टोस्टमास्टर्स क्लब और संचार व नेतृत्व क्षमता विकास- कैसे करते हैं टोस्टमास्टर्स क्लब कार्य
राकेश बेलवाल (nainilive.com )- हिन्दी दिवस की पूर्वसंध्या पर मस्कट में हिन्दलिश टोस्टमास्टर्स क्लब ( toastmasters club) की ५ वी सभा में दिनांक १३ सितम्बर २०२०, रविवार शाम ७.३० बजे शमिल होने का मौका मिला। ज़ूम मंच पर आयोजित इस गोष्ठी का शीर्षक “आज के सन्दर्भ में हिंदी का महत्व – असंख्य है इसके उपकार, करो अपनी भाषा से प्यार” रखा गया था। विशेष अतिथि ओमान में भारत के राजदूत थे। मैं इस गोष्ठी में आमंत्रित वाह्य प्रतिभागी था। इस लेख के माध्यम से मैं टोस्टमास्टर्स क्लब ( toastmasters club) के द्वारा प्रयोग की जाने वाली भाषा ज्ञान व अभिव्यक्ति की प्रक्रिया और उससे समूह के सदस्यों को होने वाले फायदों के बारे में बताना चाहता हूँ।
क्या है टोस्टमास्टर्स क्लब?
टोस्टमास्टर्स इंटरनेशनल एक गैर-लाभकारी शैक्षिक संगठन है जो कि अपने सदस्यों में टोस्टमास्टर्स क्लबों के विश्वव्यापी नेटवर्क के माध्यम से सार्वजनिक वक्तव्य को देने की प्रतिभा और नेतृत्व कौशल को जाग्रत करता है। एंगलवुड, कोलम्बिया में स्थित यह मुख्यालय 145 देशों में 16,200 से अधिक क्लबों में 364,000 से अधिक सदस्यों का प्रतिनिधित्व करता है। इस संगठन की स्थापना राल्फ सी. स्मडले (22 फरवरी, 1878 – 11 सितंबर, 1965) द्वारा की गयी। सन1924 से ही टोस्टमास्टर्स इंटरनेशनल संगठन विविध पृष्ठभूमि के लोगों को अधिक आत्मविश्वास से बोलने व उनमें संचार और नेतृत्व क्षमता को बढ़ाने में मददगार रहा है। टोस्टमास्टर्स संगठन की गतिविधियों के मुख्य केन्द्र विभिन्न देशों में पंजीकृत इसके क्लब होते हैं जो किसी भी भाषा को जनता के समक्ष बोलने की सहजता और कला को विकसित करने के लिये इच्छुक लोगों को एक निश्चित स्थान व समय पर एकत्र कर गोष्ठियों का आयोजन करते है। इन क्लबों में तकरीबन 15-20 सदस्य होते हैं और जो सप्ताह में एक निश्चित प्रायोजन के साथ एक या दो घंटे के लिए आपस में मिलते हैं। टोस्टमास्टर इन्टरनेशनल विद्यालयी छात्र-छात्राओं में संचार व नेतृत्व क्षमता को विकसित करने के लिये गैविल क्लबों को पंजीकृत करके उनके मार्ग को भी प्रशस्त करता है।
मुझे भी पहली बार टोस्टमास्टर्स द्वारा आयोजित इस गोष्ठी में भाग लेने का अवसर प्राप्त हुआ। इस गोष्ठी की संचालन बड़ा रोचक था। इसमें टोस्टमास्टर्स सदस्यों को विभिन्न कार्यों के निष्पादन के लिये पूर्व में जिम्मेदारियाँ दी गयी जिनका परिचय प्रतिभागियों को गोष्ठी के प्रारम्भ में दिया गया। सर्वप्रथम एक व्याकरणविद् सदस्य द्वारा इस गोष्ठी के आयोजन के लिये निर्धारित मुख्य शब्द “जिज्ञासा” की घोषणा की गयी। साथ ही एक विस्मयादिबोधक अव्ययों की गणणा करने वाले, एक समय का पालन कराने वाले, और एक मूल्यांकन करने वाले सदस्य की भी घोषणा की गयी। गोष्ठी का शुरूआती संबोधन एक वरिष्ठ टोस्टमास्टर द्वारा किया गया तथा उसके बाद का संचालन दूसरे वरिष्ठ टोस्टमास्टर द्वारा किया गया। प्रत्येक कार्यकर्ता को पूर्व में ही अपने एक पसंदीदा दोहे (स्लोगन) का चयन करने को बोला गया था जिसको उनके परिचय के दौरान संचालक द्वारा अन्य लोगों से अवगत कराया गया।
