प्रेरणादायक : अपने जीवन की परवाह न कर वृद्ध संघ स्वयंसेवक ने युवा व्यक्ति के लिए छोड़ी हॉस्पिटल की ऑक्सीजन बेड

प्रेरणादायक : अपने जीवन की परवाह न कर वृद्ध संघ स्वयंसेवक ने युवा व्यक्ति के लिए छोड़ी हॉस्पिटल की ऑक्सीजन बेड

प्रेरणादायक : अपने जीवन की परवाह न कर वृद्ध संघ स्वयंसेवक ने युवा व्यक्ति के लिए छोड़ी हॉस्पिटल की ऑक्सीजन बेड

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न्यूज़ डेस्क , नैनीताल ( nainilive.com )- कोरोना की दूसरी लहर के आगे हर कोई बेबस नजर आ रहा है। जिस तेजी के साथ यह संक्रामण फ़ैल रहा है , उससे हालत खराब होते जा रहे हैं। हर शहर से ऑक्सीजन सिलिंडर की कमी और ऑक्सीजन बेड की जरुरत पड़ने के ही समाचार मिल रहे हैं। ऐसे में इस दूसरी लहर ने युवाओं को भी निशाना बनाना शुरू कर दिया है। एक तरफ जहाँ हर कोई परेशान हैं , वहीँ समाज के बीच से कुछ ऐसे लोग भी निकल कर आ रहे हैं , जो अपने जीवन की परवाह न कर समाज के लिए अपना सर्वस्व समर्पित कर रहे हैं।

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ऐसा ही एक समाचार नागपुर से भी आया , जिसमे एक वृद्ध स्वयंसेवक ने अपने जीवन की परवाह न करते हुए अपने को उपलब्ध ऑक्सीजन बेड एक युवा व्यक्ति को दे दी , जिससे उसका जीवन बच सके। नागपुर के राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के बचपन से स्वयंसेवक 85 वर्षीय नारायण दाभड़कर पिछले दिनों कोरोना से संक्रमित हो गए । उनकी पुत्री ने कई दिनों की भागदौड़ के बाद वहां के इंदिरा गांधी अस्पताल में उनके लिए एक बेड की व्यवस्था की, तब तक उनका ऑक्सीजन लेवल काफी कम हो गया था । जिस समय उनकी पुत्री की पुत्रवधू उन्हें लेकर अस्पताल गई उस समय वे बड़ी मुश्किल से सांस ले पा रहे थे । अभी हॉस्पिटल में उन्हें भर्ती करने की औपचारिकताएं पूरी हो ही रही थी कि उनकी नजर एक रोती बिलखती महिला पर पड़ी, जो अपने पति के लिए अस्पताल वालों से एक बेड के लिए विनती कर रही थी । उसके 40 वर्षीय पति को भी तुरंत ऑक्सीजन देने की आवश्यकता थी जो कि कोरोना से संक्रमित था। वहीं खड़े उसके बच्चे बिलख बिलख कर रो रहे थे।

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दाभड़कर काका ने तुरंत निर्णय लेते हुए वहां मौजूद मेडिकल स्टाफ से बड़े ही शांत मन से कहा, “मैं 85 वर्ष का हो चुका हूं, मैंने अपनी जिंदगी जी ली है, आपके पास यदि कोई बेड खाली नहीं है तो मेरे लिए आरक्षित बेड इस महिला के पति को देकर उसकी जान बचाईए, उसके परिवार को उसकी जरूरत है। इसके बाद उन्होंने अपनी बेटी की पुत्रवधू के माध्यम से बेटी को फोन पर अपने निर्णय की जानकारी दी, जिसे उनकी बेटी ने मानव सुलभ ना नुकुर और झिझक के साथ, भारी मन से स्वीकार कर लिया ।

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डाभड़कर काका सहमति पत्र पर हस्ताक्षर कर अस्पताल से घर आ गए तथा तीन दिन के बाद उनकी पवित्र आत्मा अपनी नश्वर देह त्याग, एक जवान आदमी को जीवनदान देकर प्रभु चरणों में लीन हो गई।

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