माँ नंदा सुनंदा ने मायके से ली ऐतिहासिक विदाई, मंगलकामनाओं का आशीर्वाद दे कुलदेवी ससुराल चली।

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बबलू चंद्रा , नैनीताल ( nainilive.com )- चेहरे मे उदासी-पलको मे नमी,, दिल मे माँ के दीदार की एक झलक की तम्मनाओं के साथ असीम श्रद्धा ले सैकड़ो श्रद्धालुओ ने मंदिर प्रांगण के बाहर से ही नमन कर शीश झुका, मॉ नंदा-सुनंदा को किया विदा।


सैकड़ो की संख्या मे मंदिर पहुँचे बुजुर्गों-बच्चो सहित भक्तों को राह की तलाश थी जुबा मे काश की आह थी, कि काश बन्द कपाट खुल जाते, माँ के बेरोकटोक दीदार हो जाते। सति का शक्तिपीठ माँ नयना का दरबार इतिहास के पन्नो मे दर्ज हो गया, 1880 के भूस्खलन मे ओझल हुआ, 1883 मे पुनः स्थापित हुआ माँ नंदा देवी का 118वॉ महोत्सव 28 अगस्त 2020 को मंदिर प्रांगड़ मे ही सिमट गया। नियति की शायद यही मर्जी थी या भगवती की भी यही इच्छा थी कि उसके भक्तों को छू भी न पाए कोरोना राक्षस इसलिए उसने भी मंदिर प्रांगड़ से ही विदा ली।

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पर माँ के प्रति असीम श्रद्धा, लगाव ही है जो हम सब नैनीतालवासी सहित कुमाऊंनी जनमानस हर साल नयना देवी मेले महोत्सव का बेसब्री से इंतज़ार करते हैं और धूमधाम से उसे विदा करते है। विदाई के दौरान दिल मे भरा रहने वाला आसुओं का एक गागर आज अश्रुओं का समंदर बन गया, जब मॉ की मूरत के दर्शन भी न हो सके और डोले का नगर भृमण भी ना हुआ, मायूस चेहरे, भीगे-भीगी सी पलको के साथ अधिकतरो की जुबा मे एक ही बात थी महोत्सव का रूप जैसा भी था डोले का नगर भृमण होना जरूरी था, अल्मोड़ा, रानीखेत व भवाली मे हुआ पर नैनीताल मे नहीं हो सका।

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मेला दिलो का इस साल पुरानी यादों को संजोता हुआ दिल मे ही रह गया, वो जगमगाता शादी सा सजा शहर का मंडप वो उसमे दुल्हन बन सजी मॉ नंदा-सुनंदा की मूरत, मैदान मे बाजार उसमे लाखो तादाद वाली भीड़-भाड़, वो झूलो की बहार-उनसे आती चीखने-चिल्लाने की गगनचुम्भी आवाज, बच्चो के खिलौने की दुकान, शोर मचाती पौ-पौं बाजे की आवाज झील के सामने आंखों मे याद बनकर तैरती रही आशु टपाक से छलका ओर कह गया अगले बरस जरूर मिलेंगे पुरानी रौनक के साथ। शुक्रिया राम सेवक सभा और तमाम मीडिया कर्मी व स्थानिय ताल चैनल का जिन्होंने पल पल दूर बैठे श्रद्धलुओ व इस कोरोना से मजबूर शहर से बाहर भक्तों को माँ नंदा सुनंदा का दर्शन करवाया।।
ना हताश होना न निराश होना
किसी को ना हो कोरोना, इसलिए मन्दिर से ही मुझे विदा होना
जय माँ नंदा सुनंदा

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