Exclusive : लॉकडाउन के दौरान भी पूरे विधि विधान के साथ महिलाओं ने किया वट सावित्री व्रत
हिमानी बोहरा, नैनीताल ( nainilive.com)- आधुनिक काल में जब संस्कृति और परंपरा महज एक इतिहास बनती नजर आ रही है और अपना वजूद खोते जा रही है , तो वहीं अब भी पहाड़ी क्षेत्रों में कुछ पुराने त्यौहार और उपवास अपने अस्तित्व को बचाने की लड़ाई लड़ रहे हैं या यूं कहे अपने मूल स्वरूप को बचाने में जुटे हुए हैं। नई पीढ़ी जहां समय के साथ बदल रही हैं वहीं पुरानी पीढ़ी के लोगों का अपनी संस्कृति और सभ्यता की तरफ अब भी लगाव है और अपनी संस्कृति और सभ्यता को विलुप्ति की कगार से बचने की पूरी कोशिश में लगे हुए हैं। ऐसे में पहाड़ी क्षेत्रों में मनाए जाने वाला उपवास भी इस लड़ाई में खुद को बचाने के लिए लड़ रहा है, जो है वट सावित्री व्रत। इस व्रत को पहाड़ी करवाचौथ के नाम से भी जाना जाता है क्योंकि इसमें पति की दीर्घायु की कामना की जाती है।
यह व्रत उत्तराखंड के साथ साथ कुछ अन्य राज्यों में भी मनाया जाता है, हालांकि आज यह अपने वजूद की लड़ाई लड़ रहा है। यह उपवास हिंदी मास के अनुसार ज्येष्ठ मास के कृष्ण पक्ष की आमावस्या को किया जाता है। पति की दीर्घायु, अखंड सौभाग्य, पुत्र-पुत्रों द्वारा वंश वृद्धि और परिवार की सुख, शांति, समृद्धि के लिए महिलाओं द्वारा यह त्यौहार मनाया जाता है।
इस दिन वट के वृक्ष की पूजा की जाती है और साथ ही सावित्री सत्यवान की कथा का पाठ किया जाता है। वट अपनी विशालता और चिरायु के जाना जाता है, तो वहीं हिन्दू परंपरा में सावित्री को वो सौभाग्यशाली महिला के रूप में जाना जाता है जो यमराज से अपने पति के प्राण को छीन लिया था और अपने पति को पुनर्जीवित किया था, इसलिए इस उपवास में वट वृक्ष और सावित्री दोनों ही महत्त्व रखते है। पुराणों में वट वृक्ष में त्रिदेव ब्रह्मा, विष्णु, महेश का वास भी बताया गया है।
लॉकडाउन के दौरान जब सब कुछ बन्द है कुछ ही सुविधाएं सुचारू है और भीड़ इक्कठा नहीं करनी है। इन्हीं सब बातों को ध्यान में रखते हुए महिलाओं ने घर में ही वट सावित्री व्रत की पूजा की। इसमें पूरे विधि विधान के साथ महिलाओं ने वट वृक्ष की टहनी मंगाकर उसकी पूजा अर्चना की और जिन महिलाओं को वट वृक्ष की टहनी नहीं मिल पाई उन्होंने त्रिदेव की प्रतिमा स्थापित कर पूरे विधि विधान के साथ पूजा की। मान्यता है कि वट वृक्ष में त्रिदेवों का वास होता है।
पतिव्रता सावित्री की पूजा का विधान वट सावित्री में किया जाता है। परंपरा के अनुसार पूजा गृह की दीवार पर वट सावित्री का चित्रण किया जाता है। आजकल इस चित्रण के कागजी पोस्टर बाजार से खरीदकर दीवार पर लगाया जाता है। इस पोस्टर में सावित्री, सत्यवान और यमराज चित्रित किये होते हैं। एक वट वृक्ष के नीचे सावित्री सत्यवान का सर अपनी गोद में लिए यमराज से याचना करती बैठी होती है। सत्यवान के मृत शरीर के आगे कुल्हाड़ी व काटी हुई लकड़ियों गट्ठर बना होता है। यमराज सत्यवान की आत्मा कि डोर को थामे हुए रहते हैं। इस सावित्री पट्ट की पूजा की जाती है। श्रृंगार की सामग्री अर्पित कर सौभाग्य की कामना की जाती है। सावित्री के आशीर्वाद की प्रतीक डोर भी गले में पहनी जाती है। इस तरह वट सावित्री का यह उपवास उत्तराखण्ड की महिलाओं की आस्था एवं विश्वास प्रतीक है।
कथानुसर कहा जाता है कि भद्र देश के राजा अश्वपति संतान के सुख से वंचित थे, उन्होंने संतान प्राप्ति के लिए सावित्री देवी की पूजा की और कठिन यज्ञ का आयोजन करवाया। देवी के आशीर्वाद से राजा के घर में एक सुंदर कन्या ने जन्म लिया और राजा ने उस कन्या का नाम देवी के नाम पर सावित्री रखा। सावित्री के शादी योग्य होने पर राजा अश्वपति ने अपनी पुत्री को मंत्री के साथ स्वयं ही अपना वर चुनने के लिए भेजा। भ्रमण करते करते सावित्री की मुलाकात साल्व देश के राजा के पुत्र सत्यवान से हुई और सावित्री ने सत्यवान को अपने वर के रूप में चुन लिया, तत्पश्चात देवर्षि नारद ने सभी को बताया की रहा द्युमत्सेन के पुत्र सत्यवान की विवाह के पश्चात मृत्यु हो जाएगी। यह सुन कर राजा अश्वपति ने अपनी पुत्री से दूसरा वर चुनने को कहा लेकिन सावित्री नहीं मानी और सत्यवान से विवाह कर लिया। देवर्षि नारद से पति की मृत्यु का समय ज्ञात करने के बाद वह सास ससुर और पति के साथ जंगल में रहने लगी और उनकी सेवा करने लग गई।
मृत्यु का समय निकट आने पर सावित्री ने व्रत रखना शुरू कर दिया फिर जब यमराज उसके पति के प्राण लेने आए सावित्री भी उनके पीछे चले गई। सावित्री की धर्मनिष्ठता से प्रसन्न होकर यमराज ने वर मांगने को कहा तो उन्होंने सबसे पहले अपने नेत्रहीन सास ससुर की आंखें और दीर्घायु का वर मांगा।
फिर सावित्री को पीछे आता देख यमराज ने दूसरा वरदान मांगने को कहा तो उन्होंने अपने सास ससुर का खोया हुआ राज पाट मांगा। आखिर में सावित्री में चतुराई पूर्वक पुत्रवती होने का वर मांगा और यमराज ने तथास्तु कहा और आगे बड़ने लगे लेकिन फिर भी सावित्री को पीछे आता देख यमराज क्रोधित हुए तब सावित्री ने यमराज को नमन करते हुए कहा कि आपने मुझे पुत्रवती होने का वर तो दे दिया है लेकिन मेरे पति के प्राण तो आप ले जा रहे हैं, कृपया आप अपने तीसरे वरदान को पूरा करने के लिए अपना कहा पूरा करें। इसी प्रकार सावित्री की पतिव्रत धर्म की बात जानकर यमराज ने अपने पास से सत्यवान के प्राण को मुक्त कर दिया। सावित्री सत्यवान के प्राण लेकर वट वृक्ष के नीचे पहुंची और सत्यवान होकर उठ बैठ गए।
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