रिया गाँव- बेजोड़ स्वाद मेहनत की लाली

रिया गाँव- बेजोड़ स्वाद मेहनत की लाली

रिया गाँव- बेजोड़ स्वाद मेहनत की लाली

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बबलू चंद्रा , नैनीताल ( nainilive.com )- सड़क ना होने की उदासी फिर भी ग्रामीणों के चेहरे मे सदाबहार मुस्कुराहट नज़र आती, मेहनत से सींचे रंग से रंगी गुलाबी मूली व सेहत का राज बताते रिझाते पत्ते। मन ललचाए रहा न जाये जब नदी का तट हो और किनारे मे नहा धो कर धूप सेकती कतारबद्ध मुलिया दूर से ही पानी मे नहा कर और भी रंगीन निखरती हुई नजर आती। बहते पानी के सामने मुँह मे पानी आ जाता, सिलबट्टे का पिसा हरा पुदीना हरि मिर्च हरे धनिया का नमक हो साथ-साथ मीठी मूली की भी बट्टे से दबा कर कुटाई हो या फिर मूली का थेचवा याद आता, हरी चटनी  के साथ सलाद हो, हरे पत्तों की भुज्जी हो या फिर दोनों की सब्जी,तरकश भरे स्वाद के साथ दोंनो ही सेहत के लिए बेमिसाल है।।


       नैनीताल शहर से कुछ किमी दूर रिया गांव, जहां कुछ साल पहले तक विदेशी सैलानियों से गांव व आसपास के जंगल गुलज़ार रहा करते थे, क्योंकि यहाँ की आबोहवा, पक्षियों का संसार,जीवो का व्यवहार, जंगल की भूलभुलैया रास्ते व लंबे पैदल ट्रैक विदेशी नागरिकों को स्वतः ही यहाँ खींच लाते थे। यहाँ की एक पहचान नैना गांव चढ़ता के साथ रिया की मूलियां भी है। नैनीताल-हल्द्वानी मार्ग मे नैना गांव मे सड़क किनारे की लाल मूलियां आते जाते राहगीरों का ध्यान अपने निराले लाल रंग से आकर्षित तो करते ही है। पर इनके मन मोह लेने वाले रंग का राज सिर्फ और सिर्फ ग्रामीणों की अथक मेहनत ही है।

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अलसुबह खेतो से निकाल नदी किनारे  या पानी के तटों तक पहुँचाया जाता है फिर रगड़ रगड़ बारीकी से धोया जाता है, हरे पत्तों से ख़राब पत्तो को काटा छाता जाता है  सीधे तौर पर बाजार या मंडी उपलब्ध न हो पाना एक गूढ़ समस्या तो है ही विशेषकर रिया गांव  और डाडर की डगर वहाँ की उपजाऊ भूमि उनमे उगने वाली पोष्टिक साग सब्जियां आज तक संपर्क मार्ग ना होने के चलते मंडी और शहर के बाजारों तक पहुँचते पँहुचते निराश हो जाती और उचित दाम न मिलने से मुरझा जाती।

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मुख्य मार्ग से सड़क के नीचे बसा ये गांव दो राहे मे दो ग्राम सभा के सीमा विवाद के कारण आज भी संपर्क मार्ग से वंचित है। फसलों को मुख्य सड़क तक पहुचाने के लिए इन्हें पीठ पर लाद कर खड़ी चढ़ाई का सामना करना ग्रामवासियो की मजबूरी, बतौर गांव के ही युवकों द्वारा श्रमदान से सड़क कटाई का काम बहुत पहले ही किया जा चुका है बस इंतजार ओर आस है की कोई मुखिया इस प्रस्ताव को आगे को आगे बढ़ाए जिससे हम ताजी सब्जियों का ताजापन ही शहर तक पहुँचाये उनकी भी सेहत बनाये। दिन रात की अथक मेहनत, जोंको का गढ़, मौसम की मार झेलने बाद  खड़ी चढाई मे पीठ मे इनके साथ ही अन्य सब्जियों को ढो कर सड़क पर पहुँचाना मंडी तक पहुँचते पहुँचते वो दाम नहीं मिल पाना , चढ़ता- मनोरा- नैना गांव की मूलियों के साथ सब्जियों का भी यही हाल।।।
 पत्तों की हरीसब्जी मेरी बेहद खास, ककड़ियों का अभी तोडा बाकी है इंतज़ार।

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