पृथ्वी दिवस पर विशेष : पृथ्वी का चक्र एवं मानव

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प्रो० ललित तिवारी , नैनीताल – 22 अप्रैल का दिन पृथ्वी दिवस के रूप में मनाने का फैसला 22 अप्रैल 1970 को अमेरिका में हुआ जो अब 50 वर्ष पूर्ण कर चुका है। किन्तु क्या हम अपनी जिम्मेदारियों के प्रति सचेत हुए है यह आज भी विचारणीय प्रश्न है। आज भी प्रदूषण, धुँआ, नदियाँ, कचरा, समुद्री कचरा, दौहन एवं बिमारियाँ कठिन चुनौतिया है। 2016 में 120 देशों ने एक समझोते पर हस्ताक्षर किये कि हम जलवायु को संरक्षित रखने में योगदान करेगें। पृथ्वी का जन्म 5000 मिलियन वर्ष पहले हुआ तथा मानव 2 मिलियन वर्ष पहले इस धरा पर आया जिसकी आवश्यकता हेतु पृथ्वी में 96.54 प्रतिशत जल समुद्र एवं महासागर में, 1.74 प्रतिशत ग्लेशियर में, 1.69 प्रतिशत भूमिगत जल तथा मात्र 0.76 प्रतिशत शुद्व जल धरती पर उपलब्ध है। किन्तु गंभीर प्रश्न यह है कि आने वाले 40 वर्षों में 50 प्रतिशत शुद्व जल की और अधिक आवश्यकता होगी तथा 70 फीसदी अतिरिक्त खाद्यय सामग्री की और आवश्यकता होगी। पृथ्वी जिसने हमें सारी सुख सुविधायें दी आज हम उसके लिए कुछ विशेष करने की स्थिति में शायद नहीं है। पृथ्वी नें प्राकृतिक संसांधन के तौर पर सोर ऊर्जा, जल तथा वायु के अतिरिक्त मृदा और पेट्रोलियम तो दिया तो वही वर्षा वन से विभिन्न जैव विविधता तथा आनुवाशिंक विभिन्नता भी प्रदान की और विविध पारिस्थितिक तंत्र भी दियें। जंगल से ईधन, प्राकृतिक संपदा के रूप में जीवाश्म ईधन दिया तो हमने इस पृथ्वी पर समस्याओं का अंबार लगा दिया। जो प्राकृतिक संसाधनों, पर्यावरण चुनौतियों, जलवायु परिवर्तन, शुद्व जल का हृास, जंगल का कटान के साथ-साथ शुद्व हवा को प्रदुशित किया किया तथा जल प्रदुषण के साथ-साथ परमाणु बम भी इसी धरती पर चला दिया। आज की प्रमुख समस्यायें जिसमे हमने पृथ्वी को बैचेन किया है उनमें वायु प्रदुषण तथा जलवायु परिवर्तन जिसमें कार्बन डाइआक्साइड की मात्रा 280 पी0पी0एम0 से बढकर 400 पी0पी0एम0, जंगल जिनकी प्रतिशतता विश्व में 30 प्रतिशत है और वर्षा वन 15 प्रतिशत है पर हम 7.3 मिलियन हैक्टयर जमीन में वन को प्रति वर्ष की गति से साफ कर रहे है। मावन ने विभिन्न जातियों के हरास का जरिया भी इसके माध्यम से बना दिया है कि इस संसार में 17 लाख 50 हजार विभिन्न प्रजातियों तर ज्ञात है किन्तु कितनी इसमें से विलुप्ती की तरफ बढ़ रही है। यह विचारणीय प्रश्न है। मृदा को प्रदूषित करने में भी पीछे नही है 12 मिलियन हैक्टेयर जमीन हर वर्ष प्रदूशित हो रही है। सबसे बड़ी समस्या मानव जनसंख्या वृद्वि है जो 7.5 मिलियन से बढ़कर 2050 तक 10 विलियन तक पहुँच जायेगी जिसको हमें प्रबंधित करना होगा ये सबसे बड़ी समस्या है। वैसे तौ पृथ्वी जो गवाह है पूरे जीवन के घटनाचक्र की जो ना होती यदि पृथ्वी ना होती। डाइनासोर जैसे विशालकाय जीव इस पृथ्वी पर आये और विलुप्त हो गये। सिंकदर महान भी विश्व को जितने निकला और दो विश्व युद्व सहित सैकड़ो युद्व हुए प्रकृति में विनाश का दौर भी चला किन्तु पृथ्वी अडिग रही है। प्रकाश संश्लेषण से भोजन बनने की प्रक्रिया प्रारम्भ हुई और आज पूरा विश्व कोविड-19 के प्रभाव में है। 1720 का प्लेग, 1820 का कौलरा जिसमें 1 लाख जाने गयी। 1918 का स्पेनिश फ्लू तो 50 लाख लोगों को संक्रमित कर गया ओर कोविड 2019 से 2557504 लोग संक्रमित हो चुके हैं तो 177662 जाने भी जा चुकी है तथा 694881 ठीक भी हो चुके है। यह मानव पृथ्वी का श्रेष्ठ प्राणी है। जो विजेता तो बनता ही है किन्तु अपनी गलत आदतों सीखता है। उसकी इच्छायें असीमित होती है अपना साम्राज्य बढ़ाने की चाह उसे दिक्कितों का सागर प्रदान करती है। पता है समय कठिन है मानव के लिए हम पृथ्वी दिवस से फिर चिंतन ले कि पृथ्वी के प्रति संवेदनशील हो तथा भविष्य के प्रति जागरूक होते हुए पर्यावरण संरक्षण तथा पृथ्वी पर ऐसा कोई कार्य ना करे जिसका परिणाम हमे ही भुगतना पडें।

प्रोफेसर ललित तिवारी , नैनीताल कुमाऊं विश्वविद्यालय नैनीताल में वनस्पति विज्ञान विभाग में प्रोफेसर के पद पर कार्यरत हैं और कई सामाजिक संस्थाओं के साथ सक्रिय रूप से जुड़े हुए हैं. वनस्पति विज्ञानं विषय में इनके कई शोध राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर प्रकाशित हो चुके हैं और कई पुस्तकों का लेखन एवं संपादन इनके द्वारा किया गया है.

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