मानसून की दस्तक पहाड़ी यातायात पग-पग पर चुनौती भरी सड़कें: पूरन ब्रजवासी

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संतोष बोरा , नैनीताल/भीमताल ( nainilive.com )- मानसून में दस्तक दे चुका है। मौसम के बदलते तेवरों के बीच तेज बारिस की बौछारों का दौर भी जारी है। प्रदेश में मानसून हमेशा वक्त पर ही पहुँचता है।वर्ष 2005 से अब तक सिर्फ चार मौके ही ऎसे आये हैं।जब मानसून एक सप्ताह विलंब से पहुँचा, इस बार भी मानसून निर्धारित समय पर आ ही पहुँचा है।लेकिन सवाल यह है कि क्या सिस्टम भी इसके लिए तैयार है।

समाज सेवी पूरन चंद्र बृजवासी ने कहा है कि ‘विषम भौगोलिक क्षेत्र’ वाले उत्तराखंड में मानसून के क्या मायने हैं। यह बताने की जरूरत नहीं, पहाड़ पर ‘कुदरत कब कुपित’ हो जाये कहाँ नहीं जा सकता, लेकिन वर्षा काल में तो हादसे उत्तराखंड की नियति बन चुके हैं l मानसून के शुरूआती व आखरी दिनों में उत्तराखंड के कई जगहों पर बादल फटने का खतरा तो सर्वाधिक रहता ही है, भूस्खलन भी बड़ी चुनौती है।

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उन्होंने कहाँ आलम यह है कि पिथौरागढ़ जिले में चीन सीमा को जोड़ने वाले मार्ग पर मानसून से पहले ही हल्की सी बारिश में ही बार-बार मलबा आने से आवाजाही बाधित हो रही है l इसका प्रभाव सैन्य वाहनों पर भी पड़ रहा है l यह अकेले पिथौरागढ़ का मसला नहीं है, चमोली से लेकर चंफावत तक की यही स्थिति है, इसके अलावा कुमाऊं के नैनीताल-अल्मोड़ा राज मार्गो एवं सम्पर्क मार्गो पर बरसात में यात्रा करना खतरे से खाली नहीं, जगह-जगह चुनौती भरी सड़कें बिखरी पड़ी है। गढ़वाल उत्तरकाशी जिले में यमुनोत्री के निकट हाइवे पर डाबरकोट में बना भूस्खलन जोन अब तक यात्रा में रोड़े डालता रहा है। वर्ष 2018 में यहां एक हजार घंटे से अधिक समय तक यातायात ठप रहा। समस्या से पार पाने के लिए डाबरकोट में 400 मीटर लंबी सुरंग का निर्माण प्रस्तावित है। बद्रीनाथ हाइवे पर लामबगड़ भूस्खलन जोन तो नासूर ही बन चुका है। वर्षों से सक्रिय इस जोन का अब तक ट्रीटमेंट नहीं हो सका। हालांकि, आॅलवेदर रोड का कार्य पूरा होने के बाद इनमें कुछ मार्गो पर यातायात सुगम हो जाएगा।

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उन्होंने बताया ऎसा नहीं है कि यह स्थिति सिर्फ राष्ट्रीय राजमार्गों की ही हो, राज्य के संपर्क मार्गो की हालत तो और भी दैनीय है, कुछ साल पहले मानसून के दौरान पौड़ी जिले के धुमाकोट में हुए बस हादसे के बाद एक बार लगा कि विभाग कुछ चेता है, लेकिन वक्त गुजरने के साथ ये हादसा भी इतिहास ही बन कर रह गया l इसमें करीब 50 यात्रियों की मौत हुई थी l आमतौर पर संबंधित विभाग हर साल मानसून से पहले सड़कों पर ब्लैक स्पॉट और डेंजर जोन चिन्हित करते हैं, लेकिन उपचार की दिशा में शायद ही कभी कोई ठोस कदम उठाया गया हो।

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बृजवासी ने कहाँ जबकि सड़के उत्तराखंड के लिए लाइफ लाइन है, लेकिन इनके रख-रखाव को लेकर शासन-प्रशासन का रवैया हमेशा टालमटोल वाला ही रहा है l उम्मीद की जानी चाहिए कि राज्य सरकार जिम्मेदार विभागों को दायित्वों का अहसास करायेगी और पहाड़ में हाइवे के साथ ही इस मानसून के दौरान संपर्क मार्गों पर फोकस किया जायेगा।

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