जलवायु परिवर्तन एक प्रमुख पर्यावरणीय चुनौती – प्रकृति आधारित समाधान पर चिनार संस्था ने आयोजित किया वेब संवाद

जलवायु परिवर्तन एक प्रमुख पर्यावरणीय चुनौती - प्रकृति आधारित समाधान पर चिनार संस्था ने आयोजित किया वेब संवाद

जलवायु परिवर्तन एक प्रमुख पर्यावरणीय चुनौती - प्रकृति आधारित समाधान पर चिनार संस्था ने आयोजित किया वेब संवाद

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न्यूज़ डेस्क , नैनीताल ( nainilive.com )- चिनार और ग्लोबल फाउंडेशन ने एक और महत्वपूर्ण वेब-संवाद आयोजित किया जो शहरी परिपेक्ष्य में जलवायु परिवर्तन से लड़ने के लिए प्रकृति पर आधारित समाधानों पर केंद्रित था|जलवायु परिवर्तन हमारे समय की प्रमुख पर्यावरणीय चुनौतियों में से एक हैl शहरी क्षेत्रों में जलवायु परिवर्तन के प्रभाव का मुकाबला करने के लिए प्रकृति-आधारित समाधानों पर चर्चा करने के लिए, कई विशेषज्ञों को आमंत्रित किया गया था। सत्र को पर्यावरण विशेषज्ञ डॉ प्रणब जे पातर और डॉ प्रदीप मेहता द्वारा संचालित किया गया ।

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इंटीग्रल यूनिवर्सिटी, लखनऊ में पर्यावरण विज्ञान विभाग के प्रोफेसर और प्रमुख, प्रो मोनोवर आलम खालिद ने सत्र में बोलते हुए जोर दिया कि बदलती जलवायु वास्तव में बहुत सारे अवसर पैदा कर रही है l उन्होंने स्मार्ट शहरों की संरचना मे पर्यावरण समाधान को एकीकृत करने के महत्व पर प्रकाश डाला। स्वच्छ विकास तंत्र पर अपने अनुभव को साझा करते हुए,उन्होंने प्रौद्योगिकी-आधारित समाधानों की वकालत की क्योंकि यह स्थानीय स्तर पर जलवायु परिवर्तन अनुकूलन का कार्य करने में भी मदद करती है।एक अन्य पैनलिस्ट सुश्री मनीषा चौधरी, जो यूएनडीपी इंडिया में प्रोजेक्ट ऑफिसर हैं, ने राष्ट्रीय जैव विविधता एक्शन प्लान के महत्व पर बात की और यूएनडीपी इस पर भारत सरकार के साथ कैसे काम कर रही है यह बताया। उन्होंने बताया कि किस तरह जैव विविधता और पारिस्थितिकी तंत्र सेवाएं हमारे सामाजिक और आर्थिक मूल्यों को जोड़ती हैं। उन्होंने इस क्षेत्र मे जमीनी स्तर पर हो रही प्रगति और समग्र संरक्षण एजेंडा को आगे बढ़ाने के लिए प्रकृति आधारित समाधानों को मुख्यधारा में लाने के महत्व को समझाया।

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पूर्व अमेरिकी उपराष्ट्रपति अल गोर द्वारा स्थापित द क्लाइमेट रियलिटी प्रोजेक्ट इंडिया के कंट्री मैनेजर श्री आदित्य पुंडीर ने जलवायु परिवर्तन के कारण हो रही चरम मौसमी घटनाओं जैसी गंभीर चुनौतियों के बारे में विस्तार से बात की। इन समस्याओं के समाधान के रूप में, उन्होंने वनीकरण, पुनर्स्थापित जल निकायों, सुनियोजित कृषि जैसे ऊष्मा उत्सर्जन नियंत्रण उपायों पर जोर दिया। उन्होंने सलाह दी, हमें ऐसे संकटों को दूर करने के लिए विभिन्न पारिस्थितिकी तंत्र सेवाओं का मूल्य और मूल्यांकन करना होगा! उन्होंने कहा कि यह अनुमान है कि कोविद -19 महामारी के कारण वैश्विक स्तर पर लगभग 10% जीडीपी नुकसान हुआ है, और अगर हम पर्याप्त प्रकृति आधारित सुरक्षा उपाय नहीं करते हैं, तो भविष्य मे यह स्थिति और भी जटिल हो सकती है क्योंकि जलवायु परिवर्तन के कारण निकट भविष्य में भी इस तरह के महामारी जैसे संकटों की आशंका है।

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सुश्री श्वेता नाइक, जो भारत में जेन गुडॉल के रूट्स एंड शूट्स प्रोग्राम की राष्ट्रीय समन्वयक हैं, उन्होंने जलवायु संबंधी चुनौतियों को दूर करने के लिए हमारे उपभोग के पैटर्न और हममें से प्रत्येक की जिम्मेदारी के बारे में बात की। उसने कहा कि – हम केवल वही काटेंगे जो हम बोते हैं, । हम संरक्षण के क्षेत्र मे अपनी व्यक्तिगत और साथ ही सामूहिक जिम्मेदारियों से भाग नहीं सकते। विभिन्न क्षेत्रों के लगभग 109 प्रतिभागी वेब संवाद में शामिल हुए।

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