इसके बाद दो तरह की गतिविधियाँ का क्रियान्वयन किया गया – पहला, पूर्व निर्धारित विषयों पर प्रतिभागियों द्वारा भाषण और दूसरा, आकस्मिक शीर्षकों पर अचिंतित भाषण। दो वक्ताओं को छह मिनट के पूर्वनिर्धारित भाषणों के लिये आमंत्रित किया गया था और तीन वक्ताओं को दो मिनट के अचिंतित भाषणों के लिये। पूर्व निर्धारित वक्तव्यों के मूल्यांकन के लिये अलग अलग निर्णायकों को चुना गया था जिनका परिचय सभी मौजूद सदस्यों को दिया गया और उनके मूल्यांकनों को पुष्टी व प्रतिपुष्टि के रुप में सभा के उत्तरार्ध में सभी प्रतिभागियों के साथ सांझा किया गया। वक्तओं की खूबियों व कमियों को गिनाने वाले इस मूल्याकंन का उद्देश्य उनकी वाकशैली व वाक्पटुता का संवर्धन व परिमार्जन करना था। पूर्व निर्धारित विषयों पर वक्तव्यों के बाद अचिंतित वक्तव्यों के प्रतिभागियों का एक-एक कर परिचय दिया गया और उनकों तात्कालिक शीर्षकों पर दो मिनट बोलने को आमंत्रित किया गया। इसके उपरान्त गोष्ठी को रोचक बनाने के लिये एक हास-परिहास वक्ता को आमंत्रित किया गया जिन्होंने हिन्दी भाषा के शब्दों के गद्य व पद्य रूपी विनियासों से सदस्यों का एक प्रकार से मनोरंजन ही नहीं वरन ज्ञानवर्धन भी किया। इन सभी वक्ताओं के वक्तव्यों के उपरान्त सभी कार्यकारी सदस्यों ने अपनी रपट से वक्ताओं की समय की प्रति प्रतिबद्धता और उनके वक्तव्यों की अच्छाईयों व कमजोरियों से अवगत कराया। मेरा मानना है कि इन सब मूल्यांकनों से सभी वक्ताओं और कार्यकर्ताओं को कुछ न कुछ सीखने का अवसर मिला। इसके बाद मुख्य अतिथी द्वारा भाषण दिया गया और हिन्दी के प्रचार व प्रसार के लिये भारत के राजदूतावास द्वारा किये जाने वाले प्रयासों से सभी सदस्यों को अवगत कराया। सभा के अंत में बचे हुए सदस्यों को संचालक द्वारा संक्षेप नें अपनी बाते रखने को कहा गया। गोष्ठी में कोई भी ऐसा सदस्य नहीं था जिसने कि इस पूरे घटनाक्रम में भाग नहीं लिया हो।
मुझे भी अपनी प्रतिभागिता से कुछ नया सीखने का अहसास हुआ। मैने प्रबन्धन व निष्पादन दोनों ही क्षेत्रों पर कुछ ना कुछ ज्ञान प्राप्त किया। किस प्रकार पारदर्शी रूप से एक निर्णायक मंडल का गठन कर उसकी जबाबदेही सुरक्षित की जा सकती है जिससे कि विभिन्न प्रतिभागियों का निष्पक्ष रूप से मूल्याकंन कर उनके गुणों व दोषों को एक शिष्टाचार के तहत उजागर किया जा सके, यह मैने प्रबन्धन के रूप में सीखा। साथ ही प्रतिभागी के रूप में मिली निर्णायकों की व्यक्तिगत टिप्पणियों व सुझावों से सही व गलत भाषा, शब्दों, व्याकरण, शारीरिक हाव-भावों का बोध भी हुआ जिससे सामान्य व्यवहार व सूचना संबन्धी संचारों को सुधार कर सकारात्मकता, आत्मविश्वास, व नेतृत्वकुशलता हासिल की जा सके, यह मैने वक्तव्य के निष्पादन के रूप में हासिल किया।
मेरी नज़र में टोस्टमास्टर्स क्लब द्वारा आयोजित की जाने वाली गतिविधियों में व्यक्तियों को प्रभावी संचारक बनाने व उनमें नेतृत्व की क्षमता को विकसित करने की सामर्थ्य है। क्लब के कार्यक्रमों में शामिल होने वाले सदस्यों की सक्रिय प्रतिभागिता के परिणामस्वरूप उनके आत्मविश्वास में वृद्धि और व्यक्तिगत विकास में बढ़ोत्तरी होना स्वभाविक है और इस प्रकार का संगठनात्मक रूप वैश्विक, जिला व स्थानीय स्तर पर संचार व नेतृत्व क्षमता बढ़ाने के इस कार्य को बखूबी अंजाम देता है। हिन्दी, अंग्रेजी, और यहाँ तक की क्षेत्रीय भाषाओं जैसे कि कुमाऊँनी और गढ़वाली में भाषाज्ञान, वाक्पटुटा, संचार व नेतृत्व क्षमता को विकसित करने के लिये, मैं इस तरह की गोष्ठियों के आयोजन व उनकी कार्यप्रणालियों की सराहना करता हूँ।
लेखक- प्रोफेसर राकेश बेलवाल, प्रबन्धन अध्ययन विभाग, सोहार विश्वविद्यालय, सल्तनत ऑफ ओमान में कार्यरत हैं और मूल रूप से भवाली के निवासी हैं.
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