हिंदी पत्रकारिता दिवस विशेष: टीवी डिबेट की हक़ीक़त

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हिमानी बोहरा, नैनीताल ( nainilive.com )- एक अच्छे न्यूज़ चैनल चलाने के लिए पैसों की ज़रूरत होती है। सबसे बड़ा खर्चा है, आप तक चैनल पहुंचाना, जिसे डिस्ट्रिब्यूशन खर्च कहते हैं। हर एक दर्शक तक पहुँचने के लिए सालाना 35-50 करोड़ रुपये खर्चने पड़ते हैं। जो चैनल इतना खर्चा नहीं उठा सकते उनका रेटिंग कम आता है।

एक न्यूज़ स्टोरी को कवर करने के लिए रिपोर्टर और कैमेरापर्सन के अलावा, गाड़ी, TA/DA, इत्यादि का भी खर्च होता है। साथ में ईक्विपमेंट तो है ही — कैमेरा, लाइट, माइक, बैटरि, टेप, चिप, इत्यादि। फिर शूट किया गया footage या तो अपलिंक से ऑफिस पहुंचाया जाता है, या टेप/चिप वापस आता है।

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रिपोर्टर स्क्रिप्ट लिखते हैं, और कॉपी डेस्क पर चेक होता है। फिर रिपोर्टर इसका वॉइस ओवर करते हैं, और विडियो एडिटर के साथ मिलकर footage और वॉइस-ओवर को मिलाकर एक विडियो पैकेज तैयार होता है। हर स्टोरी या रिपोर्ट के साथ कुछ टेक्स्ट भी स्क्रीन पर होता है। इसको डेस्क-वाले लिखते हैं।

ग्रैफ़िक्स टीम रिपोर्ट के लिए ग्रैफ़िक्स बनाते हैं। इसके लिए कीमती ब्रॉडकास्ट-क्वालिटी ग्रैफ़िक्स मशीनों की ज़रूरत पड़ती है। इसके बाद इन विडियो पैकेजों को ऑन-एयर दिखाने के लिए प्रॉडक्शन कंट्रोल रूम की ज़रूरत पढ़ती है – विडियो मिक्सर, औडियो मिक्सर, विडियो प्लेयर, डाइरेक्टर।

आख़िर में है स्टुडियो, स्टुडियो कैमेरा, फ़्लोर मैनेजर, माइक, और न्यूज़ ऐंकर। उसके बाद ब्रॉडकास्ट के लिए सिग्नल भेजने वाली टीम। इन सब के बाद आपके टीवी पर पहुंचता है एक न्यूज़ रिपोर्ट। हर पॉइंट पर लोगों की ज़रूरत है, ईक्विपमेंट की ज़रूरत है, और इन सबके लिए पैसों की ज़रूरत है।

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इन सब खर्चों को कम करने का एक बहुत आसान तरीक़ा है। वो है डिबेट शो। इसमें न रिपोर्टर की ज़रूरत है, ना हि news-gathering की। सिर्फ़ एक ऐंकर, स्टुडियो, स्टुडियो में माइक, कैमेरा, लाइट, और प्रॉडक्शन कंट्रोल रूम। और साथ में चाहिए कुछ चिल्लाने वाले एक्सपेर्ट और नेता। सस्ता मनोरंजन।

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इसी को आप न्यूज़ कहेंगे तो ग़लती सिर्फ़ न्यूज़ चैनल की नहीं। ज़िम्मेदारी आप की भी है। अगर आप सच देखना चाहते हैं, तो न्यूज़ को उतना ही महत्व दें, जितना बच्चों की पढ़ाई या अच्छे डॉक्टर को देते हैं। अगर दर्शक न्यूज़ पर खर्चा नहीं करेंगे तो फिर टीवी पर तमाशा ही मिलेगा।

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