी हूबहू ऐसा ही नजारा देखने को मिलता है। ये घटनाएं वर्ष मे 10 से 12 बार अपने चरम काल मे होती है बुधवार से शुक्रवार(11 से 13 अगस्त) तक चरम मे होने जा रही उल्कावृष्टि का नाम फर्शीड मेटिओर शावर है। जिसमे 50 से 100 उल्काओ को प्रति घण्टा देखा जा सकता है। खगोल प्रेमियों को इस घटना का बेसब्री से इंतजार रहता है। उल्काओ की बौछार शहरों की लाइट प्रदूषण से दूर जाकर अंधरी जगहों मे इस रोमांचरी घटना का आनंद लिया जा सकता है।
वरिष्ठ अंतरिक्ष पत्रकार रमेश चंद्रा के मुताबिक बुधवार से शुक्रवार के बीच होने वाली उल्का बरसात का केंद्र मकर राशि के शर्मिष्ठा तारा मंडल के समीप है। जबकि एक ही जगह से जलती उल्काओ का दिखना मात्र एक दृष्टिभृम है, आम बोलचाल टूटते तारे एक ही स्थान से ठीक उसी तरह नजर आते है जिस तरह समान दिशा मे आ रही दो रेलगाड़ियां दूर से देखने मे एक ही पटरी मे आते हुए नजर आती है। खगोलविज्ञान मे एक ही स्थान निकलने वाली उस स्थान को उल्का विकर्णन बिंदु कहते है। जिस तारा मंडल मे होता है उल्कावर्ष्टि को उसी नाम से जाना जाता है। खगोल प्रेमियों व खगोल मे रुचि रखने वालों को इस रोमांचकारी प्राकृतिक घटना को अवश्य देखना चाहिए।
-धरती तक भी पहुँचते है उल्कापिंड
आकाश के को पिंड धरातल मे जमी तक पहुँच जाते है उन्हें उल्कापिंड कहते हैं। अब तक उल्कापिंडों से बने लगभग 200 गड्डे धरती मे पहचाने जा चुके है। सबसे प्रसिद्ध उत्तरी ओरिजोना मे बना बैरिंगेर क्रेटर है। 31 जुलाई 2006 की रात गुजरात के कच्छनगर जामानगर व राजकोट जिलों मे आसमान मैं आग के गोले बरसते देखे गए थे। जिसे देखकर वंहा के लोगों मे खलबली मच गई थी। बाद मे पता चला कि इस क्षेत्र के कई स्थानो में छोटे-छोटे आकार के कई सारे उल्कापिंड गिरे हैं। इन उल्कापिंडो का अहमदाबाद की भौतिकीय अनुसंधान प्रयोगशाला के वैज्ञानिक अध्ययनरत हैं। महाराष्ट्र के बुलढाणा मे भी उल्कापिंड से बनी एक विशाल क्रेटर है। वैज्ञानिको का अनुमान है कि बीस हज़ार साल पहले 100 मीटर व्यास का एक उल्कापिंड 18 किमी प्रति सेकंड के वेग से धरती मे आ टकराया । जिससे यहॉ विशाल खड्ड व झील बनी है।
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